रामायण काल से ओत-प्रोत बाली : आबादी से ज्यादा पर्यटक आते हैं इस द्वीप में सालाना

रवि भोई
इंडोनेशिया के द्वीप बाली के चौक-चौराहों में राम सीता, हनुमान और पक्षी राज गरुड़ की प्रतिमाएं नजर आतीं हैं और यहां नृत्य के माध्यम से लंका दहन, सीता हरण और राम-रावण युद्ध की प्रस्तुतियां रामायण काल को जीवंत कर देती हैं। बाली द्वीप की आबादी 43 लाख से कुछ अधिक है, पर इससे कहीं ज्यादा पर्यटक हर साल यहां घूमने आते हैं। मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया के बाली द्वीप में रहने वाले करीब 90 फीसदी लोग हिंदू हैं, उनका रहन-सहन, परंपरा और पहनावा भले अलग है, पर वे भारतीयों को अपना वंशज ही मानते हैं। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भारत और बाली का संबंध बहुत मजबूत है। बाली में भारतीय संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। यहाँ के मंदिर, त्योहार और रीति-रिवाज भारतीय संस्कृति से प्रेरित हैं।
इंडोनेशिया में आधिकारिक तौर पर 17,508 द्वीप हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा द्वीपसमूह देश है, जो हिन्द और प्रशांत महासागरों के बीच स्थित है। इनमें से लगभग 6,000 द्वीपों पर ही लोग निवास करते हैं। इनमें से एक बाली है। बाली द्वीप विविधताओं से भरा है। बाली प्रांत की राजधानी देनपसार है। अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का दल 26 अगस्त को देनपसार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। यहां पर दल के सदस्यों का फूल-मालाओं से स्वागत किया गया। बाली की यही परंपरा है। पहले दिन एक भारतीय रेस्टोरेंट में भोजन के बाद होटल पहुंचे। रास्ते में लोकल सिम लेने के साथ इंडोनेशियन रुपया भी एक्सचेंज करा लिया। भारतीय रुपए की तुलना में इंडोनेशियन रुपया का मूल्य काफी कम है। एक नारियल पानी की कीमत 20 से 30 हजार तक है। एक व्यक्ति के खाने का बिल तो लाखों में ही बनता है। बाली में जगह-जगह भारतीय रेस्टोरेंट्स नजर आते हैं और भारतीय टेस्ट का खाना आसानी से मिल जाता है। अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का दल पांच दिन बाली में ठहरा। सम्मेलन के आयोजन के साथ दल के सदस्यों ने कई स्थलों का भ्रमण भी किया।
बाली के हर घर और दुकान के सामने गणेश जी की प्रतिमा देखने को मिलती है। बाली के लोग घर-दुकान या अपने संस्थान के सामने पत्ते के दोनों में फल-फूल अर्पण करते हैं। बाली के लोग बड़े ही धार्मिक हैं। हमें गाइड ने बताया कि बाली के लोग रोजाना तीन सुबह-दोपहर और शाम को पूजा करते हैं। बाली के लोगों के नाम भारतीयों से मिलते-जुलते हैं। हमारी गाइड थी लक्ष्मी। बाली में कृष्णा ओले-ओले नाम का शॉपिंग माल भी है। पहले दिन हम लोग बेनोआ बिच में बोटिंग के साथ कछुआ पार्क गए। इस बिच में कई तरह के वाटर स्पोर्ट्स चलते रहते हैं। कछुआ पार्क में सौ साल से भी अधिक आयु का कछुआ दिखा। पार्क में कई बड़े -बड़े कछुए नजर आए। कछुआ पार्क में कई तरह के पक्षी और सांप भी देखने को मिले। लंच के बाद हम लोग उबुद गए। यहां पर एक पहाड़ी पर मंदिर के साथ पक्षी राज गरुड़ की विशालकाय प्रतिमा देखने को मिली। काले रंग की प्रतिमा लोगों को आकर्षित कर रही थी। उबुद कला, शिल्प और पारंपरिक हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक पैलेस भी है। यहां से हम लोग उलुवातु मंदिर गए। उलुवातु मंदिर में प्रवेश के लिए टिकट लगता है और पूरे शरीर को ढंककर ही मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है, साथ में लाल या गेरुए रंग का गमछा कमर में बांधना होता है, जो मंदिर परिसर में ही निःशुल्क मिलता है। वापसी में वहीं लौटाना होता है। उलुवातु मंदिर बाली के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है | यह मंदिर बाली की दक्षिण पश्चिम दिशा में समुद्र के किनारे पर 70 फीट ऊंची चट्टान के ऊपर बना हुआ है| उलुवातु मंदिर परिसर में बहुत सारे बंदर भी देखने को मिलते हैं। यहाँ के बंदर बहुत शरारती हैं, जो आते -जाते पर्यटकों का सामान छीन लेते हैं| बंदरों ने हमारे दल के तीन-चार सदस्यों के चश्मे ले लिए। बाद में लोकल लोगों की मदद से उनसे हासिल किया। इसके लिए कुछ इंडोनेशियाई रुपये देने पड़े।
उलुवातु मंदिर परिसर में समुद्र के किनारे शाम को रोजाना दो शो में केचक नृत्य होता है। समुद्र की उठाटी लहरों के बीच केचक नृत्य का आनंद लेने के लिए काफी भीड़ होती है। यह नृत्य खुले आसमान के नीचे होता है। केचक बाली का लोकप्रिय नृत्य है, जो रामायण महाकाव्य के पात्रों पर आधारित है। इसमें नर्तकों का एक समूह लयबद्ध तरीके से “चक चक चक” का उच्चारण करता है और इसके बीच में पात्रों का अभिनय होता है।केचक नृत्य में सीता हरण, लंका दहन और राम-रावण युद्ध का दृश्य लोगों को आनंदित कर देता है। नृत्य के दौरान हनुमान के आगमन की शैली ने सबको लुभाया। इस नृत्य में पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग नहीं होता, बल्कि नर्तकों की समूह चीख और गति ही संगीत का काम करती है। अगले दिन हम लोग बेदुगुल में पुरा उलून दानू ब्रतन नाम का खूबसूरत मंदिर देखने गए। यह मंदिर ब्रतन झील के किनारे बना हुआ है जिसकी खूबसूरती लाजवाब है | इस पवित्र झील और मंदिर की बाली में बहुत मान्यता है | कहा जाता यह मंदिर शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में खूबसूरत गार्डन भी है। परिसर में जगह-जगह आकर्षक द्वार भी देखने को मिले। यहाँ पर लोगों ने खूब फोटोग्राफी की। मंदिर दर्शन के बाद लंच किया, फिर सक्रिय ज्वालामुखी देखने गए। यह ज्वालामुखी किंतामणि क्षेत्र में है। किंतामणि क्षेत्र बटूर झील से घिरा हुआ है। कहते हैं, ज्वालामुखी के कारण इस इलाके में धान की खेती नहीं होती, तो लोग सब्जी और फल उगाते हैं। किंतामणि इलाके में छोटी-छोटी गुफाएं हैं। बताया गया कि बाली निवासी डच शासक पर हमले के बाद उनमें छिप जाते थे। इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में जावानीस और डच आक्रमण हुए थे, जिससे द्वीप विभाजित हो गया। बाली में 1940 के दशक तक डच शासन रहा। बाली ज्वालामुखी प्रभावित क्षेत्र है। कभी भी ज्वालामुखी फट जाते हैं। ज्वालामुखी देखने के बाद हम लोग तनाह लोट मंदिर गए। समुद के भीतर स्थित इस मंदिर परिसर में लो-टाइड (जब समुद्र का पानी पीछे चला जाता है) के समय ही जाया जा सकता है। तनाह लोट मंदिर बाली इंडोनेशिया की सबसे पवित्र जगहों में से एक है| यह मंदिर बाली की पहचान है| इस मंदिर का निर्माण इंडोनेशिया के ईस्ट जावा से आए एक पुजारी नीरथ ने सोलवहीं सदी में करवाया था | यह मंदिर समुद्र के देवता वरुण को समर्पित है | इस मंदिर से कुछ दूरी पर चट्टान के नीचे सांप रहते हैं जो इस मंदिर की रक्षा करते हैं | सबसे आश्चर्य की बात यह है कि समुद्र के भीतर इस मंदिर परिसर में एक झरना है, जिसका पानी मीठा है। पुजारी वह पानी वहां जाने वालों को देते हैं।
उबुद के पास तेगल्लालंग राइस टेरेस है। यह हरे-भरे धान के खेत और प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है। यह इलाका नवविवाहित जोड़ों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ तरह-तरह के झूले हैं। बाली का लुवाक काफी प्रसिद्ध है। हम लोगों को एक कॉफी के बागान में ले जाया गया, वहां तरह-तरह के चाय और कॉफी का टेस्ट कराया गया। इसमें लुवाक कॉफी का भी जिक्र हुआ । लुवाक कॉफी सिवेट नाम के जानवर के मल के उपयोग से तैयार की जाती है| सिवेट नाम का जानवर दिखने में बिल्ली जैसा है, बस उसकी पूंछ थोड़ी लंबी है| उस बागान में सिवेट जानवर को देखा जिसका उपयोग लुवाक कॉफी में होता है| सिवेट जानवर कॉफी की चैरी को खाता है| कॉफी के बीज भी यह जानवर खा जाता है, लेकिन सिवेट इन बीजों को पचा नहीं पाता| कॉफी के बीज सिवेट की पॉटी (मल) में ऐसे ही आ जाते हैं| इन कॉफी के बीजों को साफ करके चूल्हे की आग पर भून कर फिर उसे पीसकर उसके पाउडर को छानकर लुवाक कॉफी तैयार की जाती है| ऐसा माना जाता है सिवेट कॉफी के बीज को पचाता तो नहीं है, लेकिन उसकी अंतड़ियों से निकले रसायन से कॉफी के बीजों की गुणवत्ता काफी बढ़ जाती है| इसीलिए लुवाक कॉफी इंडोनेशिया की सबसे महंगी कॉफी है| यात्रा के दौरान एक दिन हम लोग बाली के खूबसूरत तेगेनुंगन वाटरफॉल भी देखने गए| यह जगह कुदरती नजारों से भरपूर है| बाली में देखने के लिए टूरिस्ट स्पॉट हैं। हम लोग बाली में पांच दिन रुके। कुछ दिन और होता तो कुछ जगह और जाया जा सकता था। वैसे एक हफ्ते की यात्रा पर्याप्त है। टूरिस्ट प्लेस होने के कारण बाली में खाने-पीने की चीजें कुछ महंगी हैं। पर समुद्र, हरियाली, पहाड़ मन को आनंदित कर देते हैं और दोबारा आने की इच्छा जगा जाते हैं।