रायपुर-भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली एवं पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में इतिहास अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में आज राष्ट्रीय आंदोलन की विभिन्न धाराएं- सुभाषचंद्र बोस और आजाद हिंद फौज के विशेष संदर्भ में विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सर्वाधिकारी विभागध्यक्ष इतिहास विभाग, विश्वभारती विश्वविद्यालय कोलकाता प्रो. संदीप बसु थे।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि संदीप बसु सर्वाधिकारी ने सुभाषचंद्र बोस जी के विभिन्न विचार एवं उनसे जुड़े गतिविधियों का उल्लेख करते हुए उनके राजनीतिक संघर्ष व प्रमुख संगठन एवं गांधी जी के द्वारा चलाए गए आंदालनों पर प्रकाश डाला। उनके द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये जा रहे प्रयासों को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता पर जोर दिया।इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. के.एल. वर्मा ने कहा कि नेताजी के संघर्ष व बलिदान वर्तमान प्रासंगिकता को दर्शाते है, जीवन में उनके विचार कहीं न कहीं हमसे संबंधित होते हैं। विशिष्ट अतिथि प्रो. रमेन्द्रनाथ मिश्र ने सुभाषचंद्र बोस के विचारों को छत्तीसगढ़ में पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख किया। जिसमें विशेष रूप से बैरिस्टर छेदीलाल द्वारा किए गए कार्यों पर प्रकाश डाला। विशेष अतिथि प्रो. आभा रूपेन्द्र पाल ने नेताजी के क्रांतिकारी विचारों से संबंधित अत्याधुनिक सुविधाओं के अभाव होने पर भी नेताजी के द्वारा किए गए साहसिक अनछुए पहलुओं का उल्लेख किया। प्रो. मुकेश कुमार ने आधार वक्ता के रूप में सुभाषचंद्र जी द्वारा किए गए राष्ट्र निर्माण के संघर्ष एवं समानांतर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से संबंधित नेताओं के विचारों की भिन्नता पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने स्मरण करते हुए कहा कि श्री बोस ने भारत की स्वतंत्रता के लिए विदेशों में संघर्ष किया।कार्यक्रम में ’’रिविजिटिंग हिस्ट्री’’ पुस्तक का विमोचन किया गया। यह पुस्ततक भारत के विभिन्न विद्वानों एवं शोधार्थियों के शोधपत्रों पर आधारित ऐतिहासिक ग्रंथ है। इससे पूर्व अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर मां सरस्वती एवं नेताजी के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित किया गया, सरस्वती वंदना के साथ कुलगीत की मनमोहक प्रस्तुति दी गई। तत्पश्चात मंचस्थ अतिथियों का स्वागत नन्हें पौधे प्रदान कर किया गया। स्वागत उद्बोधन विभागाध्यक्ष इतिहास अध्ययनशाला एवं प्राचाीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व के प्रो. प्रियवंदा श्रीवास्तव ने दिया। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन संगोष्ठी के संयोजन डॉ. डी.एन.खुटे ने किया। संगोष्ठी में 10 राज्यों से इतिहासकार तथा इतिहास के शोधार्थी और विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे।