रवि भोई की कलम से
कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार पर आरएसएस के पदाधिकारियों की बारीक नजर बनी हुई है। खबर है कि भाजपा के एक नए नवेले मंत्री ने सार्वजानिक तौर से सरकार गठन का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे दिया। इस पर संघ के पदाधिकारियों की भौहें तन गई और मंत्री को सीमा में रहने का संदेश भिजवा दिया। कहते हैं आरएसएस पदाधिकारियों की टेढ़ी नजर के बाद मंत्री जी ने सोशल मीडिया के जरिए क्षमा याचना की। कहते हैं आरएसएस के पदाधिकारियों का साफ़ संदेश है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार पदाधिकरियों और कार्यकर्ताओं की मेहनत से आई है। चर्चा है कि संघ के पदाधिकारियों ने एक मंत्री को उनके परिवार से जुड़े मामले में क्या रुख अपनाना है, इसकी सलाह और हिदायत दी है। माना जा रहा है कि मंत्रियों के स्टाफ में किन लोगों को रखा जाएगा, इसका भी निर्धारण संघ के पदाधिकारी कर रहे हैं। बताते हैं प्रत्येक मंत्री के कार्यालय में संघ से जुड़े एक व्यक्ति की तैनाती होगी, जो समन्वय के साथ नजर रखने का भी काम करेगा। कहते हैं रमन सिंह के कार्यकाल में मुख्यमंत्री निवास पर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर विवेक सक्सेना की पदस्थापना हुई थी।
अमित जोगी का प्लान
कहते हैं जोगी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी कोरबा लोकसभा सीट से 2024 का चुनाव लड़ना चाहते हैं। खबर है कि अमित जोगी ने विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा को भरपूर साथ दिया। इस अहसान के बदले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अमित जोगी को सीआरपीएफ की सुरक्षा दे दी। कहा जा रहा है कि अमित जोगी की कोशिश है कि जोगी कांग्रेस का भाजपा में विलय हो जाय और उन्हें भाजपा कोरबा से उम्मीदवार बना दे। माना जा रहा है कि भाजपा के पास अभी कोरबा के लिए कोई दमदार प्रत्याशी नहीं है। कोरबा से नेता प्रतिपक्ष डॉ चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत अभी सांसद हैं। अब देखते हैं अमित जोगी की रणनीति कितनी सफल होती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने वाली जोगी कांग्रेस 2023 में शून्य पर रही।
अब बारी कांग्रेस सचिवों की
कहते हैं कि कांग्रेस की नेता सैलजा को छत्तीसगढ़ की प्रभारी महासचिव के पद से हटाने के बाद अब सचिवों की बारी है। छत्तीसगढ़ में चंदन यादव, विजय जांगिड़ और सप्तगिरि शंकर उल्का कांग्रेस के प्रभारी सचिव हैं। विजय जांगिड़ तो सैलजा से अटैच थे। सैलजा के जाने के बाद जांगिड़ का जाना तय माना जा रहा है। पूर्व विधायक डॉ विनय जायसवाल ने चंदन यादव पर सीधे आरोप लगाया है। इस कारण चंदन यादव पर गाज गिरनी तय मानी जा रही है। सप्तगिरि आदिवासी नेता हैं। सप्तगिरि के प्रभाव से बस्तर में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बस्तर की 12 सीटों में से आठ सीटें कांग्रेस हार गई। 2018 में उसे 11 सीटें मिली थीं।
विभाग बांटने में आखिर देरी क्यों हुई ?
मंत्रियों को शपथ के पूरे आठ दिन बाद विभाग मिल पाया। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की शपथ के एक हफ्ते बाद ही मंत्रिमंडल का गठन हो पाया। मंत्रियों के चयन और उन्हें विभाग देने में देरी को लेकर चर्चा गर्म है। कहते हैं पहले भाजपा संगठन पुराने नेताओं को मंत्री बनाने के पक्ष में नहीं था। बताते हैं भाजपा की पहली लिस्ट में पुरंदर मिश्रा, गजेंद्र यादव और खुशवंत साहेब जैसे विधायकों का नाम था। खबर है कि पुराने नेताओं की नाराजगी से लोकसभा चुनाव में नुकसान के भय के चलते पहले मंत्री रह चुके लोगों को साय कैबिनेट में जगह दी गई। कहा जा रहा है पहले 13 दिसंबर को ही मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के साथ मंत्रियों को भी शपथ दिलाने का प्लान था। दिग्गजों को मनाने के फेर में मत्रियों की शपथ 22 दिसंबर को हो सकी। फिर विभागों के वितरण का आफ्टर इफैक्ट का विश्लेषण करने में ही संघ और भाजपा के बड़े नेताओं को आठ दिन लग गए। कहते हैं विभाग से ज्यादा व्यक्ति मैटर करता है। यह बताना शरू कर दिया है एक मंत्री ने। उन्होंने अपने विभागों की मार्केटिंग शुरू कर यह बताने की कोशिश कर दी है कि उन्हें मिले विभाग उनके कद के अनुरूप हैं।
सरकार के केंद्र में ओपी चौधरी
विष्णुदेव साय की सरकार में ओपी चौधरी वित्त मंत्री बनाए गए हैं। रामचंद्र सिंहदेव और अमर अग्रवाल के बाद चौधरी राज्य के तीसरे वित्त मंत्री हैं। 2007 के बाद 2018 तक मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने वित्त विभाग अपने पास ही रखा। इसके बाद कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वित्त विभाग किसी को नहीं दिया। वित्त विभाग से हर विभाग का वास्ता पड़ता है। बजट आबंटन से फाइल में मंजूरी तक। ऐसे में कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बाद ओपी चौधरी सरकार के केंद्र में रहेंगे। ओपी चौधरी के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। खाली खजाना और कर्ज के बोझ के बीच रास्ता निकालते हुए उन्हें मोदी की गारंटियों को पूरा करने के लिए विभागों को पैसा देना होगा। ब्यूरोक्रेट से राजनेता बने गणित के विद्यार्थी रहे चौधरी कौन सा फार्मूला निकालते हैं, उसका इंतजार है।
कर्म का फल
कहते हैं न जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा। ऐसा ही कुछ एक भाजपा नेता के साथ हो गया। इस भाजपा नेता को साय मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए बड़े एप्रोच लगे। भाजपा नेता मंत्री बनने की दौड़ में आगे थे, पर पिछला काम उन्हें ले डूबा। खबर है कि नेताजी को उनके अच्छे दिनों में संगठन में कुछ काम सौंपे थे। नेताजी संगठन के मापदंड पर खरे उतरने की जगह बहती गंगा में हाथ धो लिया। पिछले पांच साल में उनका जाति प्रेम भी इस बार उनके मंत्री बनने में रोड़ा बन गया। अब नेताजी वरिष्ठ और अनुभवी होने के बाद भी खाली हाथ रह गए।
चीफ सेक्रेटरी तो बने रहेंगे
कहते हैं चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन भाजपा सरकार में चलते रहेंगे। एक तो अमिताभ जैन ने कांग्रेस मानसिकता के होने की छवि नहीं बनाई, दूसरा उनका कोई विकल्प नहीं है। सुब्रत साहू दौड़ में थे, उन्हें इस सरकार ने साइड लाइन कर दिया है । सुब्रत साहू को मुख्यमंत्री सचिवालय से हटाकर उनके विभाग फिलहाल यथावत रखे हैं। चर्चा है कि प्रशासनिक फेरबदल में उनके विभाग बदल दिए जाएंगे। खबर है कि सुब्रत साहू दूसरे विभागों की बैठक में अब नजर नहीं आते। रेणु पिल्लै को भी मुख्य सचिव बनाने के पक्ष में भाजपा नहीं है।
अगला डीजीपी कौन ?
डीजीपी अशोक जुनेजा का बदला जाना तय माना जा रहा है। अशोक जुनेजा के बाद सबसे वरिष्ठ 1990 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा हैं, पर वे अगले महीने रिटायर होने वाले हैं। राजेश मिश्रा को सेवावृद्धि मिल जाय तो उनका नंबर लग सकता है। राजेश मिश्रा केंद्र सरकार में भी काम कर चुके हैं। भूपेश सरकार में राजेश मिश्रा लूप लाइन में थे। नए डीजीपी के लिए अरुण देव गौतम और पवन देव का नाम भी चर्चा में है। वैसे नई सरकार आने के बाद जुनेजा साहब पुलिस अफसरों की मीटिंग लेकर कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने में लगे हैं, लेकिन नदी में पानी काफी बह चुका है। इस कारण लोगों को नई सरकार में नए डीजीपी का इंतजार है।
नहीं टूट रहा पद का मोह
राजनीतिक नियुक्ति वाले पद में कार्यरत एक अफसर का मोह टूट नहीं रहा है। सरकार बदलने के बाद कायदे से उन्हें बोरिया-बिस्तर बांधकर चला जाना चाहिए। नई सरकार उनकी दोबारा ताजपोशी कर दे तो अलग बात है। कहते हैं ये अफसर दोबारा पद पाने के लिए मंत्रियों के चक्कर काट रहे हैं। वैसे भाजपा शासन में ये अफसर ऊंचे ओहदे में रह चुके हैं। लेकिन अब समय बदल गया है। कहते हैं एक अफसर तो बिना विभाग के संविदा में बने हुए हैं और मंत्रालय में अपने नाम से कमरा एलाट हैं। इस अफसर के ऊपर एक जाँच एजेंसी की तलवार लटक रही है।
(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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