#संपादकीय

ओडिशा में बीजद की टूट: ‘धृतराष्ट्र’ से बगावत और बिखराव की कहानी

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24 साल तक ओडिशा की सत्ता पर राज करने वाला बीजू जनता दल (बीजद) अब अंदरूनी कलह और बगावत के भंवर में फंसता दिखाई दे रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली पार्टी को हाल के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद से ही असंतोष के स्वर तेज हो गए हैं और अब कई वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने या निकाले जाने से यह टूट खुलकर सामने आ रही है।

निलंबन का सिलसिला:
पार्टी ने हाल ही में महिला प्रकोष्ठ की महासचिव श्रीमयी मिश्रा को निलंबित कर दिया है, जिस पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। श्रीमयी मिश्रा ने महाभारत का उदाहरण देते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट में नवीन पटनायक की तुलना बिना नाम लिए ‘धृतराष्ट्र’ से की थी। उन्होंने लिखा था, “कुछ लोग धृतराष्ट्र की तरह अंधे हो जाते हैं और गलतियों को रोक नहीं पाते…इतिहास ऐसे अयोग्य राजाओं को कभी माफ नहीं करता।” इस तीखी टिप्पणी को उनके निलंबन का मुख्य कारण माना जा रहा है। श्रीमयी मिश्रा ने निलंबन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने कभी आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया और उन्हें निलंबित करने पर लोग हंसेंगे उनके अलावा मयूरभंज के पूर्व जिला सचिव प्रवीर चंद्र स्वांई और कप्तिपड़ा के पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष सुभाष चंद्र स्वांई को भी निलंबित किया गया है।

नेताओं का पलायन और समानांतर संगठन की सुगबुगाहट
यह संकट केवल निलंबन तक सीमित नहीं है। पिछले कुछ दिनों में कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। बीते 10 सितंबर को पूर्व कानून मंत्री जगन्नाथ सरका को रायगड़ा जिला इकाई का अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में पूर्व राज्यसभा सदस्य एन भास्कर राव और पूर्व मंत्री लाल बिहारी हिमिरिका ने इस्तीफा दे दिया। राव ने बीजू स्वाभिमान मंच (बीएसएम) के नाम से एक नया सामाजिक संगठन बनाने की घोषणा की, जिसका उद्देश्य रायगड़ा का विकास करना और दिवंगत बीजू पटनायक की विचारधारा को आगे बढ़ाना है।

इसके बाद 12 सितंबर को पूर्व मंत्री प्रफुल्ल कुमार मलिक को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में निलंबित कर दिया गया। मलिक, जो नवीन पटनायक के करीबी माने जाते थे, ने बयान दिया था कि अगर पार्टी ठीक से काम नहीं करती है तो वे इसे छोड़ सकते हैं।
इन इस्तीफों पर बीजद प्रवक्ता लेनिन मोहंती ने कहा कि ये नेता जनता के लिए काम नहीं करते और इनका जाना पार्टी के लिए एक वरदान है। उन्होंने यह भी दावा किया कि नवीन पटनायक के नेतृत्व में पार्टी रायगड़ा में और मजबूत होगी।

क्या ओडिशा में भी ‘शिंदे’ जैसा कोई है?
पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अमर प्रसाद सतपथी ने भी एक नई पार्टी के गठन के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही एक नई बीजद आकार ले सकती है, जिसमें सिर्फ सच्चे कार्यकर्ता शामिल होंगे। सतपथी ने कहा कि यह असंतोष केवल रायगड़ा तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में फैला हुआ है। उन्होंने विश्वास जताया कि बीजद के भीतर से ही एक नई शुरुआत होगी। जब उनसे पूछा गया कि क्या ओडिशा की राजनीति में भी महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे जैसा कोई व्यक्ति मौजूद है तो उन्होंने पौराणिक उदाहरण देते हुए कहा, “कौन जानता है कि व्यक्ति अभी गोपा में है या मथुरा पहुंच चुका है?” यह टिप्पणी पार्टी के भीतर एक बड़ी बगावत की ओर इशारा करती है।

बिखराव के पीछे क्या है कारण?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 24 साल तक सत्ता में रहने के बाद पहली बार विपक्ष में आने से पार्टी में यह टूट स्वाभाविक है। हार के बाद नेताओं में निराशा और असंतोष बढ़ रहा है। हालांकि कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ी है, उनकी राजनीतिक हैसियत इतनी नहीं है कि वे नवीन पटनायक की पार्टी को कोई बड़ा नुकसान पहुंचा सकें। इनमें से कई नेता उम्रदराज हो चुके हैं और दशकों तक पटनायक के नाम पर ही चुनाव जीतते रहे हैं।
फिलहाल बीजद का रुख बागी नेताओं को मनाने के बजाय सीधे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का है। यह साफ है कि असंतुष्ट नेताओं के नेतृत्व में जल्द ही एक समानांतर बीजद खड़ा हो सकता है, जो आने वाले दिनों में ओडिशा की राजनीति में एक नया अध्याय लिखेगा।

स्वार्थ अक्सर प्रमुख भूमिका निभाता है। बीजद का वर्तमान संकट भी इसी बात का एक उदाहरण है।
हाल ही में पार्टी छोड़कर गए या निकाले गए नेता, जैसे कि एन भास्कर राव और प्रफुल्ल कुमार मलिक, दशकों तक नवीन पटनायक के नेतृत्व में काम करते रहे। उनकी सफलता का एक बड़ा हिस्सा नवीन पटनायक की लोकप्रियता और पार्टी के संगठित ढांचे पर निर्भर था। अब जब पार्टी हार चुकी है और सत्ता से बाहर है तो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और असंतोष खुलकर सामने आ रहे हैं।

यह भी सच है कि ये नेता अभी तक इतने मजबूत नहीं माने जाते कि अकेले दम पर बीजद को बड़ी चुनौती दे सकें, लेकिन अगर वे मिलकर एक समानांतर बीजेडी का गठन करते हैं, जैसा कि अमर प्रसाद सतपथी जैसे नेता संकेत दे रहे हैं तो स्थिति बदल सकती है। यह नया समूह भविष्य में सत्ता की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण तीसरा पक्ष बन सकता है, खासकर तब जब कांग्रेस भी ओडिशा में खुद को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

राजनीति की दुनिया में आज का बागी कल का गठबंधन सहयोगी हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये बागी नेता भविष्य में किसी और पार्टी से हाथ मिलाते हैं या अपनी एक नई राह बनाते हैं।
यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि आगामी चुनावों में जनता किसे अपना समर्थन देती है और क्या नवीन पटनायक फिर से अपनी पार्टी को एकजुट कर पाते हैं?