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दीपावली त्यौहार में लोगो के घरो को दिये से जगमग करने वाले कुम्हारों का घर अंधेरे में डूबा

० कुम्हारों का दुखड़ा, रंग हुए महंगे, दाम नही मिलते, मिटटी को आकार देेने वाले कुम्हारो की जिन्दगी संवर नही पा रही

जीवन एस साहू

गरियाबंद । मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार परिवार वर्षो से उपेक्षित है जबकि उनका पूरा जीवन मिट्टी पर आश्रित है, इस महंगाई के दौर मे उन्हे बर्तनो व मूर्तियो का संतोष जनक व सही मोल भी नही मिलता है उनका दुखड़ा सुनने के लिये उनके पास कोई नही आता है। कुम्हारो को शासन से भी ऐसी कोई विशेष सहायता नही मिलती जिसे लेकर वे अपना व्यवसाय बढ़ा सके और उनकी तरक्की हो उनकी कला को आगे बढ़ाने के लिये भी कोई ठोस प्रयास सरकार ने नही किये है। ग्राम पंचायत मैनपुर के आश्रित ग्राम नदीपारा मे कुम्हार परिवार वर्षो से निवास करते है ग्राम नदीपारा की 75 प्रतिशत आबादी कुम्हारो की है और यह ग्राम मूलभूत सुविधाओ के लिये तरस रहा है। नदी के बाढ़ से इन्हे भारी नुकसान हर वर्ष बारिश के दिनो मे उठानी पड़ती है। कुम्हार परिवार के लोगो ने बताया कि त्यौहार को छोड़ अन्य दिनो मे उन्हे उनकी मिट्टी पर की गई मेहनत का कोई संतोषजनक मोल नही मिलता उनकी जीविका का साधन मिटटी का बर्तन बनाना है और वे इसी से परिवार का जीविकोपार्जन करते है नदीपारा मे कुम्हारो की लगभग 60-70 परिवार निवास करते है और महंगाई से जूझ रहे है .

हर वर्ष रंगो की कीमत बढ़ती जा रही है मिटटी के बर्तन बनाने व इस त्यौहारी सीजन मे पोरा चुकी, दिया, नदिया बैल व मूर्ति बनाने मे उन्हे महंगे रंगो का उपयोग करना पड़ता है और तो और इन्हे पकाने के लिये लकड़ी भी खरीदना पड़ता है लकड़ी की कीमत भी बढ़ गई है जिसके कारण उन्हे पर्याप्त मुनाफा नही मिलता है। शासन ने कुम्हारो को इलेक्ट्रानिक चाक व जमीन तथा अन्य सुविधा उपलब्ध कराने की बात कही थी लेकिन यहां के एक भी कुम्हार परिवार को लाभ नही मिला है अधिकांश लोगो को यह भी पता नही है कि शासन अनुदान मे उपलब्ध कराती है। कुम्हार पिछड़े वर्ग मे आते है सदियों से वे इस पेशे से जुड़े होने के कारण मिट्टीकला उन्हे विरासत मे मिली है ।

शासन को चाहिए कि इन्हे उनकी कला को प्रोत्साहित करने के लिये उन्हे सुविधा दिया जाये और कुम्हार लोगो को भी शासन से जमीन, खेत सुधार के साथ आवास व अपने कला व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिये सरकार को चाहिए कि इन्हे पूरी मदद दिया जाये लेकिन ऐसा होता दिखाई नही दे रहा है। नदीपारा में निवास करने वाले कुम्हार परिवार के उदेराम पाड़े, श्रीमति उकिया बाई, टंकधर, बेनुराम, उमाशंकर, पारेश्वर, निर्मला, बलराम, जोहरसिंह ने बताया कि शासन द्वारा उन्हे किसी भी प्रकार की उनके कला कौशल मिटटी के बर्तन मूर्ति बनाने के लिये सहयोग व अनुदान नही दिया जाता है जबकि यदि इन्हे अनुदान के साथ अन्य कलाकारो को जो शासन प्रोत्साहन देता है ऐसा प्रोत्साहन मिले तो निश्चित रूप से यह समाज विकास की मुख्य धारा मे तेजी से विकास करेगी।


दिवाली में कुम्हारों द्वारा बनाए गए दिये से ही हमारे घर रोशन होंगे. पूजापाठ, अनुष्ठान, मांगलिक कार्यक्रम हो या फिर अंतिम संस्कार, मिट्टी के बने पात्रों के बिना कोई भी कार्य पूरा नहीं होता. छत्तीसगढ़ में मिट्टी के पात्र बनाने के व्यवसाय में लगे कुम्हारों की जिंदगी दिया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ कर रहा है. शासन द्वारा घोषणा के बाद न तो प्रदेश के कुम्हारों को मिट्टी के लिए जमीन नसीब हुई और न ही मिट्टी के बर्तन को पकाने लकड़ी या भूसे की व्यवस्था है।

कुम्हार उदेराम पाड़े ने बताया कि प्रदेश के कुम्हारों को वर्ष 2006 में हुए प्रदेश स्तरीय अधिवेशन में मिट्टी के लिए प्रत्येक गांव में 5-5 एकड़ जमीन देने घोषणा तत्कालीन सरकार द्वारा की गई थी इस घोषणा को अब तक अमल में नहीं लाया जा सका है। रामा चक्रधारी बताते हैं कि मिट्टी के कच्चे बर्तनों को पकाने के लिए पर्याप्त मात्रा में लकड़ी व भूषा नहीं मिलने के कारण लोग इस व्यवसाय से किनारा कर रहे हैं. व्यवसाय तो चैपट हो ही रहा है साथ ही बच्चों का भविष्य भी अंधकार में जा रहा है।

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