बिलासपुर। वर्ष 2015 में अचानकमार टाइगर रिजर्व में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के प्रावधान के विरुद्ध बंधक बनाए गए सोनू हाथी के मामले में दोषियों पर कार्यवाही नहीं किए जाने के मामले में दायर रिट पिटिशन में आज छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय में न्यायमूर्ति रजनी दुबे की बेंच में सुनवाई हुई जिसमें शासन को 15 मार्च तक जवाब प्रस्तुत करने के आदेश दिए गए हैं।
वर्ष 2015 में अचानकमार टाइगर रिजर्व में विचरण कर रहे 12 वर्षीय नर हाथी को पकड़ कर पुनः वन क्षेत्र में पुनर्वासित किए जाने के आदेश प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी द्वारा जारी किए गए थे, इसके बावजूद भी अचानकमार टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने हाथी को बंधक बना लिया। तब हाथी को बंधक बनाने के कारण, उसे पहुंचे गंभीर घाव के इलाज के लिए और हाथी को वन क्षेत्र में पुन पुनर्वासित करने की मांग को लेकर जनहित याचिका भी लगी थी। याचिका दायर करने उपरांत एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया ने हाथी के इलाज के लिए विशेषज्ञों की टीम भेजी थी। वन अधिकारियों ने हाथी का नाम सोनू रखा। वर्तमान में हाथी तमोर पिंगला एलीफेंट रेस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर में वन अधिकारियों की दी गई आजीवन सजा काट रहा है।
क्या है मामला
दरअसल सोनू हाथी को वन क्षेत्र में पुनर्वासित किए जाने के आदेश के बावजूद और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर तपेश झा और उपसंचालक वी. माथेश्वरण द्वारा बंधक बनाने की शिकायत याचिकाकर्ता अधिवक्ता ब्यास मुनि द्विवेदी द्वारा शासन को की गई थी, जिसमें बताया गया था कि अधिकारियों द्वारा अधिनियम की धारा 11 का उल्लंघन किया गया है। एनिमल वेलफेयर बोर्ड की टीम ने भी अपनी रिपोर्ट में उल्लेखित किया था कि अधिनियम की धारा 11 का उल्लंघन हुआ है। गौरतलब है कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत ऐसे अपराधों के लिए 3 से 7 साल की सजा का प्रावधान है।
क्या हुआ शिकायत की जाँच में
शिकायत की जांच तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (ईको टूरिज्म) एचएल रात्रे द्वारा की गई। जांच प्रतिवेदन में दोषी अधिकारियों को बचाने के लिए और शासन को गुमराह करने का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता द्वारा दोबारा शिकायत की गई। दूसरी बार अरुण कुमार पांडे तत्कालीन एपीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) द्वारा शिकायत की जांच की गई।
जाँच उपरांत याचिकाकर्ता द्वारा वन मंत्री को बताया गया कि दोनों जांचकर्ता अधिकारी द्वारा दोषी अधिकारियों को बचाने के लिए और शासन को गुमराह करने के लिए गलत जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। इस कारण से वन विभाग के मंत्री से कार्यवाही की मांग की गई थी, जिस पर मंत्री ने अनुशंसा की थी कि एनिमल वेलफेयर बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार कार्यवाही की जावे।
शासन दो साल से वन विभाग से पूछ रहा है बताये धारा 11 का उलंघन हुआ है की नहीं
वन मंत्री की अनुशंसा उपरांत वन विभाग छत्तीसगढ़ शासन ने सबसे पहले 22 जनवरी 2021 को प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को पत्र लिखकर कहा कि उनके द्वारा दिए गए जांच प्रतिवेदन में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के संबंध में कोई अभिमत नहीं दिया गया है तथा आदेशित किया कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) अपना संशोधित जांच प्रतिवेदन उपलब्ध कराएं जिसमें स्पष्ट अभिमत / निष्कर्ष दिया जावे की वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 11 का उल्लंघन हुआ है कि नहीं? शासन स्तर से कई बार इस संबंध में स्मरण पत्र दिया गया है।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने अभिमत देने के लिए डिप्टी डायरेक्टर को पत्र भेजा
शासन द्वारा प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) से धारा 11 का उल्लंघन हुआ है कि नहीं अभी मत मांगने उपरांत, प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने उपनिदेशक, अचानकमार टाइगर रिजर्व को आदेशित किया कि वे बताए की धारा 11 का उल्लंघन हुआ है कि नहीं? शासन द्वारा प्रधान मुख्य वन संरक्षक को लगातार याद दिलाने के बावजूद भी प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा अभी तक शासन को यह नहीं बताया गया है कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 11 का उल्लंघन हुआ है कि नहीं।
क्या मांग की गई है याचिका में
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है की प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को आदेशित किया जाए कि वह जांच को पूर्ण कर, दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करें तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं उपनिदेशक अचानकमार टाइगर रिजर्व को आदेशित करें कि अपना स्पष्ट अभिमत दें की धारा 11 का उल्लंघन हुआ है कि नहीं। इस पर कोर्ट ने 15 मार्च के पूर्व शासन को अपना जवाब प्रस्तुत करने हेतु आदेशित किया है।