जीवन एस साहू
गरियाबंद। रात के सन्नाटे में गरियाबंद के कुरुसकेरा, कोपरा, फिंगेश्वर और चौबेबांधा रेत घाटों पर चैन माउंटेन मशीनों का शोर एक नई कहानी सुनाता है। यह कहानी है माफिया के बढ़ते साहस, जनप्रतिनिधियों की साझेदारी, और प्रशासनिक नाकामी की। हर रात, महानदी के सीने से रेत का अवैध खनन बिना रोक-टोक जारी है।
माफिया का ‘ऑल-नाइट बिज़नेस’
इन घाटों पर चैन माउंटेन मशीनें ऐसी चलती हैं जैसे किसी बड़े सरकारी प्रोजेक्ट पर काम हो रहा हो। लेकिन असल में, यह सरकार को चूना लगाने का खेल है। हर हाइवा पर 5,000 से 6,000 रुपये वसूले जाते हैं, और इस पैसे का कोई रिकॉर्ड नहीं।
रेत माफिया के पास अपने सेटअप की पूरी प्लानिंग है। एक चैन माउंटेन मशीन का मासिक किराया 3 लाख रुपये होता है, लेकिन रातभर में 50 से 100 हाइवा की लोडिंग से यह पैसा एक दिन में ही कमा लिया जाता है।
“रेत का खेल और राजनीति का मेल”
अवैध रेत खनन केवल माफियाओं तक सीमित नहीं है। स्थानीय सूत्रों का दावा है कि राजिम के एक बड़े जनप्रतिनिधि ने 90 लाख रुपये में चैन माउंटेन मशीन और हाइवा खरीदकर इसे ‘अपना कारोबार’ बना लिया है। उनकी योजना चुनावी फंडिंग के लिए इन रेत घाटों का दोहन करना है।
यह मामला पार्टी आलाकमान और संगठन तक भी पहुंचा, जिसके बाद अब यह खनन उनके खास आदमियों की निगरानी में जारी है।
प्रशासन का ‘डायलॉग मोड’
कभी-कभी प्रशासन रेत माफियाओं को रोकने की कोशिश करता था, लेकिन उनके पास जो इकलौता वाहन था, वह अब पुराना हो चुका है और शासन ने वापस ले लिया। अब अधिकारी सिर्फ कागजों पर कार्रवाई की बातें करते हैं और गाड़ी मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
पर्यावरण का दर्द और सरकार का घाटा
इस अवैध खनन से न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकार को रोजाना लाखों रुपये की रॉयल्टी का नुकसान हो रहा है। महानदी, जो कभी क्षेत्र के जीवन की धारा थी, अब संकट में है। पानी का स्तर गिर रहा है, और पारिस्थितिकी असंतुलित हो रही है।
रेत घाट: ‘पैसा बोलता है’
स्थानीय जनप्रतिनिधियों का संरक्षण और प्रशासन की निष्क्रियता ने रेत माफियाओं के लिए माहौल को अनुकूल बना दिया है। सूत्र बताते हैं कि इस खेल में होने वाले मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा ऊपर तक पहुंचाया जाता है। यही कारण है कि कार्यवाही केवल दिखावा बनकर रह गई है।
निष्कर्ष: ‘माफिया का राज और प्रशासन का मूक समर्थन’
गरियाबंद के रेत घाटों पर चल रही यह रात की हलचल साफ दिखाती है कि कानून और नियमों का कोई डर नहीं। रेत माफियाओं का यह ‘रेत साम्राज्य’ स्थानीय नेताओं और प्रशासनिक तंत्र की अनदेखी के कारण दिन-ब-दिन मजबूत होता जा रहा है।