जीवन एस साहू/गरियाबंद
गरियाबंद। गरियाबंद जिले में एक ऐसा गांव है जो बीहड़ क्षेत्र के पहाड़ी में बसा हुआ है। तेजी से दौड़ती इस सदी में भी इस गांव के रहवासी प्रदेश के मुख्यमंत्री और अपने विधायक और सांसद तक को नहीं जानते। गुमनामियों में गुम इस गांव के मतदाता ये भी नहीं जानते की प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और इनके विधान सभा क्षेत्र में प्रत्याशी कौन हैं। हम बात कर रहे गरियाबंद जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर गाहंदर गांव की।
आजादी के 76 वर्ष बीत जाने के बाद भी लोग बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे है, सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ की सुविधाओं से पूरी तरह से वंचित है। संचार माध्यम में एक रेडियो है जिनसे कभी कभार देश दुनिया की खबरें मिलता है।
गांव के बच्चों के लिए शिक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है पर वह भी नहीं मिल रहा है और नही गांव में आंगन बाड़ी हैविशेष पिछड़ी जनजाति कमार जनजाति के लोग यहां निवास करते है, लेकिन इनकी सुध लेने वाला न तो प्रशासन है, और न ही जन प्रतिनिधि और तो और चुनाव में नेता भी इनसे वोट मांगने इनके गांव नही पहुंचते लेकिन ये ग्रामीण वोट डालने 8 किलोमीटर के पहाड़ी का सफर कर पहले बारुका पंचायत पहुंचते थे, इस बार तुइयाँमुड़ा जाने की बात कह रहे है।
जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा ये गांव गाहंदर है, जो आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है, बारूका पंचायत का आश्रित ग्राम गाहंदर जहां की आबादी तकरीबन 50 लोगों की है, मगर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है, आपको जानकर अचरज होगा कि गरियाबंद जिले का पहला ऐसा गांव है, जहां लोग मतदान तो करते है, पर उनका जनप्रतिनिधि उनका विधायक, उनके क्षेत्र का सांसद कौन है, ये वो नही जानते यहां तक कि प्रदेश के मुख्यमंत्री तक के नाम से ग्रामीण अनिभिज्ञ है, इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, कि इन ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
इस संबंध में गाहंदर गांव के रहने वाले तीजू राम कुमार से जब हमने पूछा कि आपके बच्चे कहां पढ़ाई करते है, तो उन्होंने बताया कि बच्चे पढ़ने के लिए बारूक़ा, गरियाबंद के होस्टल में रहने को मजबूर है, क्योंकि उनके गांव में स्कूल नहीं है, अगर इस गांव में रहने वाले लोगों का तबियत खराब हो जाए तो उसे कांवर में उठाकर इलाज के लिए बारऊका पंचायत या गरियाबंद ले जाया जाता है, ग्रामीण बताते है, बहुत पहले एक कलेक्टर आए थे, तो सोलर पैनल लगा था, लेकिन अब वो भी ठीक तरीके से कार्य नही करता है, ग्रामीणों से जब पूछा गया कि इस बार विधानसभा चुनाव में वो वोट करने जाने वाले है, तो उन्होंने बताया कि कल एक गुरुजी आए थे, पर्ची छोड़ के गए है, कौन प्रत्याशी है, ये तो उन्हे नहीं मालूम लेकिन मतदान केंद्र तक जाने की व्यवस्था हो जायेगी तो वो जरूर जाएंगे।
बदहाली का जीवन जीने पर मजबूर गाहंदर के लोगों का तकदीर और तस्वीर कब बदल पाएगी ये तो पता नही ? मगर इतना जरूर है, कि इनके वोटों से नेताओं की तकदीर जरूर बदल जाती है, अगर शासन प्रशासन का इन ग्रामीणों पर थोड़ी भी मेहरबानी होती तो शायद 21वी सदी में ग्रामीण अपने विधायक, सांसद और मुख्यमंत्री का नाम जरूर जानते।