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प्रयाग नगरी राजिम में एक बार फिर भव्य रूप से “राजिम कुंभ कल्प” ,आस्था, आध्यात्म और संस्कृति का त्रिवेणी संगम

 

जीवन एस साहू

गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम, जिसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। इस प्रयाग नगरी राजिम में एक बार फिर भव्य रूप से “राजिम कुंभ कल्प” की शुरुआत होने जा रही है। राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम में तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहां मुख्य रूप से तीन नदियां महानदी, पैरी तथा सोंढूर प्रवाहित होती है। संगम स्थल पर कुलेश्वरनाथ महादेव जी विराजमान है। राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, वर्ष 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता था।

जिसके बाद वर्ष 2019 से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आते ही इसे राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया जा रहा था। यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से होता है। छत्तीसगढ़ सरकार इसे विकसित करने कार्ययोजना तैयार कर उन स्थलों को चिन्हांकित कर रामवनगमन पर्यटन परिपथ की तर्ज पर विकास कार्य किए गए है, गरियाबंद जिले के धार्मिक नगरी राजिम में भी रामवनगमन के तहत विकास के कार्य हुए। इस तारतम्य में 7 जनवरी 2023 को भगवान श्रीराम जी की विशाल मूर्ति का अनावरण किया गया साथ ही भगवान राजीवलोचन मंदिर के तट से कुलेश्वरनाथ मंदिर तक लक्ष्मण झूला का भी निर्माण किया गया है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। पर्यटकों की सुविधाओं को देखते हुए पेयजल, यात्रियों के ठहरने के लिए यात्री प्रतीक्षालय साथ ही नदी के पूरे तट पर भगवान श्रीराम और माता सीता की मूर्तियां उकेरी गई है। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद अब छत्तीसगढ़ प्रदेश में पुनः भाजपा की सरकार आ गई है, जिसके बाद विधानसभा सत्र की पहली बैठक में प्रस्ताव पारित कर इसे फिर से राजिम कुंभ कल्प मनाए जाने का निर्णय लिया गया है।

इस वर्ष 24 फरवरी से 8 मार्च तक चलने वाला राजिम कुंभ कल्प की छटा अलौकिक व अद्भुत होने जा रही है, अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि की प्राण–प्रतिष्ठा के बाद से पूरा देश राममय हो गया है, लिहाजा प्रभु श्रीराम जी के ननिहाल छत्तीसगढ़ के प्रयाग राजिम में आयोजित होने वाली राजिम कुंभ कल्प को “रामोत्सव” के रूप में मनाया जाएगा। इसमें देशभर से बड़ी संख्या में नागा साधु संत भी कुंभ में आएंगे। पांच साल बाद राजिम कुंभ की भव्यता लौट रही है। राजिम कुंभ कल्प में इस बार यहां विश्वस्तरीय कथावाचक बागेश्वरधाम बाबा पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री एवं पंडित प्रदीप मिश्रा भी आएंगे। राजिम कुंभ कल्प की भव्यता को लेकर कार्ययोजना बनाकर युद्ध स्तर पर प्रशासनिक तैयारियां शुरू हो गई है।

मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है। पखवाड़ेभर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं, पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं तथा धुनी रमाते हैं। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। मेला में विभिन्न जगहों से हजारों साधू संतों का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आदि आते हैं, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते हैं, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते हैं और अपना जीवन धन्य मानते हैं। लोगो में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती, जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।

राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है। राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है। प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहां कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलने वाले मेले में प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन होते हैं।

–छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम–
छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” कहे जाने वाले राजिम की पहचान पहले से ही आस्था, धर्म, संस्कृति की नगरी के नाम से विख्यात है, राजिम नगरी की धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक मान्यता है, राजिम अत्यंत ऐतिहासिक महत्व का स्थान है। यह स्थान इसलिए भी अनुकरणीय है क्योंकि यहां तीन नदियों महानदी, पैरी और सोंढूर का पवित्र संगम है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। इसी संगम के पूर्व में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है। राजिम नाम को लेकर बहुत सी किवंदतियां है, जिसमें प्रमुख उल्लेख एक राजिम नाम की तेलिन की कथा है, जो कि भगवान विष्णु जी की अनन्य भक्त थी। जिसके नाम से इस नगर का नाम राजिम पड़ा, राजीवलोचन मंदिर परिसर में राजिम भक्तिन माता का मंदिर भी स्थित है। बताया जाता है कि यहां के प्रधान मंदिर राजीवलोचन की ध्वनि भी राजिम शब्द से मिलती है जो इसके नामकरण का कारण हो सकता है। राजिम प्राचीनकाल से ही पवित्र क्षेत्र माना गया है, जिसे कभी कमलक्षेत्र पदमावतीपुरी के रूप में जाना जाता था।

ऐसी मान्यता है, कि वनवासकाल के दौरान जब भगवान श्रीराम, माता सीता और भगवान लक्ष्मण राजिम पहुंचे थे, तभी त्रिवेणी के मध्य माता सीता ने भगवान शिव की आराधना और पूजा कर बालू से शिवलिंग का निर्माण किया जिसे आज कुलेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है। सोंढुर, पैरी और महानदी संगम तट में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है, दक्षिण कोशल के नाम से प्रख्यात क्षेत्र में प्राचीन सभ्यता, सांस्कृतिक एवं कला की अमूल्य निधि संजोए इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और कलानुरागियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसी को लेकर बारहों महीने देशभर से यहां पर्यटक पहुंचते हैं। राजिम कुंभ की विशेषता यह है कि जिस स्थान पर यह लगता है वहां तीन जिलों की सीमाएं मिलती है, एक तरफ लोमश ऋषि आश्रम धमतरी जिले में है तो दूसरी तरफ राजीवलोचन मंदिर गरियाबंद जिले में और नयापारा नगर रायपुर जिले में आता है।कुलेश्वरनाथ महादेव से कुछ दूरी पर संत लोमश ऋषि का आश्रम है, जहां वनवासकाल के दौरान भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण रुके थे ।

छत्तीसगढ़ की पहचान भगवान राम के ननिहाल के रूप में की जाती है। भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान काफी समय इसी प्रांत के जंगलों में बिताया था। यहां से भगवान राम का नाता बहुत ही गहरा हैं और उनका छत्तीसगढ़ के लोकसाहित्य, लोककथाओं और आम जीवन पर गहरा प्रभाव है। ऐसा माना जाता है कि माता सीता और लक्ष्मण ने छत्तीसगढ़ में भगवान राम के साथ प्राचीन दंडकारण्य में 12 वर्ष बिताए थे। पावन नगरी राजिम के त्रिवेणी संगम महानदी, पैरी और सोंढूर के मध्य विराजित अद्भुत भगवान कुलेश्वरनाथ महादेव स्थित है, कहा जाता है कि त्रेतायुग में वनवास काल के दौरान रामचंद्र जी ने रामेश्वर महादेव की स्थापना की, लक्ष्मण ने लक्ष्मणेश्वर नाथ महादेव की स्थापना खरौद में की एवं माता जानकी सीता ने प्रयाग धाम राजिम में कुलेश्वरनाथ महादेव की। राजिम के त्रिवेणी संगम में स्थित कुलेश्वरनाथ पंचमुखी शिवलिंग के रूप में विद्यमान है। जनश्रुति के अनुसार यहीं वनवास के समय माता सीता ने अपने आराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं अपने हाथों से बालू ( रेत ) से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा अर्चना और आराधना करते समय अंगुलियों से अर्ध्य देने पर इस मूर्ति के पांच स्थानों से जलधारा फूल निकली थी, जिससे शिवलिंग ने पंचमुखी आकार ले लिया।

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है राजिम, इसके तट पर होता है मोह, माया का त्याग । त्रिवेणी संगम तट पर स्थित राजिम में है भगवान राजीवलोचन का प्राचीनतम मंदिर, जहां चतुर्भुजी विष्णु के रूप विराजमान है, जो हाथों में शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण किए हुए हैं। यह प्रतिमा गजेंद्र मोक्ष हरि अवतार की है, जो कमलफुल विष्णु प्रतिमा के हाथ में स्थित है उसे गज द्वारा अपने सूंड से भगवान को अर्पित करते हुए अंकित किया गया है। राजीवलोचन मंदिर के चारों कोनों में भगवान विष्णु के चार अवतारों के मंदिर–नरसिंह अवतार, बदरी नारायण अवतार, वामन अवतार और वाराह अवतार स्थित है। यह मंदिर एक विशाल आयताकार के प्रकार के मध्य में बनाया गया है। इस मंदिर को 7वीं –8वीं सदी का बताया जाता है। राजीवलोचन मंदिर के महामण्डप की दीवार पर कलचुरी संवत 896 का एक शिलालेख है, जिसे रतनपुर के कलचुरी के अधीनस्थ सामंत जगतपाल ने उत्कीर्ण कराया था। बताया जाता है कि राजिम के देवालय सामान्यतः 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच के बने हुए हैं। इतिहास से वर्तमान तक के विकासगाथा का एक सोपान है ये मंदिर। राजिम का राजीवलोचन मंदिर अपने आप में बहुत सी खूबियां समेटे हुई है, इसके चारों परकोटों में चारोधाम के दर्शन किए जा सकते हैं, वहीं बीचों–बीच खड़ी है विष्णु जी की प्रतिमा, इस चतुर्भुजी मूर्ति का दिन में तीन बार श्रृंगार किया जाता है, जिसमें विष्णु जी के बचपन, युवा अवस्था और वृद्धावस्था की कल्पना की जाती है। प्राचीन बस्तर तथा दक्षिण कोशल के इतिहास की कई परतें खोलने वाले इस मंदिर की भव्यता एक–एक मूर्ति तथा प्रवेशद्वार में की गई नक्काशी ( कलाकृति ) में दृष्टिगोचर होती है। राजिम को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है, संगम तट पर पंचेश्वर नाथ महादेव, भूतेश्वरनाथ महादेव का लिंग, मंदिर के द्वितीय परिसर में दान–दानेश्वर महादेव, वहीं राजीवलोचन के ठीक सामने एक ही सीध में राज राजेश्वर नाथ महादेव दिव्य लिंग के रूप में प्रचारित है।

राजिम कुंभ देश दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए रखी है। बृजमोहन अग्रवाल के नेतृत्व में राजिम कुंभ के साथ राजिम शहर का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा है। छत्तीसगढ़ में पर्यटन को बढ़ावा देने के संबंध में बीते दिनों धर्मस्व एवं धार्मिक न्यास, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने नई दिल्ली में केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी से मुलाकात कर छत्तीसगढ़ के पांच शक्तिपीठों के साथ–साथ प्रयाग राजिम में कारीडोर बनाने की मांग सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा की है। धर्मस्व एवं धार्मिक न्यास, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने 03 फरवरी शनिवार को राजिम में राजिम कुंभ कल्प आयोजन के संबंध में अधिकारियों की मैराथन बैठक ली। बैठक में गरियाबंद, रायपुर, धमतरी जिले के अधिकारी कर्मचारी सहित जनप्रतिनिधि, मेला समिति के सदस्यगण एवं नागरिकगण शामिल हुए। बैठक में मंत्री अग्रवाल ने कहा कि वर्षों बाद अयोध्या में श्रीराम लला की घर वापसी हुई है। इसको पूरे देशभर में उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। उन्होंने राजिम कुंभ कल्प को भी रामोत्सव के रूप में मनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि राजिम कुंभ की भव्यता पुनः लौटेगी। और बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ राजिम कुंभ कल्प का आयोजन किया जाएगा।

राजिम कुंभ कल्प का अयोजन इस वर्ष 24 फरवरी से 8 मार्च तक किया जाएगा। इस दौरान तीन पुण्य स्नान होंगे। देशभर से बड़ी संख्या में नागा साधु संत भी कुंभ में आयेंगे। मंत्री श्री अग्रवाल ने राजिम कुंभ कल्प की भव्य आयोजन के लिए सभी विभागों द्वारा की जाने वाली तैयारियों की जानकारी लेकर निर्धारित समय में सभी तैयारियां पूर्ण करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पांच साल बाद राजिम कुंभ की भव्यता लौट रही है। इस दौरान बैठक में सांसद चुन्नीलाल साहू, रोहित साहू, विधायक राजिम, जनक ध्रुव विधायक बिंद्रानवगढ, इंद्र कुमार साहू विधायक अभनपुर, चंद्रशेखर साहू पूर्व विधायक, चंदूलाल साहू पूर्व सांसद सहित डॉ संजय अलंग, कमिश्नर, कलेक्टर दीपक अग्रवाल कलेक्टर धमतरी नम्रता गांधी, श्री आरिफ़ शेख़, आई. जी., श्री जितेन्द्र शुक्ला, प्रबंध संचालक, पर्यटन मंडल, श्री अविनाश भोई अपर कलेक्टर, श्रीमती रीता यादव, सीईओ जिला पंचायत सहित मेला समिति के सदस्यगण एवं नागरिकगण मौजूद थे।

राजिम कुंभ कल्प में पहली बार चौबेबांधा स्थित नवीन मेला मैदान में मीना बाजार लगेगी। हर बार मीना बाजार राजिम बस स्टैंड के पास आयोजित होती थी, लेकिन इस बार संभवतः स्थिति बदलती नजर आ रही है। मेले का मुख्य आकर्षण का केंद्र मीना बाजार ही है, जिसमें तरह–तरह के रंग–बिरंगी लाइटों से सजी झूले सहित दुकानें लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

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