29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक पितृपक्ष रहेगा। अक्सर इस अवधि में श्राद्ध के दिन परिवार के दिवंगत जनों को याद किया जाता है और उनका चित्र पूजा-अर्चना के समय रखा जाता है। कुछ लोग पूर्वजों के चित्रों को अलमारी या बॉक्स में बंद करके रख देते हैं और इन्हें ऐसे ही अवसर पर बाहर निकालते हैं। कुछ घरों और व्यापारिक स्थलों पर पूर्वजों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें या कहीं-कहीं उनकी मूर्तियां भी दिखाई दे जाती हैं।
हमारे देश में कुछ राजनेता अपने जीते जी ही अपनी मूर्तियां सार्वजनिक स्थानों पर लगवा देते हैं जो वास्तु नियमों के विपरीत है। घरों में भी पूर्वजों के चित्र यदि वास्तु नियमों के अनुसार रखे जाएं तो स्वर्गीय जनों का परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद बना रहता है।
कुछ लोग आधुनिक गुरुओं के चित्र भी देवी-देवताओं के चित्रों के साथ रख देते हैं। क्या पूर्वजों के चित्र दीवार पर लटकाएं या आदर सहित लकड़ी या ऐसे ही किसी स्टैंड पर रखें? आइए समझें वास्तु एवं शास्त्र सम्मत क्या है!
पितरों की एक से अधिक तस्वीर न लगाएं। घर के प्रवेश द्वार के सामने पितरों की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए। एक से अधिक तस्वीर लगाने से घर में नकारात्मकता आती है। कभी भी घर के मंदिर में पितरों की तस्वीर न रखें। भगवान के साथ पितरों की तस्वीर घर में प्रतिकूल प्रभाव लेकर आती है। शयन कक्ष और बैठक में पितरों की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि शयन कक्ष और बैठक में पितरों की तस्वीर लगाने से घर के लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। कोशिश करें कि पितरों की तस्वीर ऐसी जगह न लगाएं जहां घर से अंदर आते और बाहर जाते आपकी नजर पड़े। इससे कार्यों में अड़चनें पैदा हो सकती हैं। रसोई घर में पितरों की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए।