रायपुर। महंत लक्ष्मी नारायण दास महाविद्यालय रायपुर में आज इंटर क्वालिटी इंश्योरेंस सेल और इनफ्लुएंस इनोवेशन काउंसिल के संयुक्त तत्वाधान में तृतीय लिंग के अधिकारों की जागरूकता विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी में प्रमुख रूप से राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर काउंसिल की सदस्य विद्या राजपूत, रवीना एवं देवनाथ शामिल हुए. वहीं आयोजन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर देवाशीष मुखर्जी की विशेष उपस्थिति रही. आयोजन में प्रमुखता से विषय पर बातचीत रखते हुए राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर काउंसिल की सदस्य विद्या राजपूत ने कहा कि ट्रांसजेंडर एक ही माता-पिता की संतान से जन्म लेते हैं. तो उनके साथ भेदभाव क्यों किया जाता है। उनका कहना था कि ट्रांसजेंडर आज सभ्य समाज में एक अलग पहचान बनाकर आगे आ रहे हैं,इसलिए जन्म देने वाले माता-पिता और समाज को स्वीकार्यता के साथ समझना होगा। तभी यह अलगावपन का भाव दूर हो पाएगा इससे ट्रांसजेंडरों की स्थिति में भी काफी बदलाव आने की संभावना है। राष्ट्रीय स्तर पर और प्रादेशिक स्तर पर कानून में बदलाव से ट्रांसजेंडरों की स्थिति में काफी फर्क पड़ा है लेकिन समुदाय के बीच पनप रही मानसिकता के कारण अभी भी वैचारिक लड़ाई जारी है.
वही कार्यक्रम में काउंसिल की सदस्य रवीना ने विस्तार से अपनी बातचीत रखी और यह बताया कि ट्रांसजेंडर निचले स्तर पर क्यों देखा जाता है। उनका कहना था कि आधुनिक दौर में विद्यार्थियों के बीच ट्रांसजेंडर को लेकर दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है लेकिन यह बदलाव समाज के अंदर भी जरूरी है उन्होंने प्राचीन काल में ट्रांसजेंडर के अलग-अलग नाम की चर्चा करते हुए महत्व को प्रतिपादित किया और बताया कि किस दौर में ट्रांसजेंडर की क्या संवेदनशीलता रही और उसके क्या मायने और फर्क पड़े रामायण से लेकर महाभारत में उपयोगी नाम का विस्तार से परिचय रखते हुए सदस्य रवीना ने इस बात पर जोर दिया कि समाज को स्वीकारता रखनी होगी। तभी तृतीय लिंग सामाजिक स्तर पर आगे आ पाएंगे उन्होंने महाभारत में शिखंडी और अर्जुन की भूमिकाओं को दर्शाते हुए तृतीय लिंग के वैधानिकता को प्रतिपादित किया। उनके द्वारा गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई के माध्यम से रामायण और रामचरितमानस के मार्मिक प्रसंगों को देखकर यह समझने की कोशिश की की किस तरह से एक ट्रांसजेंडर समाज के अंदर बदलाव की स्थिति में खड़ा है.
उनके द्वारा जैन धर्म गुप्तकालीन सभ्यता कामसूत्र संस्कृति आदि विषयों पर भी विश्लेषण रखते हुए यह बताया कि मंदिरों में भी तृतीय लिंग के उपस्थिति को स्वीकार किया गया है। उनका कहना था कि ट्रांसजेंडर गुप्तचर की भूमिका से लेकर अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में मलिक काफूर की भूमिका निभा चुके हैं ऐसे में इस्लाम ने भी ख्वाजा सारा का नाम सन 1857 की लड़ाई में ट्रांसजेंडर की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उनका कहना था कि गया के संग्रहालय में आज भी तृतीय लिंग के कई चिन्ह मौजूद हैं जो जानकारी में सभी लोगों को आना चाहिए। उनके द्वारा वर्ष 2019 में बनाए गए उभय लिंगो अधिकार संरक्षण कानून पर विशेष बातचीत रखते हुए आए परिवर्तनों को विस्तार से जानकारी में रखा गया. लेकिन इस बात से चिंतित हैं कि गुरु चेलाकी परंपरा में तृतीय लिंग के वर्ग के साथ अन्याय और शोषण हो रहा है, जो उचित नहीं है बदलाव तभी आएगा।
जब रोजगार में प्राथमिकता मिले उच्च शिक्षा में प्राथमिकता दी जाए परिवार का हिस्सा बनाया जाए। तभी यह असहजता की भावना दूर हो पाएगी कार्यक्रम में देवनाथ ने ट्रांसजेंडर महिला एवं पुरुष के बारे में जानकारी रखी और बताया कि प्रशासनिक स्तर पर किस तरह से वर्गों को देखा जा रहा है बायोलॉजिकल तौर पर महिला एवं पुरुष किन्नर क्या व्यवस्थाएं हैं। आयोजन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर देवाशीष मुखर्जी ने स्वागत उत्पादन दिया और बताया कि ट्रांसजेंडर की पौराणिक कथाओं में चर्चा रही है फिर भी समाज तृतीय लिंग के वर्ग एक अलग नजरिया से देखा है जो कि गलत है. इसमें बदलाव आना बेहद जरूरी है कार्यक्रम का संचालन महाविद्यालय की शिक्षिका प्रोफेसर अर्चना के द्वारा किया गया इस आयोजन में सभी शिक्षक और शिक्षाएं भी उपस्थित रहे.