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विकास के बाद भी जारी है आदिवासी महिलाओं का संघर्ष

० छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय एसोसिएशन के प्रथम वार्षिक सम्मेलन में जुटे
० देशभर के विद्वान, विषय विशेषज्ञ और शोधार्थी
रायपुर। वैश्विक परिदृश्य में आदिवासी महिलाओं की स्थिति पर मंथन करना आज के दौर में बेहद आवश्यक और प्रासंगिक विषय है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद हम देखें तो आदिवासी महिलाओं का विकास हुआ है लेकिन उनका संघर्ष पूरी तरह खत्म नहीं हुआ, अभी भी जारी है। आदिवासी महिलाओं पर यदि अध्ययन किया जाता है तो वह पूरी ईमानदारी के साथ फील्ड पर जाकर किया जाना चाहिए जिससे वास्तविक रूप से वस्तुस्थिति का पता लगाया जा सके और सरकार बेहतर नीति बना सके। यह तमाम बातें छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय एसोसिएशन (सीजीएसए) और पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य अध्ययनशाला द्वारा संयुक्त रूप से वैश्विक परिदृश्य में आदिवासी महिलाओं की स्थिति पर आयोजित प्रथम वार्षिक सम्मेलन में अतिथियों एवं विद्वानों ने कही।

पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के सभागृह में आयोजित इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्रसन्ना आर. सचिव उच्च शिक्षा, छत्तीसगढ शासन, कार्यक्रम की अध्यक्ष हेमचंद विश्वविद्यालय दुर्ग की कुलपति प्रो. अरुणा पलटा, आयोजन समिति के संरक्षक और पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ला, मुख्य वक्ता एवं विषय विशेषज्ञ प्रो. सुखदेव नायक समाज विज्ञान के पूर्व अधिष्ठाता संबलपुर यूनिवर्सिटी ओडिशा, इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी की सचिव प्रो श्वेता प्रसाद, मध्यांचल सोशियोलॉजिकल सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. महेश शुक्ला, इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी के प्रबंध समिति की सदस्य डॉ.अंशु केडिया, छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय एसोसिएशन की अध्यक्ष और सम्मेलन की समन्वयक प्रो. प्रीति शर्मा, रविवि के समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययनशाला के अध्यक्ष प्रो. एन. कुजूर, सीजीएसए के सचिव और सम्मेलन के आयोजन सचिव प्रो. एल.एस. गजपाल, आयोजन की सह-समन्वयक प्रो सुचित्रा शर्मा, कोषाध्यक्ष प्रो. सुनीता सत्संगी, संरक्षक प्रो. श्रद्धा गिरोलकर, प्रो. पुष्पा तिवारी, प्रो. मंजू झा, सह सचिव हर्ष पांडे, सुशील गुप्ता सहित आयोजन समिति के अन्य पदाधिकारीगण, प्राध्यापकगण, शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित थे।

मुख्य अतिथि श्री प्रसन्ना आर. सचिव उच्च शिक्षा, छत्तीसगढ शासन ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आदिवासी महिलाओं की स्थिति पर मंथन करना आवश्यक है और यह महत्वपूर्ण विषय है जिस पर गंभीरता से कार्य करने की जरूरत है। बेहतर होगा कि आदिवासी क्षेत्रों में जाकर हम अध्ययन करें और वास्तविक स्थिति का पता लगाएं। शोध कार्यों के आधार पर उनके सशक्तिकरण के लिए बेहतर नीति बनाई जा सकेगी।

समारोह की विशिष्ट अतिथि हेमचंद विश्वविद्यालय दुर्ग की कुलपति प्रो. अरुणा पलटा ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और छत्तीसगढ़ राज्य की पूर्व राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जनजातीय महिलाओं में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, उनमें पर्याप्त संभावनाएं हैं, आवश्यकता उन्हें जागरुक करने की है। उन्होंने सीजीएसए के प्रथम वार्षिक सम्मेलन के विषय को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक बताया। समारोह के मुख्य वक्ता संबलपुर यूनिवर्सिटी ओडिशा के समाज विज्ञान के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. सुखदेव नायक ने कहा कि आदिवासी महिलाओं की स्थिति को लेकर अध्ययन की पर्याप्त संभावनाएं हैं, जरूरत है कि पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ अध्ययन करें जिससे वास्तविक तथ्यों का पता लगाया जा सके।

विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसायटी की सचिव प्रो. श्वेता प्रसाद ने वैश्विक परिदृश्य में आदिवासी महिलाओं की स्थिति को वर्तमान समय मे प्रासंगिक बताते हुए सीजीएसए के गठन की बधाई दी और कहा कि छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय एसोसिएशन निश्चित रूप से विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्राध्यापकों के लिए बेहतर वातावरण का निर्माण कर मिसाल बनेगा। मध्यांचल सोशियोलॉजिकल सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. महेश शुक्ला ने कहा कि छत्तीसगढ़ में जनजातियों पर अध्ययन चुनौतिपूर्ण है और यहां अध्ययन की पर्याप्त संभावनाएं भी हैं। उन्होंने बताया कि प्रो. इंद्रदेव और वेरियर एल्विन जैसे विद्वानों ने छत्तीसगढ़ की जनजातियों पर ही विश्व प्रसिद्ध अध्ययन किये हैं।

इसके पूर्व छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय एसोसिएशन की अध्यक्ष और सम्मेलन की समन्वयक प्रो प्रीति शर्मा ने छत्तीसगढ़ सोशियोलाजीकल एसोसिएशन के गठन की सम्पूर्ण प्रक्रिया की जानकारी देते हुए आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा प्रयास रहेगा कि हम शोधार्थियों के लिए एक ऐसा प्लेटफार्म स्थापित करें जहां निरंतर विभिन्न अकादमिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले। । अपने स्वागत भाषण में सीजीएसए के सचिव और सम्मेलन के आयोजन सचिव प्रो. एल.एस. गजपाल ने कहा कि आदिवासी महिलाओं से संबंधित तमाम योजनाओं के बाद भी वे समाज की मुख्य धारा से जुड़ नहीं पाए हैं जिसकी आज नितांत आवश्यकता है।

पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य अध्ययनशाला के अध्यक्ष प्रो. एन. कुजूर ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद जनजातियों का विकास तो हुआ है किन्तु आज भी पर्याप्त अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है। समारोह का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। इस अवसर पर सम्मेलन की स्मारिका का भी विमोचन किया गया। सम्मेलन के अवसर पर छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय एसोसिएशन के सभी पदाधिकारियों और सदस्यों को इंडियन सोशियोलाजिकल सोसायटी की सचिव प्रो श्वेता प्रसाद ने शपथ दिलवाई। इस अवसर पर लगभग अनेक संख्या में प्राध्पाकगण, शोधार्थीगण सभागृह में उपस्थित रहे। उद्घाटन सत्र के बाद तकनीकी सत्र में प्रो. सुखदेव नायक ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने शोधार्थियों से अधिकाधिक शोध कार्यों से जुड़ने की बात कही। इस अवसर पर लगभग 25 शोध पत्रों का वाचन किया गया। विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये।

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