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पेंशन निर्धारण में देरी से परेशान इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक

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रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में अप्रैल 2024 के बाद सेवानिवृत्त हुए प्राध्यापकों और वैज्ञानिकों को पेंशन निर्धारण में हो रही देरी से भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय के लेखा नियंत्रक और संयुक्त संचालक ऑडिट द्वारा पेंशन प्रकरणों पर अनावश्यक आपत्तियां लगाई जा रही हैं, जिससे पेंशन का भुगतान 10 से 12 महीने बाद भी नहीं हो पाया है।
इस मामले में तीन मुख्य आपत्तियां सामने आई हैं, जो सेवानिवृत्त कर्मचारियों की मुश्किलें बढ़ा रही हैं।
सेवानिवृत्ति की आयु पर विवाद: विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार प्राध्यापकों की अधिवार्षिकी (सेवानिवृत्ति) की आयु 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी गई है। इस नियम का लाभ पूर्व में भी वैज्ञानिकों और प्राध्यापकों को दिया जा चुका है। इसके बावजूद, ऑडिट विभाग द्वारा इस पर आपत्ति ली जा रही है।



पीएचडी की अनिवार्यता पर आपत्ति : जो प्राध्यापक 1986 के बाद जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (जेएनएयू) द्वारा नियुक्त होकर आईजीएयू में समायोजित हुए थे, उनके पीएचडी प्रकरणों को लेकर भी आपत्ति उठाई जा रही है, जबकि आईजीएयू में पीएचडी अध्ययन अवकाश का नियम 1991 में बना था, जिससे जेएनएयू से आए प्राध्यापकों के लिए 5 वर्ष के भीतर पीएचडी करने की अनिवार्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। यह भी बताया गया है कि 1987 में आईजीएयू द्वारा नियुक्त किए गए पहले बैच के प्राध्यापक भी बिना पीएचडी के थे और उनके नियुक्ति पत्र में यह शर्त नहीं थी।

प्रतियोगिता परीक्षा की शर्त: 1989 में नियुक्त सहायक प्राध्यापक/वैज्ञानिकों की सेवा शर्तों में प्रतियोगिता परीक्षा पास करने की शर्त थी। यह परीक्षा भारत में कहीं भी आयोजित नहीं की गई थी, और विश्वविद्यालय के पूर्व बोर्ड ने इस शर्त को पहले ही निरस्त कर दिया था। इसके बावजूद, ऑडिट विभाग इस मुद्दे को उठा रहा है, जिससे इन प्राध्यापकों का पेंशन निर्धारण भी रुका हुआ है।
प्रबंधन मंडल के सदस्यों ने कुलपति को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि इन परिस्थितियों को देखते हुएआगामी बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे को प्राथमिकता से रखा जाए और जल्द से जल्द इसका समाधान किया जाए, ताकि सेवानिवृत्त प्राध्यापकों को उनकी पेंशन मिल सके। इस मामले पर अभी तक विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है।