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कही-सुनी (5 MAY -24 ):सात सीटों में ताकत झोंकी भाजपा ने

रवि भोई की कलम से

कहते हैं भाजपा ने तीसरे चरण के सातों सीटों में जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। सबसे ज्यादा नजर कोरबा सीट पर है। कोरबा सीट अभी कांग्रेस के पास है। यहां से भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे चुनाव लड़ रही हैं, उनका मुकाबला कांग्रेस की ज्योत्सना महंत से है। सरोज पांडे दुर्ग छोड़कर चुनाव लड़ने कोरबा गईं हैं। चर्चा है कि कई मंत्री और प्रदेश भर से नेता -कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के लिए कोरबा पहुंचे हैं। माना जा रहा है कि रायपुर लोकसभा में भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल की आसान जीत होगी। कांग्रेस के प्रत्याशी विकास उपाध्याय उनके सामने काफी बौने लग रहे हैं। सवाल जीत के अंतर का है। भाजपा रायपुर की सीट लगातार जीत भी रही है। रायगढ़, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और सरगुजा सीट भी लगातार भाजपा के कब्जे में रहा है। 2014 में दुर्ग से कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू विजयी रहे, हालांकि 2019 में फिर दुर्ग सीट भाजपा के पास आ गई। भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। बाज की तरह सभी 11 सीटों पर नजर भी है, पर राज्य बनने के बाद से भाजपा कभी 11 सीटें नहीं जीती है। राज्य में कांग्रेस की सरकार रहते 2019 में उसने 11 में 9 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। इस बार राज्य में भाजपा की सरकार है और कांग्रेस में अंतरकलह चरम पर दिखाई दे रहा है। कई नेता-कार्यकर्ता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इस कारण भाजपा की बांछे खिली हुई है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय स्टार प्रचारक के तौर पर सभी लोकसभा सीटों में पहुँच रहे हैं और छोटे कस्बे -शहरों में भी सभा ले रहे हैं। इनके अलावा पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं का दौरा भी लगातार चल रहा है। अब देखते हैं भाजपा की रणनीति और मेहनत कितनी सफल होती है, यह तो चार जून को ही पता चल पाएगा।

छत्तीसगढ़ से केंद्र में कौन बनेगा मंत्री ?

लोकसभा चुनाव निपटने से पहले ही छत्तीसगढ़ से संभावित मंत्रियों के नाम पर कयास लगाए जाने लगा है। कहा जाने लगा है कि जीते तो विजय बघेल, सरोज पांडे और बृजमोहन अगवाल में से कोई एक मंत्री बन सकता है। 2014 से 2019 तक मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ से विष्णुदेव साय राज्यमंत्री थे। 2019 में मोदी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के तौर पर रेणुका सिंह को शामिल किया गया। 2023 में उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाया गया। वे अभी विधायक हैं। मोदी के दो कार्यकाल में छत्तीसगढ़ से मंत्रिमंडल में आदिवासी को प्रतिनिधित्व दिया गया। माना जा रहा है कि इस बार आदिवासी के साथ सामान्य वर्ग या ओबीसी को मौका मिल सकता है। ऐसे में वरिष्ठ और दिग्गज नेता के नाते बृजमोहन अगवाल,विजय बघेल और सरोज पांडे का नाम चर्चा में है।

कांग्रेस के प्रवक्ता ही सुर्ख़ियों में

चुनावी मौसम में मुद्दों को सुर्ख़ियों में लाते-लाते कांग्रेस के मीडिया विभाग के लोग ही सुर्ख़ियों में आ गए हैं। वैसे तो विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद से ही कांग्रेस के भीतर का अंतरकलह सड़कों पर आ गया है। कोई मंच से तो कोई चिठ्ठी बम से अपना गुबार निकाल रहा है। अब कांग्रेस के अंतरकलह की आग ने मीडिया विभाग को भी चपेट में ले लिया है। कांग्रेस मीडिया विभाग के झगड़े पर भाजपा ने घी डाल दिया, उससे आग और भभक गई है। भाजपा के मंत्री और नेताओं के तरह-तरह के बयान आ रहे हैं। कांग्रेस के अंतरकलह में भाजपा की एंट्री से मामला आसमान तक पहुंच गया है। राजीव भवन के एक कमरे से उठा गुबार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तक को हिला दिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पवन खेड़ा तक के बयान आ गए हैं। अब देखते हैं कई तरह के मुसीबतों से घिरी कांग्रेस इस मुसीबत से बाहर कैसे निकलती है और मामले का पटाक्षेप किस तरह होता है।

पीले चावल का कितना होगा असर

पहले और दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत कम रहा। 7 मई को तीसरे चरण का मतदान होना है। चुनाव आयोग मतदान का प्रतिशत बढ़ाने में जुटा है। छत्तीसगढ़ में पीला चावल भेंट कर मतदान का न्यौता दिया जा रहा है। अब इस न्यौते का असर कितना होता है, यह 7 मई को ही पता चलेगा। आमतौर पर शादी-विवाह में आने के लिए पीले चावल का न्यौता दिया जाता है। मतदान की अपील करते महिला और पुरुषों की टोलियां घूम रही हैं। रायपुर में कलेक्टर गौरव सिंह भी मतदान के लिए न्यौता बांटने में लगे हैं। कहते हैं न्यौता बांटते-बांटते कलेक्टर साहब एक बस्ती के शादी समारोह में ही पहुंच गए। कलेक्टर साहब के कदम पड़ने से शादी घर वाले गदगद बताए जाते हैं। माना जा रहा है कि जिले के मुखिया ही मतदान के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए जमीन पर नजर आने लगे हैं तो रायपुर में निश्चित वोटिंग का प्रतिशत बढ़ेगा ही। अब सवाल है कि चिलचिलाती धूप में लोग अपने अधिकार को लेकर कितने जागरूक होते हैं।

कौन सा विभाग मिलेगा ऋचा शर्मा को

1994 बैच की आईएएस अधिकारी ऋचा शर्मा ने एक मई को छत्तीसगढ़ में ज्वाइनिंग दे दी है। अब विभाग को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। ऋचा शर्मा छत्तीसगढ़ आने से पहले भारत सरकार में खाद्य मंत्रालय में पदस्थ थीं और केंद्र सरकार में जाने से पहले छत्तीसगढ़ में प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति थीं। ऋचा शर्मा भारत सरकार में एडिशनल सेक्रेटरी वन भी रह चुकी हैं। माना जा रहा है कि अनुभव को देखते हुए ऋचा शर्मा को वन के साथ खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग दिया जा सकता है। कुछ लोग स्वास्थ्य विभाग देने की भी चर्चा कर रहे हैं। ऋचा शर्मा की ज्वाइनिंग के बाद अब राज्य में चार अपर मुख्य सचिव हो गए हैं। अपर मुख्य सचिव मनोज पिंगुआ के पास ही अभी मंत्रालय में ज्यादा विभाग हैं। अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू के पास धार्मिक व धर्मस्व विभाग ही है। वे प्रशासन अकादमी के महानिदेशक हैं। अपर मुख्य सचिव रेणु पिल्लै के पास भी मंत्रालय में विज्ञान एवं प्रोघौगिकी विभाग है। रेणु पिल्लै व्यापम और माध्यमिक शिक्षा मंडल की अध्यक्ष हैं।

नहीं चली मंत्री की पसंद

चर्चा है कि एक मंत्री जी अपनी पसंद के आईएएस अफसर को अपने विभाग का सचिव बनवाना चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने उनकी पसंद को तरजीह नहीं दी। बताते हैं कुछ महीने पहले एक मंत्री जी अपने विभाग के सचिव की कार्यशैली से नाखुश होकर मुख्यमंत्री से उन्हें बदलने का आग्रह किया और अपने पसंद के अफसर को पदस्थ करने की सिफारिश भी की। कहते हैं कि मुख्यमंत्री ने मंत्री के आग्रह पर उनके सचिव को से हटा दिया, लेकिन उनके पसंद के अफसर की पोस्टिंग नहीं की। एक अफसर को अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया।

मनोज सोनी भी जेल गए

काफी दिनों की लुका-छिपी के खेल के बाद अंततः टेलीकॉम सर्विस के अधिकारी मनोज सोनी भी जेल चले गए। उन्हें ईडी ने कस्टम मिलिंग घोटाले में गिरफ्तार कर जेल भेजा है। मनोज सोनी भारत सरकार से छत्तीसगढ़ में करीब 7-8 साल पहले प्रतिनियुक्ति पर आए थे। मजेदार बात तो यह है कि इन सात-आठ सालों में खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग में ही पदस्थ रहे। भूपेश बघेल के राज में वे अक्टूबर 22 से अक्टूबर 23 तक मार्कफेड के प्रबंध संचालक रहे। ईडी के मुताबिक़ मनोज सोनी ने यहीं खेला किया। मनोज सोनी के साथ ही प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ आए टेलीकॉम सर्विस के अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी भी शराब घोटाले में जेल में हैं। कहते हैं कि एक तरफ़ा रिलीव के बाद भी मनोज सोनी अपने मूल विभाग में नहीं लौटे थे। वे किसी न किसी तरह से छत्तीसगढ़ में प्रतिनियुक्ति पर बने रहे। भूपेश सरकार में मनोज सोनी को मार्कफेड का प्रबंध संचालक बनाए जाने पर लोगों को आश्चर्य हुआ था।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )

 

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