#संपादकीय

कही-सुनी (28 DEC-25) : रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम कब होगा लागू

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रवि भोई की कलम से

चर्चा थी कि रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम एक जनवरी 2026 से लागू हो जाएगा। लेकिन अभी तक की तैयारियों को देखकर लगता नहीं है कि एक जनवरी से रायपुर में पुलिस कमिश्नर की ताजपोशी हो पाएगी। कहा जा रहा है कि 31 दिसंबर को कैबिनेट की बैठक में इस पर चर्चा का अब तक प्रस्ताव नहीं है और न ही मंत्री स्तर पर कोई चर्चा हो पाई है। खबर है कि रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम पर गृह मंत्री विजय शर्मा इस हफ्ते मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी और अन्य अधिकारियों से चर्चा करना चाहते थे, लेकिन मुख्य सचिव के चीफ सेक्रेटरी कांफ्रेस में दिल्ली चले जाने से मामला टल गया। बताते हैं रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने के लिए ओड़िशा,महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश और अन्य कुछ राज्यों के पुलिस कमिश्नर सिस्टम का अध्ययन किया गया है, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है। इस कारण विधेयक का प्रारूप भी नहीं बनाया जा सका है। अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम के लिए विधेयक लाया जाएगा या अध्यादेश यह भी तय नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम का मामला 26 जनवरी तक तो टल ही गया। पर सब कुछ सरकार के रुख पर निर्भर करेगा।

ज़माना बाबाओं का

कहा जा रहा है यह जमाना तो बाबाओं का ही है। बाबा बन जाओ वारे-न्यारे हो जाएंगे। छत्तीसगढ़ में तो बाबाओं की और भी इज्जत है। यहां बाबाओं को राजकीय अतिथि का दर्जा मिल जाता है और उनकी सेवा में सरकारी उड़नखटोला भी पेश कर दिया जाता है। यहां मंत्री उनकी सेवा में हाजिर होते हैं और कानून के रखवाले चरण वंदना करते हैं। शायद ऐसा माकूल जगह देश में कहीं और नहीं मिलता इस कारण कई बाबा लोग छत्तीसगढ़ में मंडराते नजर आते हैं और अच्छी फसल काटकर ले जाते हैं। बाबाओं के दरबार में बड़े-बड़े राजनेता शीश नवाने पहुंच जाते हैं और कई छुटभैय्ये नेता बाबाओं के दरबार सजवाकर ओहदेदार और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति बन जाते हैं। बाबाओं का दरबार सजवाने वाला एक व्यक्ति तो अपने को इतना ऊँचा मान लिया कि विधायकों को अपनी जेब में रखने की बात करने लगा। अब एक बाबा के सत्कार को लेकर इन दिनों छत्तीसगढ़ में राजनीति गरमाई हुई है। कांग्रेस और भाजपा के लोग एक-दूसरे पर वार-प्रतिवार कर रहे हैं। बाबाओं को लेकर भले राजनीतिक खींचतान चले, लोग बाबा की तरफ खींचे चले जाएंगे तो दरबार सजाने वाले मौका का फायदा उठाएंगे ही। बाबाओं के दरबार भीड़ जुटाने और ताकत दिखाने का अच्छा माध्यम बन गया है, सो हर कोई फसल काटना चाहता है। यह सही भी जमाना तो बाबाओं का ही, इसलिए नए-नए बाबा पैदा हो रहे हैं।

महिला आईएएस का टेरर

आजकल मंत्रालय महानदी भवन में एक महिला आईएएस अफसर का टेरर चर्चा में है। कहते हैं महिला आईएएस ने अपने मातहत अफसर को ऐसी फटकार लगाईं की, वह जीवन से ही उबने लग गया। बताते हैं महिला अफसर अपने को बहुत ईमानदार बताती हैं और अपने मातहतों के बीच ईमानदारी की बखान भी करती हैं। महिला अफसर के रुख से मातहतों में घबराहट बनी रहती है। सुनते हैं कि महिला अफसर अपने मातहत महिला अफसरों को आड़े हाथों लेने से नहीं चूकतीं। कुछ साल पहले अपने मातहत महिला अफसर के पहनावे को लेकर भड़क गईं थी और खरी-खरी सुना दी थी। महिला अफसर ने एक मीटिंग में अपने से कनिष्ठ अफसर को आड़े हाथों ले लिया था। कहा जाता है सीनियर महिला अफसर कब किस पर भड़क जायं, पता नहीं होता। सब कुछ उनके मूड पर निर्भर करता है।

नए साल में प्रशासनिक फेरबदल की अटकलें

चर्चा है कि नए साल के पहले या दूसरे हफ्ते में मंत्रालय और जिला स्तर पर प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है। कहा जा रहा है कि नए साल में दो-तीन जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। मंत्रालय में भी सचिव स्तर के कई अफसरों के विभागों में हेरफेर हो सकता है। कुछ अफसर दो साल से अधिक समय से एक ही विभाग में तैनात हैं, उनको बदले जाने की चर्चा है। समग्र शिक्षा की आयुक्त डॉ प्रियंका शुक्ला के प्रतिनियुक्ति पर जाने से रिक्त पद पर भी सरकार को किसी की पोस्टिंग करनी पड़ेगी। इसके अलावा कुछ अफसर केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले हैं।

अजय चंद्राकर के तीखे तेवर के मायने

डॉ रमन सिंह के मंत्रिमंडल में 10 साल मंत्री रहे कुरुद के भाजपा विधायक अजय चंद्राकर विधानसभा के भीतर लगातार तीखे तेवर दिखा रहे हैं। शीतकालीन सत्र में अजय चंद्राकर के सवालों से कई मौकों पर मंत्री पसोपेश में दिखे। अजय चंद्राकर वरिष्ठ और अनुभवी विधायक हैं, उनके मुकाबले जूनियर विधायक साय सरकार में मंत्री बन गए हैं। अजय चंद्राकर स्वाभाविक रूप से मंत्री की दौड़ में थे, पर नए फार्मूले में कुर्मी वर्ग से टंकराम वर्मा मंत्री बन गए। वैसे तो अमर अग्रवाल, राजेश मूणत, लता उसेंडी,विक्रम उसेंडी जैसे पुराने मंत्रियों को भी साय कैबिनेट में जगह नहीं मिली। केदार कश्यप, रामविचार नेताम और दयालदास बघेल किस्मत वाले निकले। भाजपा की नई रणनीति को देखते हुए लोग चर्चा कर रहे हैं कि पुराने नेताओं का समय लौटने की संभावना कम ही है।

रायपुर की साख पर बट्टा

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ बंद के दौरान एक शॉपिंग माल में कुछ लोगों ने जिस तरह की घटना को अंजाम दिया, उससे देश-दुनिया में रायपुर की बदनामी हो गई है। यह घटना सुर्ख़ियों में है। कुछ लोग अपना हित साधने के लिए ऐसे काम कर जाते हैं, जिससे समाज बदनाम होता है और घाव भी इतना गहरा हो जाता है कि उसका सालों भरना संभव नहीं होता। अब रायपुर की पुलिस शॉपिंग माल में घटना को अंजाम देने वाले कुछ लोगों को गिरफ्तार कर रही है। कुछ लोगों की गिरफ्तारी से रायपुर की साख पर लगा दाग इतनी जल्दी मिटने वाला नहीं है।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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