#संपादकीय

कही-सुनी (14 DEC-25) : मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के दो साल

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रवि भोई की कलम से

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय 13 दिसंबर को अपने कार्यकाल के दो साल पूरे कर लिए। इन दो सालों में विष्णुदेव साय ने सत्ता और संगठन में अपनी पकड़ बनाने के साथ प्रशासन को भी नया अमलीजामा पहनाया। प्रदेश अध्यक्ष, विधायक-सांसद और केंद्र में मंत्री रहने के अनुभव के आधार पर अधिकांश नए विधायकों को मंत्रिमडल में जगह देकर दो साल में विष्णुदेव साय ने सहज और सरल तरीके से सरकार चलाई है। विष्णुदेव ने विपक्ष की आलोचना की परवाह न कर 13 मंत्री बनाने का साहस किया। डॉ रमन सिंह 12 मंत्रियों के साथ 15 साल चले और भूपेश बघेल पांच साल। हरियाणा की तर्ज पर 13 मंत्रियों के फार्मूला को छत्तीसगढ़ में लागू करने के लिए विष्णुदेव साय को हमेशा याद किया जाएगा। विष्णुदेव साय ने दो साल के भीतर ही अपने मंत्रिमंडल का विस्तार और मंत्रियों के विभागों में हेरफेर कर राजनीतिक कुशलता का परिचय भी दे दिया। साय के राज में गांव से लेकर शहर की सत्ता पर भाजपा के कब्जा से पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश और उत्साह का संचार भी देखा गया। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पार्टी संगठन में भी प्रदेश स्तर पर कुछ महत्वपूर्ण पदों पर अपनी पसंद को तवज्जो देकर नया संकेत दे दिया। छत्तीसगढ़ के लिए नक्सलवाद बड़ी समस्या थी और यह राज्य के माथे पर बदनुमा दाग जैसा भी था। विष्णुदेव के राज में केंद्र सरकार के सहयोग से जिस तरह ऑपरेशन चला, उससे नक्सलियों ने पूरी तरह घुटने टेक दिए। नक्सलियों के बड़े-बड़े नेता और थिंक टैंक मारे गए या आत्मसमर्पण कर दिया। राज्य में नक्सलवाद के सफाये की बात जब भी लोगों की जेहन में आएगी, तब विष्णुदेव साय के राज को याद किया जाएगा। विष्णुदेव साय ने शुरूआती दौर में ही नई औद्योगिक नीति लांच कर राज्य के विकास के प्रति अपनी ललक को प्रदर्शित किया। मुख्यमंत्री साय उद्योगपतियों को न्योता देने देश के महानगरों में गए। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विदेश का दौरा भी किया। आदिवासी वर्ग के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले विष्णुदेव साय का फोकस ट्राइबल इलाकों में भी देखा गया। खासतौर सरगुजा और बस्तर इलाके के विकास में। साय ने चुनावी वादे महतारी वंदन, किसानों को बोनस और 3100 रुपए में धान खरीदी जैसे कई घोषणाओं पर अमल कर वादे पूरी करने वाली सरकार के रूप में साख बनाई। साय ने दो साल, या कहें पहली पारी में अच्छा प्रदर्शन कर तालियां बटोरी हैं। अगले तीन साल के प्रदर्शन का लोगों को इंतजार है।

नई गाइड लाइन में एक बिल्डर के ‘पौ बारह’

चर्चा है कि राज्य में जमीन रजिस्ट्री की नई गाइडलाइन बनाने में एक बड़े बिल्डर की बड़ी भूमिका रही और सरकार की किरकिरी हो गई। आमतौर पर पंजीयन मंत्री जनता के कोप के दायरे में नहीं आते, पर गाइडलाइन वृद्धि के मामले में पंजीयन मंत्री के खिलाफ लोग सड़क पर उतर आए। बताते हैं नई गाइडलाइन में बड़े बिल्डर के प्रोजेक्ट के पास जमीन की दर 2200 रुपए प्रति वर्ग फीट तय की गई, जबकि उससे कुछ दूरी पर बन रहे एक प्रोजेक्ट के पास जमीन की गाइड लाइन दर 5500 रुपए प्रति वर्ग फुट रखी गई। बताते हैं बिल्डर के प्रोजेक्ट में कई आईएएस और नेताओं के बंगले हैं। बिल्डर को एक मंत्री का काफी करीबी बताया जा रहा है। बड़े बिल्डर के इशारे पर जमीन की गाइड लाइन दरें तय होने की खबर से दूसरे बिल्डर और जमीन के कारोबारी एकजुट हो गए और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल लिया। खबर है कि राज्य में कुछ विधायक और भाजपा के अन्य नेता जमीन का धंधा करते हैं। इस कारण से जमीन की नई गाइडलाइन दरें सबको चुभ गया। लोगों के विरोध के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को हस्तक्षेप करना पड़ा और पुनर्विचार का आश्वासन देना पड़ा। मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद एक्शन भी शुरू हो गया और कुछ सुधार हुआ। व्यापक सुधार के लिए सुझाव भी मांगे गए। इसके बाद लोगों का गुस्सा कुछ शांत हुआ।

विभागाध्यक्ष से दुखी मंत्री

कहते हैं एक मंत्री जी अपने विभागाध्यक्ष से दुखी है। बच्चों को पढ़ने-पढ़ाने विभाग से जुड़े मंत्री जी अपने मातहत विभागाध्यक्ष की पोस्टिंग से पहले ही सशंकित थे। अब कार्यशैली से खुश नहीं हैं और मानकर चल रहे हैं कि ज्यादा दिन तक दोनों में निभ पाना संभव नहीं है। विभागाध्यक्ष महिला अफसर हैं, ऐसे में मंत्री जी और भी हैरान-परेशान बताए जाते हैं। महिला अफसर के बारे में चर्चा है कि वे अपने स्टाइल में काम करती हैं और ज्यादा किसी की सुनती नहीं हैं। महिला अफसर का सोशल मीडिया प्रेम भी सुर्ख़ियों में रहता है। मंत्री जी पहली बार विधायक और मंत्री बने हैं। वे चिंतित हैं विभागाध्यक्ष उनके मन मुताबिक काम नहीं करेंगी तो वे लोगों को कैसे खुश कर पाएंगे और अपनी छवि निखार पाएंगे। अब देखते हैं मंत्री जी झुकते हैं या महिला अफसर अपने कार्यशैली में बदलाव लाती हैं।

सुर्ख़ियों में छत्तीसगढ़ के पुलिस अफसर

एक कारोबारी से रिश्ते को लेकर आजकल छत्तीसगढ़ में डीएसपी स्तर की पुलिस अफसर काफी सुर्ख़ियों में है। दोनों पक्षों की तरफ से मामला थाने में भी पहुँच गया है। आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है और सोशल मीडिया में भी मामला गरमाया है। कुछ महीने पहले एक सब इंस्पेक्टर की पत्नी से संबंध को लेकर छत्तीसगढ़ में एक आईजी स्तर के अफसर चर्चा में आए थे। इस मामले में पुलिस महानिदेशक ने एक जाँच टीम बना दी है। जाँच रिपोर्ट आने के बाद वस्तुस्थिति सामने आएगी, लेकिन छत्तीसगढ़ के पुलिस अफसर विवादों में क्यों फंस रहे हैं, यह बड़ा सवाल है। पुलिस का काम जनता को सुरक्षा देना और गलत -सही का पता लगाना है। अब पुलिस अफसर ही निजी विवादों में उलझ जाएंगे, तो जनता के लिए क्या काम करेंगे। क्या पुलिस महकमें में नैतिकता का पाठ कमजोर पड़ गया है। इसे आला अफसरों को देखना होगा। अफसरों के निजी उलझनों का असर छत्तीसगढ़ पुलिस की साख पर भी तो पड़ रहा है।

पांच कलेक्टरों का ट्रांसफर आयोग में अटका

कहा जा रहा है कि राज्य के पांच कलेक्टरों के ट्रांसफर का प्रस्ताव चुनाव आयोग में अटक गया।अब तो 21 फ़रवरी के बाद ही कलेक्टर, एसडीएम और एसआईआर के काम में लगे अफसरों के ट्रांसफर होंगे। छत्तीसगढ़ में एसआईआर के फार्म जमा करने की तारीख 18 दिसंबर तक बढ़ गई। इस कारण अन्य प्रक्रियाएं भी आगे खिसक गईं। कहते हैं पांच जिलों के कलेक्टर को लेकर राज्य के नेता और उद्योगपति सरकार से शिकायत कर रहे थे। इस कारण सरकार उनकी जगह नए लोगों को भेजना चाहती थी। लगता है चुनाव आयोग से प्रस्ताव नहीं लौटने से मामला ठंडे बस्ते में चला गया। मंत्रालय स्तर पर आईएएस अफसरों की पोस्टिंग नए साल में होने की उम्मीद है।

जशपुर हाल से विधानसभा का अपना भवन

छत्तीसगढ़ विधानसभा का पहला सत्र 14 दिसंबर 2000 को राजकुमार कालेज के जशपुर हाल में आयोजित हुआ था। 25 साल बाद 14 दिसंबर 2025 को नवा रायपुर में नवनिर्मित भव्य विधानसभा के नए भवन में सत्र आहूत की गई है। अस्थायी से विधानसभा की स्थायी व्यवस्था हो गई है। विधानसभा के नए भवन में पहली बैठक की अध्यक्षता का गौरव डॉ रमन सिंह को मिलेगा , क्योंकि वे अभी विधानसभा अध्यक्ष हैं। नए भवन की पहली बैठक में नेता की कुर्सी पर मुख्यमंत्री के तौर पर विष्णुदेव साय रहेंगे। नेता प्रतिपक्ष के आसन में डॉ चरणदास महंत बैठेंगे। 25 साल पहले राज्य में कांग्रेस सत्ता में थी और भाजपा विपक्ष में। 25 साल के सफर में कई परिदृश्य बदल गए हैं। विधानसभा भी हाईटेक हो गई है।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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