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पहाड़ी के ऊपर बसे ग्रामों के आदिवासी कमार जनजाति के ग्रामीण जानते हैं बूंद -बूंद पानी की कीमत

० पी एच ई विभाग आज तक एक हेडपम्प भी नहीं लगा पाई

० सुख चुके नदी नाले में झरिया खोदकर प्यास बुझाते है ग्रामीण, जंगली जानवरों का हमेशा बना रहता है डर

गरियाबंद। गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लाक के दुरस्थ वनांचल पहडी ग्रामों में इस भीषण गर्मी के दिनों में लगातार पेयजल संकट गहराता जा रहा है ग्रामीण बूंद बूंद पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं गांव में एक हेण्डपंप नहीं होने के कारण विशेष पिछड़ी कमार आदिवासी जनजाति के लोग पत्थरों के सीना चीरकर बूंद बूंद पानी एकत्र कर रहे हैं तब कही जाकर एक हंडी पीने के लिए पानी बामुश्किल नसीब हो पा रही है झरिया गांव से लगभग 02 किमी दूर 40 डिग्री तेज धूप में पैदल चलने के बाद पानी नसीब हो पाती है,झरिया के आसपास वन्यप्राणीयों का डर बना रहता है क्योंकि वन्यप्राणी भी इसी झरिया में प्यास बुझाने पहुंचते हैं इसलिए ग्रामीण महिलाऐ समूह में झरिया पानी लेने जाते हैं और साथ में सुरक्षा की दृष्टि से पुरुष भी उनके साथ रहते हैं क्योंकि वन्यप्राणीयों का डर बना रहता है.

मैनपुर क्षेत्र के पहाडी के उपर बसे ग्राम ताराझर, मटाल, कूर्वापानी, भालूडिग्गी, डडईपानी जैसे दर्जनभर ग्रामों के लोगों को पीने के लिए साफ सुथरा पेयजल उपलब्ध नही हो पा रहा है, यहा विकास के दावे फेल नजर आते है एक एक बूंद पानी की कीमत यहा के ग्रामीण ही समझ पाते है ,इन ग्रामों की अबादी लगभग 560 के आसपास है, यहां के निवासरत कमार जनजाति के लोगो को पेयजल के लिए महज एक मात्र हैंडपंप भी नसीब नही है पहाड़ी पर बसा इन ग्राम विकास की दृष्टिकोण से बस्तर के अबुझमाड़ के दुर्गम इलाको से भी बत्तर स्थिति में है.

एक तरफ राज्य और केंद्र सरकार हर गांव घर तक पानी पहुंचाने की दावे कर रही है दूसरी तरफ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग जिसका जिम्मेदारी है हर नागरिक को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का वहा पहाड़ी गांव का हवाला देकर आजादी के 75 वर्षों बाद भी इन पहाड़ियों पर बसे गांव में पानी पहुंचाने हाथ खड़े कर देते हैं,जब भी ग्रामीणों द्वारा हैंडपंप की मांग किया जाता है तो पहाड़ी गांव का हवाला देकर मांग को टाल देते हैं जबकि पहाड़ी पर बसे इन ग्रामों तक पानी पहुंचाने ठोस कार्ययोजना योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि अन्य विभाग और वन विभाग द्वारा इन ग्रामों अनेकों निर्माण कार्य आसानी से करवाया जाता है तो हैंडपंप भी खनन किया जा सकता है इस पर गंभीरता से विचार करने के साथ दृण इच्छा शक्ति के साथ काम करने की जरूरत है।

ग्राम पंचायत कुल्हाडीघाट के सरपंच धनमोतिन बाई सोरी ने बताया कि कुल्हाडीघाट के आश्रित ग्राम ताराझर, मटाल, कूर्वापानी, भालूडिग्गी, डडईपानी जो पहाडी के उपर बसा हुआ है यहा इस गर्मी मे पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है लोगो को झरिया खोदकर बूंद बूंद पानी के लिए मशक्कत करना पड रहा है।

कसेरसील के आदिवासी महिला पुरूष पानी मांगने जनपद पंहुचे

मैनपुर विकासखण्ड के दुरस्थ वनांचल में बसे ग्राम पंचायत कुहीमाल के आश्रित पारा कसेरसील जंहा की जनसंख्या 150 के आसपास है, यहा आज भी हेडपम्प नही होने के कारण ग्रामीण नदी नाले का पानी पीने मजबूर हो रहे है 50 से ज्यादा ग्रामीण महिला पुरूष मैनपुर पहुचकर जनपद पंचायत में नारेबाजी करते हुए गांव में हेडपम्प खनन करने की मांग किया यहा के ग्रामीण रमुला बाई, धनमती, अंजनी, विष्णुराम, सुपारा बाई, जगदीश, सुजानमनी, रेखा ने बताया कि गांव में एक भी हेडपम्प नही है और इस भीषण गर्मी में नदी सुख जाने से भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, पानी लाने के लिए दो से तीन किलोमीटर दुर जाना पड रहा है।

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