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प्रोफैलेक्सिस इलाज से हीमोफीलिया बीमारी की जटिलताओं से बचाव संभव

विश्व हीमोफीलिया दिवस पर डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में स्वास्थ्य चिकित्सा संगोष्ठी का आयोजन

रायपुर-विश्व हीमोफीलिया दिवस पर आज रायपुर के पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के शिशु रोग विभाग एवं रक्त चिकित्सा (हीमेटोलॉजी) विभाग द्वारा राज्य स्तरीय स्वास्थ्य चिकित्सा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के रूप में संजीवनी कैंसर हॉस्पिटल के हीमेटोलॉजिस्ट डॉ. विकास गोयल आमंत्रित थे। डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल के अधीक्षक एवं रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रमुख डॉ. एस.बी.एस. नेताम ने मुख्य अतिथि के रूप में संगोष्ठी का शुभारंभ किया।राज्य स्तरीय स्वास्थ्य चिकित्सा संगोष्ठी के संयोजक एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय में शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. ओंकार खंडवाल ने संगोष्ठी में बच्चों में होने वाली हीमोफीलिया की अनुवांशिक बीमारी के प्रथम स्तर पर निदान व उचित प्रोटोकॉल द्वारा इसकी गंभीरता एवं जटिलता (कॉम्प्लिकेशन) को कम करने के सम्बन्ध में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रमुख रूप से लड़कों को होने वाली इस दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी में रक्त का थक्का जल्दी न बन पाने के कारण छोटे खरोचों में भी लम्बे समय तक रक्तस्राव होते रहता है। यह आगे चलकर क्लोटिंग फैक्टर के रक्त आधान के बाद भी हफ्ते व महीने के अंतराल में बार-बार जोड़ों व मांसपेशियों में आंतरिक रक्तस्त्राव, सूजन व दर्द की पुनरावृत समस्याएं होते रहती हैं जो आगे चलकर विकलांगता का रूप भी ले लेती है।संजीवनी कैंसर हॉस्पिटल के हीमेटोलॉजिस्ट डॉ. विकास गोयल ने बताया कि हमें क्लोटिंग फैक्टर के ट्रांसफ्यूज़न तक ही सीमित नहीं रहना है, बल्कि साथ-साथ बीमारी के जल्दी पहचान व शुरुआती स्तर में ही प्रिवेंटिव केयर के अंतर्गत क्रमागत प्रोफैलेक्सिस ट्रीटमेंट के विभिन्न नवीन विकल्पों के द्वारा इस बीमारी की गंभीरता एवं जटिलता (कॉम्प्लीकेशंस) को रोकना है। हीमोफिलिया जैसी आनुवंशिक बीमारी में प्रिवेंटिव प्रोफाइलैक्टिक फैक्टर 8/9 का ट्रांसफ्यूजन ही स्टैण्डर्ड ऑफ केयर है जिससे हम मरीज को होने वाली अपंगता से बचा सकते हैं। संगोष्ठी के सफल आयोजन में पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के शिशु रोग विभाग के विशेषज्ञों डॉ. वीरेंद्र कुर्रे, डॉ. प्रांकुर पांडे, डॉ. शिल्पा भार्गव और डॉ. धीरज सोलंकी का विशेष योगदान रहा।

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