गरियाबंद।गरियाबंद के गाँधी मैदान में उपाध्याय परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस के अवसर पर पूज्य आचार्य शान्तनु जी महाराज (प्रयागराज) ने कहा कि भगवान के जन्म का समाचार सुनकर नंद बाबा खुशी से झूम उठे ,सोने चांदी से बनी वस्तुओं का दान किया है ,दो लाख गायों का दान किया है ।
हजारों की संख्या पण्डाल में बैठे कथा प्रेमी श्रोताओँ को उन्होंने बताया कि पूरा ब्रजमंडल आनंद में झूम उठा है सभी नंद बाबा और माँ यशोदा को बधाई दे रहे हैं।पूतना भगवान को मारने के लिए अपने स्तन में विष लपेट कर आई है भगवान ने पूतना का उद्धार किया है और उसे मां जैसी सद्गति दे दी है.
भगवान ने शकटासुर का वध किया है इस प्रसंग के माध्यम से आचार्य श्री शान्तनु जी महाराज ने कहा कि माँ यशोदा और नंद बाबा कभी भी भगवत्ता का दर्शन नही करना चाहते थे वो हमेशा भगवान को बाल रूप में ही देखना चाहते थे।
तत्पश्चात भगवान ने तृणावर्त को मुक्त किया है.भगवान ने माँ यशोदा को अपने विराट स्वरूप का दर्शन दिया है मां यशोदा को भगवान के मुख में सम्पूर्ण सृष्टि का दर्शन होने लगा,भगवान ने अपनी इस लीला को यही पर समाप्त किया है,इसके बाद नंद बाबा ने गर्गाचार्य जी को बुलाकर भगवान और बलदाऊ जी का नामकरण संस्कार कराया है महाराज जी ने कहा कि जीवन मे संस्कार बहुत आवश्यक है इसलिए सभी को सोलहों संस्कार का पालन अवश्य करना चाहिए, इन संस्कारों का रक्षण हो इनका संवर्धन हो ये हम सबकी जिम्मेदारी है.
महाराज जी ने भगवान के सुंदर स्वरूप का वर्णन किया है.भगवान थोड़े बड़े हुए हैं अब वो ब्रज की गलियों में भी घूमने लगे है अब भगवान ने माखन चोरी की लीला के माध्यम से गोपियों के मन के मनोरथ को भी पूरा किया है, महाराज जी ने भगवान के मृद्भक्षण लीला का वर्णन करते हुए कहा कि इस लीला के माध्यम से भगवान ने धरती माँ का भी मनोरथ पूरा किया है , और भारत भूमि की महिमा का बखान किया है।
उखलबन्धन की लीला का वर्णन करते हुए महाराज जी ने कहा कि भगवान को मां यशोदा जब ऊखल में बांध रही थी तो रस्सी दो अंगुल कम पड़ जाती थी ये दो अंगुल भक्त का पुरुषार्थ और भगवान की कृपा का प्रतीक है जब तक भगवान की कृपा भक्त के पुरिषार्थ से नही मिलता व्यक्ति को सफलता नही मिलती इस लीला के माध्यम से भगवान ने यमालार्जुन का उद्धार किया है।
गोकुल में नित्यप्रति राक्षसों के उत्पात को देखते हुए भगवान सभी ब्रजवासियों को लेकर बृंदावन में आ गए हैं और भगवान गौचारण के लिए भी जाने लगे यहां भी भगवान ने बकासुर ,अघासुर ,वत्सासुर आदि अनेक राक्षसों का वध किया है।