हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है, जोकि भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है. पूरे साल में कुल 24 और अधिकमास लगने से 26 एकादशी व्रत रखे जाते हैं. सभी एकादशी के अलग-अलग नाम और महत्व होते हैं.
परमा एकादशी का व्रत तीन साल में एक बार रखा जाता है. यह उस साल होता है, जिस साल अधिक मास या पुरुषोत्तम मास लगता है. इस बार सावन में अधिक मास लगा है. सावन अधिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को परमा एकादशी का व्रत रखा जाएगा, जोकि शनिवार 12 अगस्त 2023 को पड़ रही है.
कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि आरंभ: शुक्रवार 11 अगस्त सुबह 05:06
कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि समाप्त: शनिवार 12 अगस्त सुबह 06:31
हिंदू धर्म में उदयातिथि का महत्व होता है और इसके अनुसार एकादशी का व्रत 11 अगस्त को रखा जाना चाहिए था. लेकिन तिथि क्षय होने के कारण परमा एकादशी का व्रत 12 अगस्त को मान्य होगा.
परमा एकादशी व्रत कथा (Parama Ekadashi Vrat Katha)
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते हैं. ब्राह्मण बहुत धर्मात्या था और पत्नी भी पवित्र एवं पतिव्रता थी. लेकिन पूर्व में किए किसी पापी के कारण दंपती गरीबी में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. कभी-कभी तो ब्राह्मण को भिक्षा भी नहीं मिलती थी और दंपति को भूखे पेट ही सोना पड़ता था. दोनों पति-पत्न घोर निर्धनता में अपना जीवन बिता रहे थे.
तब एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से कहा: हे प्रिय! जब मैं धनवानों से धन की याचना करता हूं तो वे मना कर देते हैं. गृहस्थी धन के बिना नहीं चल सकती. इसलिए तुम्हारी सहमति हो तो मैं परदेस जाकर कुछ धन कमाऊं. ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, हे स्वामी! अगर कोई दान नहीं करता तो प्रभु ही उसे अन्न देते हैं, इसलिए आपको इसी स्थान पर रहना चाहिए. मैं भी आपका विछोह नहीं सह सकती. पति बिना स्त्री की माता, पिता, भाई, श्वसुर और सगे-सम्बंधी सभी उसकी निंदा करते हैं. इसलिए स्वामी कृपा करके आप कहीं न जाएं, जो भाग्य में होगा, हमें वह यहीं से प्राप्त हो जाएगा.
पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण वहीं रुक गया और परदेश नहीं गया. इसी तरह ब्राह्मण दंपती गरीबी में अपना जीवन बिताते रहे. कुछ समय बाद वहां कौण्डिन्य ऋषि आए. ऋषि को देखकर दंपति ने उन्हें प्रणाम किया और बोले, आज आपके दर्शन से हम धन्य हो गए और हमारा जीवन सफल हुआ. दंपति ने ऋषि को आसन दिया और भोजन का प्रबंध किया. इसके बाद ब्राह्मण की पत्नि के ऋषि से कहा- हे ऋषिवर! कृपा करके आप हमें दरिद्रता नाश करने की कोई विधि व उपाय बताइए. मैंने अपने पति को परदेश जाकर धन कमाने से रोका है. भाग्य से आप भी यहां आ गए. मुझे पूरा विश्वास है कि, अब हमारी दरिद्रता जल्द ही नष्ट हो जाएगी.
कौण्डिन्य ऋषि बोले, मलमास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के व्रत से सभी पाप, दुख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं. इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति धनवान होता है. क्योंकि यह एकादशी धन-वैभव देती है और पापों का नाश करती है. धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी का व्रत किया था, जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद दिया. इतना ही नहीं इसी व्रत के प्रभाव से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को भी पुत्र, स्त्री और राज्य की प्राप्ति हुई थी.
इसके बाद कौण्डिन्य ऋषि ने दंपति को परमा एकादशी व्रत के विधान बताए. ऋषि ने कहा, परमा एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर पंचरात्रि व्रत आरंभ करना चाहिए. जो पांच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने माता-पिता और स्त्री सहित स्वर्ग लोक को जाते हैं. जो पांच दिन तक केवल संध्या भोजन करते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं, जो स्नान करके पांच दिन तक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, वे समस्त संसार को भोजन कराने का पुण्य पाते हैं, जो इस व्रत में अश्व दान करते हैं उन्हें तीनों लोकों को दान करने का फल मिलता है, जो ब्राह्मण को तिल दान करते हैं वे तिल की संख्या के बराबर वर्षो तक विष्णुलोक में वास करते हैं, जो मनुष्य घी का पात्र दान करते हैं वह सूर्य लोक को जाते हैं, जो पांच दिन तक ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हैं वे देवांगनाओं के साथ स्वर्ग को जाते हैं. तुम भी अपने पति के साथ इस व्रत को करो. इससे तुम्हें अवश्य ही जीवन में सिद्धि और मरणोपरांत स्वर्ग की प्राप्ति होगी.
कौण्डिन्य ऋषि के कहेनुसार, ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने अधिक मास की परमा एकादशी का पांच दिन तक व्रत किया. व्रत पूरा होने के बाद ब्राह्मण की पत्नी ने अपने घर पर एक राजकुमार को आते देखा. राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से उसे सभी वस्तुओं से परिपूर्ण एक उत्तम घर दिया और आजीविका के लिए एक गांव भी दिया. इस तरह से दंपति की गरीबी दूर हो गई और धरती पर सुख भोगने के बाद उन्हें श्रीविष्णु के लोक में स्थान प्राप्त हुआ.