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कही-सुनी (30 JULY-23): टिकट बांटने में कितनी चलेगी टीएस सिंहदेव की

रवि भोई की कलम से

कहते हैं उपमुख्यमंत्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं ऊर्जा मंत्री टीएस सिंहदेव की पूछपरख तो बढ़ी है। जिला प्रशासन से लेकर शीर्ष प्रशासन भी सिंहदेव को भाव देने लगा है। कोरोना जैसी महामारी की समीक्षा से दूर रखे गए सिंहदेव को पिछले दिनों आँखों की बीमारी कंजक्टिवाइटिस की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री निवास बुलाया गया। अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट बांटने में सिंहदेव साहब की कितनी चलेगी? कहते हैं कांग्रेस के टिकट वितरण में राज्य के तीन पदाधिकारी अहम भूमिका निभाते हैं। ये हैं विधायक दल के नेता, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव। पिछली दफे टीएस सिंहदेव नेता प्रतिपक्ष थे और टिकट बांटने में उनकी चली। माना जा रहा है कि इस बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का पलड़ा भारी रहेगा। मोहन मरकाम के पीसीसी अध्यक्ष पद से हटने और दीपक बैज के संगठन प्रमुख बनने से भूपेश बघेल का वजन बढ़ गया है। कहा जा रहा है कि टिकट बांटने में टीएस सिंहदेव की चली तो बृहस्पत सिंह और चिंतामणि महाराज को ज्यादा खतरा है। चर्चा है कि सिंहदेव के चलते मंत्री अमरजीत भगत प्रदेश चुनाव समिति में नहीं आ पाए। खबर है कि एक आदिवासी नेता के विरोध के कारण मंत्री कवासी लखमा की भी इस समिति में इंट्री नहीं हो पाई। मंत्री उमेश पटेल का कोई नामलेवा नहीं रहा।

कांग्रेस विधायकों को लेकर सर्वे रिपोर्ट से खलबली

चर्चा है कि एक सर्वे रिपोर्ट में कांग्रेस के 37 विधायकों की हालत ख़राब है। कहा जा रहा है कि सर्वे रिपोर्ट में पहली बार के विधायकों की जीत की संभावना कम बताई गई है। हार के मुहाने पर खड़े कांग्रेस के कुछ विधायक 2023 में उन्हें वोट देने के लिए वाल राइटिंग करवा रखा है। इस सर्वे रिपोर्ट में कितनी सच्चाई है, यह अलग बात है, लेकिन कांग्रेस के दो दर्जन से अधिक सीटिंग विधायकों की टिकट कटने की चर्चा चल पड़ी है और खलबली भी मची हुई है, पर कांग्रेस में सीटिंग विधायकों का टिकट काटना टेढ़ी खीर है। आमतौर पर कांग्रेस में सीटिंग विधायक की टिकट काटने की परंपरा नहीं है। अब देखते हैं सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस परंपरा बदलती है या फिर पुराने ढर्रे पर चलती है।

बच गई सन्नी अग्रवाल की कुर्सी

छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार मंडल के अध्यक्ष सन्नी अग्रवाल अपनी कुर्सी बचाने में सफल रहे। श्रम विभाग ने सन्नी अग्रवाल की जगह श्रम मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया को अध्यक्ष बनाने का आदेश जारी कर दिया था। कहते हैं दिल्ली के एक बड़े नेता के एप्रोच और दबाव के कारण कुछ ही घंटों में कर्मकार मंडल के अध्यक्ष पद पर सन्नी अग्रवाल की वापसी हो गई। कहा जाता है दिल्ली के नेता कुछ महीने पहले तक छत्तीसगढ़ के मामले में बड़े निर्णायक हुआ करते थे। तब सन्नी अग्रवाल को उनका काफी करीबी माना जाता था। माना जाता है दिल्ली के नेता की कृपा से ही सन्नी अग्रवाल को पद मिला था। सन्नी को पद देने का तब कुछ कांग्रेसियों ने विरोध भी किया था, पर नेताजी के प्रभाव के चलते विरोध को हवा नहीं मिल पाई। तीन साल का कार्यकाल पूरा होते ही सन्नी को विदा करने का प्रयास किया गया। मजबूत खंभे के कारण सन्नी बच गए, लेकिन चर्चा है कि उनको पुनर्नियुक्ति देने का आदेश अभी जारी नहीं हुआ है।

कप्तान साहब का लुकाछिपी खेल

कहते हैं ईडी के भय से छत्तीसगढ़ के एक जिले के पुलिस अधीक्षक साहब आजकल लुकाछिपी खेल रहे हैं। चर्चा है कि पिछले हफ्ते उनके जिले में एक अफसर के ठिकाने में छापा मारा गया तब भी एसपी साहब दिनभर के लिए गायब हो गए थे और जब ईडी ने काले कारनामे करने वाले एक गुर्गे को दबोचा तब एसपी साहब दो दिन नहीं दिखे। रह-रहकर एसपी साहब के ओझल हो जाने की खबर जिले में सुर्ख़ियों में है। जनप्रतिनिधि से लेकर ड्राइवर पर हाथ चलाने वाले इस साहब का ईमानदारी राग भी चर्चा में है। खबर है कि ईडी के भय से इस जिले के कलेक्टर साहब भी कुछ घंटों के लिए एकांतवास में चले गए थे।

बस्तर से नहीं हिले सुंदरराज पी

तीन साल से ज्यादा समय से बस्तर के आईजी के पद पर तैनात 2003 के आईपीएस सुंदरराज पी फेरबदल में यथावत बने रहे। बताया जाता है सुंदरराज पी नवंबर 2019 से बस्तर के आईजी हैं। वे बस्तर इलाके में कई पदों पर रह चुके हैं और नक्सल मामलों के जानकार भी बताए जाते हैं। कहते हैं दो आईपीएस अफसर बस्तर आईजी बनना चाहते थे , लेकिन सरकार ने पी सुंदरराज पर ही भरोसा बनाए रखा। माना जा रहा है कि सुंदरराज के कार्यकाल में नक्सली घटनाओं में कमी आई है और नक्सलियों की गतिविधियों पर भी लगाम लगा है। कहा जा रहा है अब विधानसभा चुनाव तक सुंदरराज पी बस्तर में रहेंगे।

अब डीएमएफ में घुसेगी ईडी

कहते हैं अब ईडी जिला खनिज निधि के बंदरबांट की जांच करेगी। चर्चा है कि ईडी ने मामला रजिस्टर्ड कर लिया है। खबर है कि डीएमएफ की जांच की जद में कोरबा, रायगढ़ और जांजगीर-चांपा में पदस्थ कलेक्टर आ सकते हैं। कोल और शराब के बाद डीएमएफ की जांच भी चौकाने वाली हो सकती है। डीएमएफ की जांच के दायरे में ट्राइबल, शिक्षा और कृषि विभाग के निचले स्तर के अधिकारी आ सकते हैं।

कोरबा में छापे से रायपुर के एक अफसर की नींद उड़ी

कहते हैं कोरबा में नगर निगम कमिश्नर के यहां ईडी ने छापा मारा, लेकिन नींद उड़ गई रायपुर में पदस्थ एक आईएएस की। चर्चा है कि रायपुर में पदस्थ अफसर कोरबा नगर निगम कमिश्नर के यहां छापे की टोह लेते रहे और कारण जानने की कोशिश करते रहे। कहा जा रहा है कि रायपुर में पदस्थ अफसर और निगम कमिश्नर कुछ साल पहले एक साथ काम कर चुके हैं। वैसे कोरबा नगर निगम कमिश्नर प्रभाकर पांडे ईडी के छापे के दौरान बंगले में नहीं थे। अब आकर उन्होंने ईडी के अफसरों के सामने अपना बयान दर्ज करा दिया है।

भाजपा के कोषाध्यक्ष और मीडिया प्रभारी का कद घटा

कहते हैं विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने वित्त समिति का संयोजक पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को बनाकर पार्टी के प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन का कद कम कर दिया है। चुनाव के वक्त वित्त समिति का दायित्व बढ़ जाता। वित्त समिति में नंदन जैन को सदस्य बनाया गया है। इसी तरह चुनाव से पहले बनाई गई मीडिया समिति में मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी को संयोजक बनाने की जगह रसिक परमार को संयोजक बनाया गया है। अमित चिमनानी और केदार गुप्ता सह संयोजक बनाए गए हैं। इस फैसले को भी मीडिया प्रभारी का कद घटने के तौर पर देखा जा रहा है।

अमृत खलखो को संविदा नियुक्ति संभव

2002 बैच के प्रमोटी आईएएस अमृत खलखो 31 जुलाई को रिटायर होने वाले हैं, लेकिन रिटारमेंट के दो दिन पहले नई पोस्टिंग से साफ़ लग रहा है कि सरकार ने उन्हें संविदा नियुक्ति देने का मन बना लिया है। हो सकता है निरंजन दास की जगह अमृत खलखो को संविदा नियुक्ति मिल जाय। संविदा नियुक्ति के बाद निरंजन दास ईडी के फेर में फंस गए और सरकार ने उनसे सभी विभाग वापस लेकर दूसरे अफसरों को दे दिया है। कहते हैं अमृत खलखो को संविदा नियुक्ति दिलाने के लिए एक वर्ग पिछले कुछ दिनों से काफी सक्रिय था। माना जा रहा है कि अमृत खलखो के कार्यकाल में राजभवन और सरकार के बीच संबंध नहीं बिगड़े। चुनावी साल में सरकार एक वर्ग को खुश करने के साथ अमृत खलखो के योगदान के बदले उन्हें संविदा देकर पुरस्कृत करना चाहती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक हैं।)
(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )

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