Close

मूसावाला की हत्या से थर्राया पंजाब 

सिद्धू मूसावाला लोकनायक नहीं बल्कि लोक गायक था. उसे दिन-दहाड़े गोलियों से भून दिया गया. मूसावाला की मौत शायद आ गयी थी, उसे इसी तरह से मरना था शायद, क्योंकि सिद्धू मूसावाला भी कोई दूध का धुला लोक गायक नहीं था. इस हत्याकांड से कम से कम एक बात तो जाहिर हो गयी है की अतीत का ‘उड़ता पंजाब’ वर्तमान में भी उड़ ही रहा है. अभी पंजाब को पंजाब बनाने में काफी वक्त लगेगा.

हत्या मध्यप्रदेश में हो, जम्मू-कश्मीर में हो या पंजाब में हो लोगों को परेशान तो करती है. ये परेशानी तब और ज्यादा होती है जब किसी प्रदेश में हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ हो. ऐसे हत्याकांड राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी उँगलियाँ उठाने की वजह बनते हैं. भ्र्ष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की कवायद करने वाले पंजाब में अपराधों को लेकर जीरो टालरेंस क्यों नहीं है ? ये सवाल पूछ जा सकता है. पूछा जा सकता है कि पंजाब को नशा माफिया और अंतर्राष्ट्रीय माफिया गिरोहों से मुक्ति कब मिलेगी.

लोकगायक सिद्धू मूसावाला की हत्या की गंभीरता इस बात से कम नहीं हो सकती कि मरने वाला आपराधिक प्रवृति का था. आखिर मरने वाले को राज्य शासन ने सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराइ थी. ये बात अलग है कि सरकार ने आपरेशन ब्लू स्टार की बरसी के बहाने मूसावाला की सुरक्षा में से  कुछ जवानों को वापस ले लिया था. मूसावाला के पास बुलेटप्रूफ कार भी थी, लेकिन जब बुलेट चलती ही तो उसे कोई प्रतिरोध रोक नहीं सकता. मूसावाला मारा गया, उसके मरने का दुःख सबको है लेकिन इससे जायदा डर है लोगों के मन में कि- क्या आने वाले दिनोंमें सरकार राज्य में दूसरे देशों के सक्रिय गिरोहों को नेस्तनाबूद कर पायेगी ?

पंजाब कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला राज्य है लेकिन इस राज्य की अर्थव्यवस्था में नशा बेचने वाले अंतर्राष्ट्रीय गिरोहों की सक्रियता  भी बढ़ गयी है. जाहिर है की क़ानून और व्यवस्था के मामले में करने को अभी बहुत कुछ बाकी है. पुलिस कहती है की सिद्धू मूसेवाला पंजाब के टॉप मोस्ट गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई और उसके गैंग के निशाने पर थे. वहीं, कनाडा बेस्ड गैंगस्टर गोल्डी बराड़ (लॉरेंस बिश्नोई का साथी) ने सिद्धू मूसेवाला की मौत की जिम्मेदारी ली है. बिश्नोई गैंग के विरोधी कैंप को सिद्धू मूसेवाला समर्थन  कर रहे थे.

पुलिस की नजर में मरने वाला लोक नायक या लोक गायक नहीं बल्कि एक गैंगस्टर था. यानि गैंगस्टर हो तो उसे मारे जाने से कानून और व्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन फर्क पड़ता है. फर्क इसलिए पड़ता है क्योंकि पंजाब पहले से लड़ता आ रहा है. यहाँ दुनिया में काम करने वाले हर तरह के गिरोह सक्रिय हैं. खालिस्तान के आतंकियों का भी अभी तक वजूद बना हुआ है.

कुल 28  साल के सिद्धू मूसे वाला का असली नाम शुभदीप सिंह सिद्धू था. उनका जन्म 11 जून 1993 को पंजाब के मनसा स्थित मूसा गांव में हुआ था. वह भोला सिंह और चरण कौर के बेटे  थे. सिद्धू ने लुधियाना के गुरु नानक देव इंजीनियरिंग कॉलेज से अपनी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई से की थी. 2019 में वह कनाडा के ब्रैम्पटन में बस गए थे. मूसवाला की तरह कनाडा में हजारों पंजाबी जा बसे हैं और यहीं से लोग अपना कारोबार चलते हैं. पंजाब को इससे फायदा है और फायदा इतना भर है कि राज्य की अर्थव्यवस्था में बाहर से पैसा आता रहेगा. राज्य की सरकार इस कमजोरी का लाभ मजबूत हो चुके गिरोह उठा रहे हैं.

पंजाब से पहले जम्मू-कश्मीर में टीवी कलाकार अमरजीत बट का कत्ल किया जा चूका है. हमने उस दिन भी अपनी आवाज बुलंद की थी. पंजाब और जम्मू-कश्मीर देश के सीमावर्ती राज्य हैं इसलिए इन राज्यों में विशेष सतर्कता की जरूरत है. केंद्र इन राज्यों में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मदद करती है, लेकिन ये मुद्दा ऐसा है की जिसमें बिना खुलकर सामने आये बात बनने वाली नहीं है. हम मूसावाला की हत्या के लिए राज्य के मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराने बाहर से बच नहीं सकते. पंजाब को आतंक और गोलियों से मुक्त दिलाने के लिए सबको मिलकर काम करना पड़ेगा.

मूसवाला की हत्या के मामले में सत्तारूढ़ भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों को जैसे सांप सूंघ गया हो, कोई कुछ बोलने को राजी नहीं है. कोई बोले भी क्यों क्योंकि इस मामले में बोलने का  कोई नफा-नुक्सान नहीं है. यदि राजनीतिक दल इस मुद्दे पर नहीं बोलेंगे तो ये मामला और गंभीर हो जाएगा. सिद्धू मूसे वाला पंजाबी लोक गायक थे वे खुद गानों को लिखा भी करते थे. मूसे वाला ने अपने करियर की शुरुआत सिंगर निंजा के लिए लाइसेंस गाने को लिखकर की थी. लेकिन ये समझ से बाहर है की मूसावाला गिरोहबंदी में कैसे पड़ गया ?

पंजाब पुलिस मूसावाला के कातिलों को पकड़ेगी या नहीं ये तो वो जाने लेकिन एक हिन्दुस्तानी के नाते हम सबकी ये जिम्मेदारी बन जाती है की हम अपने पंजाब को उड़ने से बचाएं. क्योंकि पंजाब बड़ी मुश्किल से कांग्रेस, भाजपा और अकालियों की राजनीति से आजाद हुआ है. किसान आंदोलन ने भी पंजाब का जबरदस्त नुक्सान किया है.

@ राकेश अचल

 

यह भी पढ़ें- जम्मू कश्मीर में छत्तीसगढ़ में पर्यटन की अपार संभावनाओं पर चर्चा

One Comment
scroll to top