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परिवार के सभी सदस्य कम से कम एक घंटे बिना मोबाइल के आपस में करें बातें: प्रसन्ना आर.

० शासकीय दूब महिला महाविद्यालय के नेशनल सेमीनार में विद्वानों ने रखे अपने विचार

रायपुर। भारतीय परिवारों पर वैश्वीकरण का बहुत प्रभाव पड़ा है। बदलते परिदृश्य में परिवार नामक संस्था के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। वास्तव में वृद्धाश्रम, झूलाघर और नर्सरी आदि का विस्तार होना परिवार जैसी संस्था के टूटने का ही परिणाम है। वर्तमान में विवाह जैसी संस्था को बचाए रखना भी बड़ी चुनौती है। यह बातें विषय विशेषज्ञों, विद्वानों और शोधार्थियों ने शासकीय दूधाधारी बजरंग महिला महाविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग और छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय परिषद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में कहीं।

कार्यक्रम समन्वयक और छत्तीसगढ़ समाजशास्त्रीय परिषद की अध्यक्ष डॉ. प्रीति शर्मा ने बताया कि 23 अक्टूबर तक आयोजित इस दो दिवसीय नेशनल सेमीनार का विषय ’वैश्वीकरण और भारतीय परिवार: बदलते परिदृश्य तथा उभरती चुनौतियां’ है। सेमीनार के मुख्य अतिथि श्री प्रसन्ना आर.( आईएएस) सचिव , उच्च शिक्षा, छत्तीसगढ़ शासन ने कहा कि महिला शिक्षा के विकास में दू ब महिला महाविद्यालय की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने छात्राओं से परिवार और सामाजिक परिवर्तन पर उनके विचार जाने और फिर अपने विचार रखते हुए कहा कि एआई का प्रभाव परिवारों पर भी पड़ेगा, भारतीय परिवार की संरचना विदेश से अलग थी और बेहतर थी, आज विवाह रूपी संस्था को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि तकनीक और प्रौद्योगिकी ने परिवार के बदलने में बड़ा योगदान दिया है। विवाह विच्छेद, कम होती सहनशीलता आज एक बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि परिवार के सभी सदस्यों को कम से कम एक घंटे बिना मोबाइल के आपस में बात करनी चाहिए क्योंकि संप्रेषण ही परिवार को मजबूती प्रदान करता है । सेमीनार के विशिष्ट अतिथि शासकीय द्रोणाचार्य महाविद्यालय, गुरुग्राम (हरियाणा) के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक डॉ. भूप सिंह ने कहा कि कन्या भ्रूण में हत्या जैसे अनेक विपरीत कार्यों ने समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाले हैं। आयोजन संरक्षक प्राचार्य डॉ. किरण गजपाल ने कहा कि परिवार में वैवाहिक भूमिका और सत्ता के वितरण में बदलाव हो रहा है, अब अधिकार परिवार के बुजुर्गों के हाथ से निकलकर युवाओं को स्थानांतरित हो रहे है। परिवार जैसी संस्था टूटने के कारण ही झूलाघर, नर्सरी ,वृद्ध आश्रम आदि बढ़ रहे हैं । उन्होंने कहा कि इस सेमिनार का उद्देश्य समाज में बढ़ते विघटन को कम करना है।

इसके पूर्व कार्यक्रम संयोजक डॉ. प्रीति शर्मा ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि परिवार का उद्देश्य चारित्रिक निर्माण और सामाजिक आचरण निर्मित करने का रहा है। परंतु बेहतर रोजगार और शिक्षा के लिए बढ़ती गतिशीलता ने परिवार पर प्रभाव डाला है और संयुक्त परिवार एकल परिवार में बदल रहे हैं। टूटते परिवार, एकल पलक , बढ़ते वृद्धाश्रम आज चिंता का विषय है। बढ़ती व्यक्तिवादिता ने भी नए मतभेद उत्पन्न किए हैं। इन सबसे जूझने का संकल्प लेना होगा। आईक्यूएसी प्रभारी डॉक्टर उषा किरण अग्रवाल ने बदलते वैश्वीकरण और परिवार के मनोवैज्ञानिक पक्ष पर अपने विचार रखे। मंच संचालन करते हुए डॉ मनीषा महापात्र ने कहा कि पीढ़ी का अंतर, बदलती जीवन शैली आदि से वैचारिक मतभेद उत्पन्न हो रहे हैं जिससे तनाव हो रहा है ।

सेमीनार के प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता बीएचयू (यूपी) के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. अरविंद जोशी ने कहा कि आज पूरा विश्व एक बाजार है जबकि भारत के लिए पूरा विश्व एक कुटुंब है। सोशल मीडिया ने आज असीम सूचनाओं को परोस दिया है पर अफसोस वे अधिकांशतः गलत हैं और उसका दुष्प्रभाव समाज को भुगतना पड़ रहा है । शासकीय टी.आर.एस. महाविद्यालय रीवा (मध्यप्रदेश) के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक डॉ. महेश शुक्ला ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर गृह विज्ञान विभाग की प्राध्यापक डॉ. शिप्रा बैनर्जी , डॉ. नंदा गुरुवारा तथा डॉ. शिखा मित्रा की दो पुस्तकों का विमोचन किया गया।

आयोजन सचिव डॉ. प्रमिला नागवंशी न ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ सुचित्रा शर्मा, डॉ. एल.एस. गजपाल, डॉ हर्ष पांडे, डॉ सुशील गुप्ता, डॉ. मंजू झा तथा डॉ. सुनीता सत्संगी सहित प्राध्यापकगण, शोधार्थीगण एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे। इस अवसर पर छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया जिसका निर्देशन डॉ. स्वपनिल कर्महे ने किया।

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