दंतेवाड़ा नक्सली हमले में 10 जवान समेत एक वाहन चालक की मौत पढ़िए पूरी report ground zero से,सोमेश पटेल की रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का दंश कम होने का नाम नहीं ले रहा है। बुधवार दोपहर को नक्सली हमले में 10 जवान शहीद हो गए। वहीं एक नागरिक भी मारा गया है। सभी जवान डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के हैं। नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर जवान सर्चिंग के लिए निकले थे।
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में बुधवार दोपहर को नक्सली हमले में 10 जवान शहीद हो गए। वहीं एक नागरिक भी हमले में दिवंगत हो गया। सभी जवान डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के हैं। नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर जवान सर्चिंग के लिए निकले थे। इसी दौरान नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट कर दिया। इसकी चपेट में जवानों का वाहन भी गया। इसमें 10 जवान शहीद हो गए।
नक्सल ऑपरेशन के बाद लौट रहे थे जवान
जानकारी के मुताबिक, माओवादी कैडर की मौजूदगी की सूचना पर दंतेवाड़ा से डीआरजी जवानों को रवाना किया गया था। इसके बाद सभी जवान वहां से लौट रहे थे। इसी दौरान घात लगाए नक्सलियों ने अरनपुर मार्ग पर पालनार में ब्लास्ट कर दिया। बताया जा रहा है कि जवान एक प्राइवेट वाहन से निकले थे। हमले में एक नागरिक की भी मौत हुई हैै। हमले के बाद जवानों की ओर से भी जवाबी कार्रवाई की गई। इसमें कुछ नक्सली भी घायल हुए हैं। मौके पर फोर्स पहुंच गई है। वारदात की पुष्टि आईजी सुंदरराज पी. ने की है।
बताया जाता है कि सभी जवान सर्चिग पर निकले थे
दो साल बाद छत्तीसगढ़ में बड़ा नक्सली हमला किया गया है। बताया जाता है कि नक्सलियों ने 50 से 60 किलो आईईडी लगाया था। मौके पर 5 से 7 फीट के गहरे गड्ढे हो गए हैं। इस घटना को लेकर बड़ी पर प्रशासनिक चूक बताई जा रही है। जवनाों को नक्सली एरिया में वाहन से सवार होकर जाने पर मना है। इसके बाद भी जवान दो प्राइवेट गाड़ी में सवार होकर जा रहे थे। इस दौरान सटीक मुखबिरी की सूचना पर नक्सलियों ने घात लगाकर इस घटना को अंजाम दिया।
“नक्सलियों ने गाड़ी नंबर दो को बनाया निशाना”
बताया जाता है कि गांव को लोगों ने त्योहारी सीजन में चंदा लेने के लिए डीआरजी के वाहनों को रोका। इसके बाद जवानों की पहली गाड़ी नहीं रुकी। इसके बाद गाड़ी नंबर दो के जवान समझे कि ग्रामीण चंदा मांग रहे हैं, इसलिए गाड़ी नंबर दो रुक गई। फिर इसके कुछ देर बाद रवाना हुई। वहां से 100 मीटर दूर जाने पर IED विस्फोट हुआ। जिसमें 10 जवान मौके पर ही शहीद हो गए। वहीं एक वाहन चालक भी दिवंगत हो गया।
बस्तर में नक्सलियों की चल रही TCOC
बस्तर में नक्सलियों ने इस समय TCOC (टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन) चला रखी है। इस दौरान नक्सली अक्सर बड़े हमले करते हैं। इसके चलते फोर्स पहले से ही अलर्ट माेड पर है। इसी के तहत जवानों की भी सर्चिंग लगातार जारी है। पिछले सप्ताह बीजापुर कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी के काफिले पर नक्सलियों ने हमला किया था। वह साप्ताहिक बाजार में नुक्कड़ सभा कर लौट रहे थे। इसके तीन दिन बाद नक्सलियों ने प्रेस नोट जारी कर TCOC चलाए जाने की बात कही थी। हालांकि विधायक को निशाना बनाने की बात से इनकार किया था।
ये जवान हुए शहीद
हेड कॉन्सटेबल जोगा सोढी, मुन्ना राम कड़ती, संतोष तामो, नव आरक्षक दुल्गो मण्डावी, लखमू मरकाम, जोगा कवासी, हरिराम मण्डावी, गोपनीय सैनिक राजू राम करटम, जयराम पोड़ियाम और जगदीश कवासी शहीद हुए हैं। इनके साथ ही प्राइवेट वाहन के चालक धनीराम यादव की भी मौत हो गई है।
दो साल पहले हमले में 22 जवान हुए थे शहीद
इससे पहले साल 2021 में अप्रैल माह में ही नक्सलियों ने सबसे बड़ हमला बीजापुर के तर्रेम क्षेत्र के टेकलगुड़ा में किया था। उस समय नक्सलियों ने BGL (बैरल ग्रेनेड लॉन्चर) से हमला किया था। इसमें 22 जवान शहीद हुए थे और 35 से ज्यादा घायल हुए थे। नक्सली हमले के साथ ही जवानों से हथियार भी लूटकर ले गए थे। इसी दौरान नक्सलियों ने सीआरपीएफ कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मन्हास का अपहरण किया था। हालांकि बाद में उसे रिहा कर दिया था।
नक्सली गर्मियों के महीनों में बेहद आक्रामक होते हैं। जानकार बताते हैं कि अप्रैल, मई के महीने में जंगल सूख जाते हैं। हरियाली जिसकी आड़ में छुपकर नक्सली जीवन बिताते हैं वो नहीं बचती। इस वजह से वो अटैकिंग मोड में रहते हैं। साल 2021 से 2023 की ताजा घटनाओं को समझें तो सिर्फ इसी दरम्यान 30 से ज्यादा जवानों की जान नक्सलियों ने ली है।
बीजापुर की घटना हालिया सालों का सबसे बड़ा हमला था। उस सर्चिंग में जवान 1500 से अधिक की तादाद में थे। इस हमले में फोर्स को घेरने में नक्सलियों का साथ गांव के लोगों ने भी दिया। CRPF के DG कुलदीप सिंह ने बताया था कि जहां जवानों पर हमला हुआ वहां के जन मीलिशिया (गांव के ऐसे लोग जो नक्सलियों के लिए काम करते हैं) मिलकर जवानों को घेरने लगे। दूर कहीं उन्होंने LMG (लाइट मशीन गन) लगा कर रखी थी, उसी से हैवी फायरिंग की गई।
नवंबर 2020 में इसी तरह के हमले में CRPF के असिस्टेंट कमांडेंट शहीद हो गए थे। 22 मार्च 2020 में नक्सलियों की फायरिंग में 3 जवान शहीद हो गए थे इसमें 6 नक्सलियों के मारे जाने की खबर थी।मार्च 2018 में छत्तीसगढ़ के सुकमा स्थित किस्टाराम एरिया में नक्सलियों ने आइईडी विस्फोट की घटना को अंजाम दिया। इस विस्फोट में सीआरपीएफ के 212 बटालियन के 9 जवान शहीद हो गए थे।
इसी साल 25 फरवरी को सुकमा जिले के जगरगुंडा क्षेत्र में सड़क निर्माण कार्याें की सुरक्षा देने के लिए जगरगुंडा कैंप से पुलिस जवानों की टुकड़ी मोटरसाइकिल पर रवाना हुई थी जहां पर पहले से घात लगाए नक्सलियों ने पुलिस टुकड़ी पर फायरिंग कर दी जिसमें 3 पुलिस जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद डीजीपी अशाेक जुनेजा ने घटना स्थल का भी जायजा लिया और स्थानीय ग्रामीणों से बातचीत की।
76 जवान मारे गए थे
नक्सल इतिहास की सबसे बड़ी घटना 6 अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला गांव में हुई थी। इसमें सीआरपीएफ के 76 और जिला बल के एक जवान शहीद हो गए थे। नक्सलियों के बड़े दल ने जवानों पर हमला किया था ये महीना भी अप्रैल का ही था।
सुकमा जिले के मिनपा में 21 मार्च 2020 को नक्सलियों की बस्तर दंडकारण्य (बस्तर) कमेटी ने जवानों पर हमला किया था। 17 जवान शहीद हुए थे। तीन नक्सलियों को भी जवानों ने मार गिराया था। फिर मई के महीने में इस कांड से जुड़ा वीडियो नक्सलियों ने जारी किया और दावा किया गया है कि 17 नहीं 19 जवानों को मारा और एके 47, इंसास जैसी 15 बदूंकें और जवानों की वॉकी-टॉकी, गोलियां लूटी। लूट के हथियार की नक्सलियों ने प्रदर्शनी लगाई थी।
25 मई 2013 को झीरम घाटी में नक्सलियों ने एंबुश लगाया था, जिसमें राज्य के दिग्गज कांग्रेसी नेता शहीद हो गए थे। इसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के अलावा कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल, बस्तर टाइगर कहलाने वाले महेंद्र कर्मा और उदय मुदलियार समेत 29 लोग शामिल थे। इस वारदात के ठीक साढ़े पांच साल के बाद कांग्रेस सत्ता में वापस आई। इसके बाद से ही कयास लग रहे थे कि हमले का सच सामने आएगा जो नहीं आया।
सवाल- TCOC क्या होता है?
जवाब– गर्मी के समय में टेक्निकल काउंटर ऑफेंसिप कैंपेन होता है। साफ तौर पर समझा जाए तो यह पतझड़ का मौसम होता है। तब दूर तक देखने की क्षमता बढ़ जाती है। नक्सली गर्मी से पहले अपने नए लड़ाकू को ट्रेनिंग देने का काम करते हैं। TCOC में उन्हें ग्राउंड में उतारने का काम किया जाता है और ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर वो नए लड़ाकूओं को बताते हैं कि कैसे इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। साथ ही अपने प्रशिक्षित नए लड़ाकू को भी मुठभेड़ में निकाला जाता है। अब TCOC पर यह लोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि अब जवान नए स्ट्रेटजी पर काम कर रहे हैं। अब कैंप का नया फेज तैयार हो रहा है। ऐसे में अब नक्सली आईडी लगाने जैसी घटनाओं पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। आईडी ब्लास्ट करने में नक्सलियों को कोई ज्यादा मैन पावर की जरूरत नहीं पड़ती। बड़ी घटनाएं भी वह एक आदमी से कर लेते हैं। इसीलिए अब नक्सलियों ने अपनी स्ट्रेटजी बदल ली है।
विशेषज्ञों की मानें तो इस हमले में कहीं ना कहीं बड़ी लापरवाही हुई है। जब जवान निकलते हैं तो आप नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। अंदरूनी इलाके में जवानों ने कैसे चार पहिया वाहन का इस्तेमाल किया ये बड़ा सवाल है। माओवादी इसी बात का फायदा उठाते हैं। डीआरजी की इतनी बड़ी संख्या को बिना किसी रोड ओपनिंग पार्टी ROP तैनात किए आप लेकर आ रहे हैं।
2008 में हुई डीआरजी के गठन की शुरुआत
करीब 40 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले बस्तर क्षेत्र के 7 जिलों में नक्सलियों से मुकाबले के लिए डीआरजी के गठन की शुरुआत 2008 में हुई थी। सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर जिलों में नक्सल विरोधी अभियान में इसे शामिल किया गया था। वर्ष 2013 में बीजापुर और बस्तर में इसका गठन किया गया। 2014 में सुकमा और कोंडागांव के बाद 2015 में दंतेवाड़ा में यह अस्तित्व में आया। डीआरजी जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं। इसलिए डीआरजी के जवान नक्सलियों के निशाने पर रहते हैं। पूर्व में हुए हमले में सबसे ज्यादा डीआरजी के जवान ही नक्सलियों के निशाने पर आए हैं।
डीआरजी में स्थानीय युवकों को शामिल किया जाता है, जिन्हें इलाके की पूरी जानकारी होती है। कई बार आत्मसमर्पण कर चुके नक्सली भी इसका हिस्सा बनते हैं। स्थानीय होने के कारण वे यहां की संस्कृति और भाषा से परिचित होते हैं। आदिवासियों से जुड़ाव होने के चलते वे नक्सलियों से मुकाबले के लिए उनका सहयोग आसानी से हासिल कर लेते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि नक्सलियों के खून-खराबे से पीड़ित जवानों को उनसे लड़ने के लिए किसी अतिरिक्त प्रेरणा की जरूरत नहीं होती। जवानों में नक्सलियों के प्रति पहले से आक्रोश भरा होता है। डीआरजी जवान जी जान के साथ नक्सलियों के खिलाफ लड़ते हैं।
अपने गठन के बाद से डीआरजी नक्सलियों के खिलाफ कई अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वे नक्सलियों की गुरिल्ला लड़ाई का उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं। उन्हें जंगल के रास्तों का पता होता है। उन्हें नक्सलियों की आवाजाही, आदतें और काम करने के तरीकों की भी जानकारी होती है। इलाके में नक्सलियों की मदद करने वालों के बारे में भी उन्हें पता होता है। इसकी मदद से वे नक्सलियों के खिलाफ अभियान की योजना बनाते हैं जो अक्सर सफल होते हैं। डीआरजी जवानों को नक्सलियों के एक्टिव होने की सबसे पहले खबर हो जाती है। डीआरजी जवान स्थानीय होते हैं, जिसकी वजह से इन्हें स्थानीय बोली और भाषा पता होती है। जवान आराम से स्थानीय लोगों से संवाद स्थापित करते हैं और नक्सलियों के बारे में खबर निकाल लेते हैं।