जीवन एस साहू
गरियाबंद । अनुविभागीय अधिकारी (रा) न्यायालय गरियाबंद में अवैध प्लाटिंग के संबंध में कुल 13 प्रकरण दर्ज किये गये थे। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय से प्राप्त जानकारी अनुसार यह प्रकरण 11 जून 2021 एवं 09 मई 2022 तक के है। इन संबंधित प्रकरणों में से 01 प्रकरण को पूर्व पीठासीन अधिकारी द्वारा नगर पालिका गरियाबंद क्षेत्र के अंतर्गत आने से 16 अक्टूबर 2024 को खारिज किया गया, तथा शेष 12 प्रकरणों में अनावेदकगणों द्वारा छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 70 धारा 98 एवं धारा 172 के उल्लंघन किये जाने के फलस्वरूप न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी ( रा. ) गरियाबंद द्वारा हाल ही में 20 मार्च 2025 को आदेश पारित कर अनावेदकगणों को छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 172 (4) के तहत 10 -10 हजार रूपये शास्ति अधिरोपित किया गया।
जैसा कि आपने पढ़ा, लगभग 5 वर्ष पूर्व कायम प्रकरण पर 20 मार्च 2025 को आदेश पारित किया गया, किन्तु इसे लगभग एक माह बाद 17 अप्रैल 2025 को सार्वजनिक किया गया ?
इस आदेश कार्यवाही पर सवाल उठ रहे हैं, कुछ जानकर इसे खानापूर्ति मान रहे हैं तो कुछ लीपा – पोती बता रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ भू – राजस्व संहिता 1959 की धारा 172 ( 4 ) के तहत कृषि भूमि पर अवैध कालोनी / प्लाटिंग किये जाने पर 6 मास की सादा कारावास या कम से कम 10 हजार रुपये के जुर्माने या दोनों से दंडित किये जाने का प्रावधान है, यहां हम बताना चाहेंगे ” कम से कम 10 हजार रुपये, सवाल है क्या अधिक भी हो सकता था ?
नगर के आस पास के क्षेत्र में पिछले कई सालों से ओने -पौने दामों में खरीदी गई कृषि भूमि पर अवैध प्लाटिंग के धंधे में करोड़ों का वारा-न्यारा कर चुके भू – माफियाओं के लिये 10 हजार रुपये क्या मायने रखते हैं, ये आम लोगों के बीच चर्चा की विषय – वस्तु है।
20 मार्च 2025 को न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी ( रा )गरियाबंद द्वारा पारित आदेश में आगे उल्लेखित है कि अनावेदकों पर उक्त शास्ति बकाया भू-राजस्व की भाँति चालान के माध्यम से जमा करने हेतु आदेशित किया गया है।
उपरोक्त समस्त प्रकरणों के भू-खण्डों को क्रेता, विक्रेता, भू-स्वामी द्वारा किये गये समस्त विक्रय, नामांतरण आदेश को पुनरीक्षण में लेते हुये तहसीलदार गरियाबंद को नामांतरण प्रकरण करने हेतु आदेशित किया गया है।
इस संबंध में अधीनस्थ न्यायालय तहसीलदार गरियाबंद को आदेशित किया गया है कि प्रकरण में वर्णित, समस्त उपखंडों का पुनरीक्षित भू-राजस्व,उपयोग के अनुसार निर्धारण कर मांग कायम कर, तथा बिना व्यपवर्तन ( डायवर्शन ) के गैर कृषि मद में उपयोग होने वाले उपखंडों ( छोटे भू-खंड ) में भू – राजस्व, मय शास्ति ( जुर्माने के साथ ) मांग कायम कर, साथ ही उक्त उपखंडों के नियमितीकरण का प्रस्ताव, मय पुनरीक्षित भू – राजस्व निर्धारण पत्रक तथा क्रेता ,भू -स्वामी व्यक्ति जिस पर उक्त भू – राजस्व अधिरोपित किया जाना है, का प्रस्ताव अनुविभागीय अधिकारी राजस्व न्यायालय को प्रेषित करें, ताकि व्यपवर्तन आदेश जारी किया जा सके।
अब इस आदेश के मुताबिक कार्यवाही हुई तो माना जाये कि “भार, उन क्रेताओं पर आयेगा जिन्होंने अवैध विक्रेताओं से कृषि भूमि के भूखंड खरीदे ? वैसे राजस्व संहिता के एक जानकर की माने तो पुनरीक्षण, तहसीलदार के क्षेत्राधिकार में नही आता।
एक और ऐसा ही प्रकरण : आदेश में अंतर समझिये
न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी ( रा ) गरियाबंद प्रकरण क्रमांक 2761/ ब-121 वर्ष 2016 – 17 , छ.ग. शासन विरुद्ध ( अनावेदक ) (1) मसूद खान आ.असरफ खान (2) शरीफ खान आ.असरफ खान के प्रकरण पर पारित आदेश दिनांक 20 फरवरी 2017 के अनुसार जांच एवं परीक्षण उपरांत यह सिद्ध पाया जाता है कि अनावेदक क्रमांक (1) मसूद खान द्वारा ग्राम पारागांव स्थित ख.न.743/1 में से रकबा 0.25 हेक्टेयर को छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर 21 क्रेतागणों को विक्रय कर दिया, तथा अनावेदक क्रमांक ( 2 ) शरीफ खान द्वारा ख.न. 743/3 में से रकबा 0.01 हेक्ट. एवं 0.01 हेक्ट. को 02 विक्रेताओं को विक्रय किया गया है।
विक्रय करने से पूर्व इनके द्वारा छ.ग. पंचायतराज अधिनियम की धारा 61 ( ख ) के तहत रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र नही लिया गया है। अनावेदकों द्वारा धारा 61 ( घ ) ( 2 ) के प्रावधान अनुसार अपराध किया जाना सिद्ध पाया जाता है। अतः अनावेदक द्वय को छ.ग. पंचायत राज अधिनियम की धारा 61 ( घ ) ( 3 ) के तहत 10 – 10 हजार रुपये के अर्थदंड से दंडित किया जाता है।
क्रेतागणों को किया गया भूमि अंतरण शून्य घोषित
ग्राम पारागांव की भूमि खसरा नम्बर 743/1 रकबा 0.25 हेक्ट. अनावेदक क्रं. 01 द्वारा 21 क्रेतागणों को तथा अनावेदक क्रं. 02 द्वारा ख.न. 743/3 में से रकबा 0.02 हेक्ट. 02 क्रेता गणों को विभिन्न तिथियों में विक्रय किया गया है, जिसकी सूचि इस आदेश के साथ संलग्न किया जा रहा है, जिसे आदेश का भाग माना जावे।
मसूद खान एवं शरीफ खान द्वारा सूचि में उल्लेखित क्रेता गणों को किया गया भूमि का अंतरण उक्त अधिनियम की धारा 61 ( च ) ( 1) के तहत शून्य घोषित किया जाता है।
प्रशासन की मंशा पर उठते सवाल
इन दोनों प्रकरणों की तुलना करते हुये आम जनता में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या प्रशासन अवैध प्लाटिंग करने वालों पर वास्तव में सख्त है या केवल औपचारिकता निभा रहा है ? क्या जुर्माने की राशि महज प्रतीकात्मक है ? और क्या भविष्य में भी ऐसे मामलों में खरीदारों को ही भुगतना पड़ेगा?
साफ है, गरियाबंद में अवैध प्लाटिंग के प्रकरणों को लेकर न्यायालय की असंगत कार्यवाही ने ना केवल प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े किये हैं, बल्कि आम जनमानस में चिंता की लहर भी दौड़ा दी है।