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लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते जिले के धार्मिक और पर्यटन स्थल, जतमई और घटारानी, भुतेश्वरनाथ मुख्य आकर्षण

जीवन एस साहू
गरियाबंद। गरियाबंद जिला अपने प्राकृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों के लिये प्रदेश ही नही देश के पर्यटन मानचित्र पर एक अलग स्थान रखता है। यह वनांचल अपने सुरम्य वादियों, पर्वत, झरना, नदियों को अपने आप में समेटे हुये है। यहां पर पवित्र धार्मिक नगरी राजिम है, वहीं जतमई और घटारानी जैसे दो महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल भी पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है। जतमई धाम स्थल गरियाबंद जिले में रायपुर से 85 किमी की दूरी पर स्थित है। जंगल के बीच खूबसूरत स्थलों के बीच है यह जतमई मंदिर। जतमई मां की पत्थर की मूर्ति गर्भगृह के अंदर रखा गया है।


यहां के पर्यटन स्थल घने जंगलों से ढंकी है और यहां कल-कल बहते पानी की आवाज सुनना बहुत ही सुकूनदायक लगता है। यहां कल कल करते झरने बरबस ही लोगो का मन मोह लेते है। जतमई अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। प्रतिवर्ष लाखों सैलानी यहाँ आते है और पिकनिक का लुफ्त उठाते है। यहां का झरना प्रसिद्ध है यही लोग अपने आप को इसमें भीगने से रोक नहीं पाते। जतमई प्रकृति की गोद में बसा है यहाँ आकर आप पर्वत चढ़ने का भी मजा ले सकते है। जतमई मार्ग पर और भी पर्यटक स्थल है यहाँ पास में छोटा सा बांध है यह पिकनिक स्पॉट भी है, जहां आप नहाने का भी मजा ले सकते हैं। छुरा ब्लाक के जंगल स्थित जतमई पहाड़ी एक 200 मीटर क्षेत्र में फैला पहाड़ है, जिसकी उंचाई करीब 70 मीटर है. यहां शिखर पर विशालकाय पत्थर एक-दूसरे के ऊपर इस कदर टिके हैं, जैसे किसी ने उन्हें जमाया हो. जतमई में प्रमुख मंदिर के निकट की वादियां सबको आकर्षित करती है. बारिश के दिनों झरनों की रिमझिम फुहार इसे बेहतरीन पिकनिक की जगह बना देता है। इसी तरह जतमई के नजदीक ही एक और स्थल है घटारानी मन्दिर जो जतमई मंदिर से 15 किलोमीटर दूर स्थित है यहाँ भी एक बड़ा झरना हैं। जतमई मंदिर की तरह ही यहां भी ज्यादा उत्साह और भक्ति के साथ नवरात्रि पर्व मनाया जाता है, यहाँ नवरात्रि की तरह विशेष उत्सव के मौकों पर एक सजावट देखतें बनता है। मानसून के बाद यह यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय है। मंदिर के निकट सुंदर झरना बहती है, जो इस जगह को और अधिक आकर्षक बना देता है। झरना इस गंतव्य को पूरे परिवार के लिए एक पसंदीदा पिकनिक स्पॉट बनाने पूर्ण प्रवाह में है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले एक डुबकी लेने के लिए झरना सबसे अच्छी जगह है।

बारिश के दिनों मंदिर के पास के झरनों की रिमझिम फुहार इसे बेहतरीन पिकनिक की जगह बना देता है। घटारानी मंदिर की भी बहुत मान्यता है। घटारानी प्रपात तक पहुंचने पर्यटकों के लिए पर्याप्त साधन हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए इन जगहों पर जाने का सबसे अच्छा समय अगस्त से दिसंबर तक है। जतमई और घटारानी गरियाबंद जिले के दो खूबसूरत जलप्रपात हैं, जो बरसात के मौसम में देखते ही बनते हैं। धार्मिक आस्था वाले लोगों के लिए यह तीर्थ भी है। यहां देवी मंदिर के साथ शिवलिंग भी है,यहां पहुंचने के लिए पक्की सड़कें हैं। जतमई धाम एवं घटारानी तक पहुंचने राजिम के साथ ही पाण्डुका से रास्ता है साथ ही छुरा की ओर से भी यहां पहुंचा जा सकता है।

भूतेश्वरनाथ मंदिर
गरियाबंद से 3 किलो मीटर दूर घने जंगलों के बीच बसा है ग्राम मरौदा। सुरम्य वनों एवं पहाडियों से घिरे अंचल में प्रकृति प्रदत्त विश्व का सबसे विशाल शिवलिंग विराजमान है। एक ओर जहां महाकाल और अन्य शिवलिंग के आकार के छोटे होते जाने की खबर आती है वहीं एक शिवलिंग ऐसा भी है जिसका आकार घटता नहीं बल्कि हर साल और बढ़ जाता है। यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से निर्मित है। हर साल महाशिवरात्रि और सावन सोमवार को लंबी पैदल यात्रा करके कांवरिए यहां पहुंचते हैं। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित इस शिवलिंग को यहां भूतेश्वरनाथ के नाम से पुकारा जाता है। जिसे भकुर्रा भी कहा जाता है द्वादश ज्योतिर्लिंगों की भांति छत्तीसगढ़ में इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग होने की मान्यता प्राप्त है।सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस शिवलिंग का आकार लगातार हर साल बढ़ रहा है।
संभवतः इसीलिए यहां पर हर साल आने पैदल आने वाले भक्तों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। छत्तीसगढ़ी भाषा में हुकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं, इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा है।

राजीव लोचन मंदिर
गरियाबंद के उत्तर-पूर्व में महानदी के दाहिने किनारे पर स्थित है, जहाँ इसकी पैरी ओर सोंढ़ूर नामक सहायक नदियाँ इससे मिलती है। यह जिला मुख्यालयों से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है और सड़क पर नियमित बसे चलती है। यह जिला मुख्यालय रायपुर से दक्षिण-पूर्व में 45 किलोमीटर दूर है। एक रेललाईन रायपुर-धमतरी छोटी लाईन अभनपुर से निकलती है और महानदी के बाये किनारे पर राजिम के ठीक दूसरी ओर स्थित नवापारा को जोड़ती है। राजिम के पास नदी पर एक ऊँचा पुल बन जाने से बारहमासी सड़क सम्पर्क स्थापित हो गया है।

सुविधाएं दृ राजिम छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” भी कहते हैं। यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है। संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग मानते हैं, यहाँ पैरी नदी, सोंढुर नदी और महानदी का संगम है। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है।

सिकासार जलाशय
सिकासार जलाशय जिला मुख्यालय से 50 किमी की दुरी पर स्थित है यहाँ पर सभी मौसम मे पहुच योग्य है । सिकासार जलाशय का निर्माण सन 1977 मे पुर्ण हुआ । सिकासार बाँध की लबाई 1540 मी. एवं बाँध मी अधिकतम उंचाई 9.32 मी. है ।
दो विशालकाय पहाड़ों के बीच सिकासार बांध में जमा पानी मनोरम छटा बिखेरता है। 1977 में इस परियोजना को 5 करोड़ की लागत से तैयार किया गया था। यही वजह है कि यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। वीआईपी टूरिस्ट की यह पहली पसंद है। इस बांध से 4 फायदे हैं, पहला दो जिलों की सिंचाई होती है, दूसरा 7 मेगावाट बिजली पैदा होती है।

तीसरा टूरिस्ट प्वाइंट के लिए तैयार किया जा रहा है और चौथा यहां टाइगर फिश ( शेर प्रजाति की मछली) का टेंडर होता है। यह मछली प्रदेश में कहीं नहीं मिलती। इस परियोजना में बिजली उत्पादन की दो यूनिट भी स्थापित हैं, जहां से 7 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। ईई प्रदीप आनंद के मुताबिक पर्यटन मंडल इन सारी खासियतों के मद्देनजर इसे टूरिस्ट प्वाइंट बनाने का मन चुका है।

दो जिलों के 150 गांवों को मिलती है सिंचाई सुविधा
विभाग के कार्यपालन अभियंता प्रदीप आनंद ने बताया कि सिंचाई योजनाओं में जिले ही नहीं प्रदेश भर की टॉप 10 योजनाओं में गरियाबंद जिले की सिकासार सिंचाई परियोजना भी शामिल है। 5 करोड़ की सिकासार जलाशय परियोजना से 2 जिलों के 150 गांवों में 73736 हेक्टेयर भूमि को 52 वर्षों से सिंचाई सुविधा मिल रही है।
इससे 7 मेगावाट बिजली भी तैयार होती है, इसलिए बांध में पिछले 20 सालों में दरारें बढ़ने लगीं तो केंद्रीय जल आयोग ने इसकी सुरक्षा के लिए 37 करोड़ खर्च कर कैसकेट वॉल (सीढ़ीनुमा दीवार) तैयार की। इससे गरियाबंद जिले के 101 गांवों में 50967 हेक्टेयर की सिंचाई होती है, धमतरी जिले के 49 गांवों में भी 22669 हेक्टेयर को सिंचाई सुविधा मिल रही है।

कुलेश्वर मंदिर
जहां मां सीता ने की थी रेत के शिविलिंग की पूजा, वहीं खड़ा है 8वीं सदी का कुलेश्वर मंदिर
छत्तीसगढ़ को भगवान राम के वनवास काल के पथगमन मार्ग के रूप में चिह्नित किया गया है और इस तथ्य को प्रमाणित करते हुए कई अवशेष यहां मौजूद हैं। इन्हीं में से एक प्रतीक है राजिम का कुलेश्वर महादेव मंदिर। महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जिस जगह मंदिर स्थित है, वहां कभी वनवास काल के दौरान मां सीता ने देवों के देव महादेव के प्रतीक रेत का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी। आज जो मंदिर यहां मौजूद है उसका निर्मांण आठवीं शताब्दी में हुआ था।
कहा जाता है कि नदियों के संगम पर मौजूद इस मंदिर के अंदर एक गुप्त गुफा मौजूद है जो नजदीक ही स्थित लोमस ऋषि के आश्रम तक जाती है। इस ऐतिहासिक मंदिर में भगवान कुलेश्वर महादेव के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। बारिश के बाद तीनों नदियों का जलस्तर काफी ऊपर है और मंदिर पानी से घिरा हुआ रहता है, लेकिन महादेव पर आस्था रखने वाले भक्त लक्ष्मण झूला के सहारे उनके दर्शन के लिए मंदिर तक जाएंगे।

उदन्ती-सीतानदी टायगर रिजर्व
बाघों के रहवास हेतु अनुकुल परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए वन एवं पर्यावरण भारत सरकार द्वारा उदंती एवं सीतानदी अभ्यारण्य क्षेत्र के 851.09 वर्ग किलोमीटर कोर जोन एवं 991.45 वर्ग किलोमीटर बफर जोन को मिलाकर कुल 1842.54 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को टायगर रिजर्व क्षेत्र में लेने की सैंद्धातिक स्वीकृति प्रदान करने के बाद छत्तीसगढ़ शासन द्वारा 20 फरवरी 2009 को अधिसूचना जारी कर उदंती सीतानदी टायगर रिजर्व गरियाबंद का गठन किया गया है। उदंती एवं सीतानदी अभ्यारण्य में प्रवाहित होने वाली नदी उदंती एवं सीतानदी के नाम पर यह टायगर रिजर्व रखा गया है। उदन्ती-सीतानदी टायगर रिजर्व में मुख्यतः राजकीय पशु वनभैंसा, बाघ, गौर, हिरण, सांभर, जंगली सुअर, तेंदुआ, चीतल, बार्किंग डियर, भालू आदि वन्यप्राणी पाए जाते हैं।

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