भारतीय ज्ञान परंपरा से परिपूर्ण जनजातीय समाज: प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल
रायपुर। जनजातीय समुदाय प्राचीन काल से अपने आसपास के परिवेश एवं प्राकृतिक संसाधनों की अद्भूत समझ से सुखमय जीवन व्यतीत करता हुआ आ रहा है। जिसमें पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव कम देखने को मिलता है। अन्य भारतीय समाजों की तरह जनजातीय समाज भी परंपरागत प्राचीन ज्ञान से समृद्ध रहा है। परन्तु उनके ज्ञान को वो महत्व नहीं दिया गया जितना कि अन्य समाजों के ज्ञान को दिया गया। उपरोक्त वक्तव्य प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल, कुलपति, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत : एतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान विषय पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में अध्यक्षीय उद्बबोधन में कहा।
उपरोक्त कार्यशाला में मुख्य वक्ता श्री राजीव शर्मा, सह सचिव, वनवासी विकास समिति रायपुर ने ब्रिटिश शासन में जनजातीय समुदाय के अपने अधिकारों के लिए किए गए संघर्ष एवं स्वतन्त्रता आंदोलनों में किए गए उत्कृष्ट योगदानों के महत्व पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए शहीद वीर नारायण सिंह, वीर गुण्डाधूर, भगवान बिरसा मुण्डा, तिलका मांझी, रानी दुर्गावती, वीर बुद्धु भगत, वीर कान्हो-सिद्धो, भीमा नायक, भील समुदाय के गुरु गोविंदगुरु, भोपाल की गोंड रानी कमलापति आदि के द्वारा किए गए समाज कल्याण कार्यों एवं संघर्षो का उल्लेख किया। साथ ही गोंड राजाओं के समृद्ध सांस्कृतिक विरासतों की जानकारी दी गई। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. रविन्द्र ब्रम्हें, प्राध्यापक, अर्थशास्त्र अध्ययनशाला ने कार्यक्रम की प्रस्तावना एवं स्वागत भाषण में जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास और प्रकृति के साथ साहचर्य एवं सरल जीवन पद्धति पर प्रकाश डाला।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डाॅ. बन्सो नुरूटी, इतिहास अध्ययनशाला एवं संचालन कार्यक्रम के सह-संयोजक डाॅ. सुनील कुमेटी, अर्थशास्त्र अध्ययनशाला द्वारा किया गया। कार्यक्रम में सह-सचिव के रूप में डाॅ. टीके सिंह, डाॅ. शिवेंद्र सिंह देवहरे, सामाजिक विज्ञान संकाय के प्राध्यापकगण, शोधार्थी, विद्यार्थी तथा पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से सम्बध्दित महाविद्यालयों के 120 से अधिक संयोजक एवं सह-संयोजक प्रतिभागी के रूप में उपस्थित हुए और जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास पर विचार-विमर्श किया गया। उपरोक्त महाविद्यालय के संयोजक एवं सह-संयोजकों को अपने-अपने महाविद्यालयों में इसप्रकार के जनजातीय समाज की गौरवशाली अतीत विषय पर कार्यक्रम आयोजित करने हेतु दिशा-निर्देश दिये गए। जिससे विद्यार्थियों एवं सामान्य जनमानस में जनजातीय समाज के द्वारा किए गए ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदानों की जानकारी प्रेषित हो सके।





