Close

Rakshabandhan 2024 : शनि की सगी बहन है भद्रा, शुभ कार्यों में भद्रा का रखें ध्यान

भद्राकाल में कोई भी मांगलिक कार्य, उत्सव, भाई की कलाई पर राखी आदि नहीं बांधना चाहिए क्योंकि शनि की सगी बहन है भद्रा। अपने भाई शनि की ही तरह इसका स्वभाव ज्योतिष शास्त्र में क्रूर बताया गया है, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री है, सूर्य की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनि की सगी बहन है। भद्रा का स्वभाव जन्म से ही उग्र था, उसकी उग्रता को रोकने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना कर पंचांग में एक प्रमुख स्थान (अंग) प्रदान किया। हिन्दू पंचांग में पांच प्रमुख अंग होते हैं, तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण।

करण की कुल संख्या ग्यारह होती है, जिनमें विष्टि नाम के एक करण को ही भद्रा कहते हैं। भद्रा के विनाशक स्वभाव के कारण ही सूर्य भगवान दुविधा में थे कि उसका विवाह किसके साथ किया जाए। अतः एक दिन सूर्य भगवान, पुत्री भद्रा के साथ ब्रह्मलोक, ब्रह्मा जी के पास गए, ब्रह्मा जी ने विष्टि को बुलाकर कहा, ‘‘भद्रे! तुम बव, बालव, कौलव, तैतिल आदि करणों के अंत में निवास करो और जो व्यक्ति यात्रा, गृह प्रवेश, मांगलिक कार्य, व्यापार आदि नए कार्य की शुरुआत तुम्हारे समय में करे, उन्हीं के यहां जाकर तुम निवास करो और कार्यों में विघ्न-बाधाएं अपनी आदत अनुसार उत्पन्न करो।’’

इसी प्रकार भद्रा की उत्पत्ति हुई और उसे विष्टि करण के रूप में पंचांगों में स्थान प्राप्त हुआ, अतः मांगलिक कार्यों में विघ्न-बाधा, विनाश से बचने के लिए ब्रह्मा जी के कथानुसार भद्रा का त्याग अवश्य करना चाहिए, विशेषकर राखी भांधना, श्रावणी कर्म, चूड़ा पहनना तथा होलिका दहन। तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, इन पांचों को मिलाकर पंचांग बनता है। तिथि का आधा भाग करण कहलाता है, पंचांग की गणना अनुसार चन्द्रमा जब छः अंश पूर्ण कर लेता है, तब एक करण पूर्ण होता है, एक तिथि में दो करण होते हैं, एक पूर्वार्द्ध में तथा एक उत्तरार्द्ध में। ज्योतिष शास्त्र के पंचांगों में ग्यारह करण, बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न को देखा जा सकता है, विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं।

scroll to top