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डोनाल्ड ट्रंप 20 को लेंगे शपथ , लेकिन PM मोदी नहीं जाएंगे…जानिए भारत के साथ रिश्तों पर क्या पड़ेगा असर

नई दिल्ली। अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिलने जा रहा है। पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में जनता ने डोनाल्ड ट्रंप को अपना राष्ट्रपति चुन लिया है। ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। वे 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। ट्रंप के शपथ ग्रहण को लेकर पूरी तैयारी की गई है और पूरी दुनिया निगाहें अमेरिका में होने वाले इस खास समारोह पर रहेगी। इस समारोह के लिए कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भी आमंत्रित किया जाता है। भारत को भी अमेरिका की ओर से आमंत्रित किया गया है। भारत की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी नहीं, बल्कि भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री एस जयशंकर करेंगे।

आइए इससे पहले अमेरिका के इतिहास के बारे में जानते हैं…अमेरिकी संविधान 1789 में अस्तित्व में आया था। 1789 से 1933 तक नया राष्ट्रपति 4 मार्च को शपथ लेता था। लेकिन, 1933 में संविधान में 20वें संशोधन किया गया। यह संशोधन नेब्रास्का के सीनेटर जॉर्ज नॉरिस की पहल पर हुआ था। इसके बाद फ्रैंकलिन डी रूसवेल्ट अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने 1933 में 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। चुनाव नवंबर में और शपथ जनवरी में, अमेरिका में इतना लंबा गैप जानबूझकर रखा गया है जिससे मौजूदा सरकार इस अवधि में सभी लंबित कामकाज निपटा ले और दोनों सरकारों के बीच सत्ता का हस्तांतरण आसानी से हो सके। अमेरिका में इस अवधि को लेम डक कहा जाता है।

अमेरिका में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन राजधानी वाशिंगटन डीसी में नेशनल मॉल में आयोजित किया जाता है। इस समारोह में हजारों लोग शामिल होते हैं। इसके लिए वहां पर एक विशाल मंच तैयार किया जाता है। इस दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति और उनके कैबिनेट के अन्य सदस्य समेत विभागों के प्रमुख चुने गए लोग शपथ लेते हैं। अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को शपथ दिलाने का जिम्मा संयुक्त राज्य अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश (चीफ जस्टिस ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स) के पास होता है। अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख की अगुवाई में नए राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को संविधान के अनुसार निभाने की शपथ लेते हैं।

जानिए ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल से भारत के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा
अमेरिका की तरफ से ट्रम्प के शपथ समारोह के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्यौता भी आया है। ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती जगजाहिर है। हालांकि, इसमें पीएम मोदी शामिल नहीं होंगे। प्रधानमंत्री मोदी की जगह शपथ समारोह में विदेश मंत्री एस. जयशंकर हिस्सा लेंगे। ट्रंप हमेशा से अमेरिका फर्स्ट के नारे के साथ आगे बढ़े हैं। ये कुछ उसी तरह है, जैसे भारतीय पीएम मोदी मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया का नारा देते आए हैं। अमेरिका फर्स्ट के नारे से करोड़ों मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित किया जिन्होंने अमेरिका को फिर से महान बनाने की उनकी विचारधारा का समर्थन किया।

अर्थव्यवस्था के कायाकल्प और लोगों की आर्थिक खुशहाली को बढ़ावा देने के वादे ने अमेरिकी मतदाताओं, खासकर भीतरी इलाकों में, मतदाताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। भारतीय विदेश व्यापार संस्थान, के कुलपति प्रो. राकेश मोहन जोशी के अनुसार तेजी से आर्थिक लाभ प्राप्त करने की ट्रंप की व्यापार विचारधारा इस बुनियादी व्यापारिक नियम पर आधारित है कि अमेरिका को अधिक निर्यात और कम आयात करना चाहिए, व्यापार घाटे को घटना चाहिए और जल्द से जल्द व्यापार संतुलन कायम करना चाहिए। आधुनिक व्यापार के सिद्धांतकारों और शोधकर्ताओं द्वारा दुनिया भर में मुक्त व्यापार के प्रचार के बावजूद, अमेरिका में अधिकांश लोगों का मानना है कि मुक्त व्यापार वास्तव में आम अमेरिकी नागरिकों के हितों के लिए नुकसानदेह है।

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