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अग्निपथ से विपरीत दिशा में पूरा देश

देश में एक माह बाद नए राष्ट्रपति का चुनाव है दूसरी तरफ पूरा देश केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए ‘ अग्निपथ’ पर चलने के लिए तैयार नहीं है। शुरू में आठ-दस राज्यों में फैले विरोध के बावजूद आज पूरे देश ने समवेत सुर में अग्निपथ का विरोध शुरू किया है। हंसी तब आती है जब इस विवादास्पद योजना का बचाव करने के लिए देश का ही एक पूर्व सेनाध्यक्ष [जो अब खुद केंद्र में मंत्री है ]  युवाओं को धमकाता है कि जिसे सेना में नहीं आना है न आये ,कोई जबरदस्ती थोड़े  ही है।

दरअसल सेना से निकले लोगों को सियासत में शामिल कर ही सरकार ने सारा गुड़,गोबर कर दिया है। ‘अग्निपथ’ योजना की वकालत के लिए रक्षा मंत्री के अलावा तीनों सेनाध्यक्षों ने जिस तरह से देश से बातचीत की उससे जाहिर हो गया कि अब सेना भी सियासत का खिलौना बन चुकी है। भारतीय सेना का एक गौरवशाली इतिहास रहा है ,लेकिन ‘अग्निपथ’ जैसी योजनाओं के जरिये उसे कलंकित करने का प्रयास किया जा रहा है । इस योजना को लेकर जिस तरह का उग्र विरोध हुआ है उसे देखकर डर लगता है। भगवान करे कि लोग आज भारत बंद के दौरान हिंसक न हों, पुलिस और अन्य वर्दीधारी संगठनों को लाठी,गोली चलने का अवसर न मिले।

केंद्र में अब अनुभवी सरकार है, पहले नहीं थी। इसलिए पहले पांच साल की नादानियों की अनदेखी की भी जा सकती है लेकिन अब दूसरे दौर में सरकार जो कर रही है वो सब इरादतन है। देश के साथ सेना का हिन्दूकरण और हिन्दुओं का सैन्यीकरण करने की गुप्त योजना को डंके की चोट लागू करने की बात की जा रही है। सरकारी फैसलों कि खिलाफत करने वालों को उलटी खोपड़ी का बताने वाले सीधी खोपड़ी के अखिल भारतीय सेवाओं से निवृत्त लोग कहते हैं कि- क्या सेना के हर फैसले पर जनमत संग्रह कराया जाये ? हमने कहा -इसकी  जरूरत नहीं, लेकिन जनभावनाओं को समझना सरकार की जिम्मेदारी है क्योंकि सेना में सीधी खोपड़ी का कोई व्यक्ति अपने बच्चों को नहीं भेजता।

सरकार यदि ब्रिटेन की तरह तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी कर रही है तो उसे देश को बताना चाहिए। ब्रिटेन के नए सैन्य कमांडर जनरल पैट्रिक सैंडर्स  ने कहा है कि व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में खून की नदियां बहाई हैं। विश्व की सुरक्षा की नींव को पुतिन ने हिला कर रख दिया है। उन्होंने एक ऐसी सेना बनाने की कसम खाई जो रूस को युद्ध में हरा सकती है। हमारे यहां  ऐसा करने का साहस न सेनाध्यक्ष दिखा  रहे हैं और न प्रधानमंत्री। जनता से जब आपका संवाद ही नहीं है तो कौन आपकी योजनाओं को राष्ट्रहित में मानेगा। राजनीतिक दलों को ही नहीं बल्कि अब तो जनता को भी लगने लगा है कि सरकार सेना के एजेंडे को नहीं नागपुर के एजेंडे को लागू कर रही है, अन्यथा हठधर्मी का कोई दूसरा कारण हो नहीं सकता।
जब देश जल रहा हो, असंतोष का शिकार हो, सरकार और जनता के बीच का विश्वास दरक चुका हो तब हठधर्मी के बजाय हिकमत अमली और नरमी से काम लेना चाहिए। लेकिन सरकार अपनी तरह से सोचती है।  सरकार की हठधर्मी का नतीजा पिछले साल दुनिया ने देखा। किसान आंदोलन में 700  से ज्यादा बेकसूर किसान सत्याग्रह करते हुए शहीद हो गए। लेकिन सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा। सरकार की हठधर्मी और मंत्रियों के बेतुके बयानों की वजह से देश अग्निपथ के विरोध पर हजार करोड़ से ज्यादा की सम्पत्ति स्वाहा करा चुका है। दुःख की बात ये है कि जिस बिहार से ये आंदोलन आग पकड़ा है उसी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मुंह में खैनी रखे मौन बैठे हैं। प्रधानमंत्री तो अब तक बोले ही नहीं। वे शायद आग के और भड़कने का इन्तजार कर रहे हैं।
अग्निपथ का विरोध अब देश के युवाओं का ही नहीं बल्कि राजनीति का मुद्दा बन चुका है।  कांग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक दल भी इसमें शामिल हो गए हैं। इसलिए अब इस मुद्दे का राजनीतिक तरीके से ही हल निकाला जाना चाहिए। मुझे नहीं पता कि कभी इस योजना पर सरकार ने रक्षा मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति में कोई चर्चा की है। सरकार भारतीय सेना की जरूरतें पूरा करने के लिए शायद बेताब है लेकिन दो लाख रिक्त पद भरने  में उसे लाज आती है। सरकार ने इससे पहले रक्षा क्षेत्र के तमाम दरवाजे विदेशी पूँजी निवेश के लिए खोलकर एक जोखिम ले ही रखा है। लेकिन सरकार तो सरकार है, वो जो चाहे सो कर सकती है क्योंकि जनादेश उसके पास है। अब वो सड़कों पर उत्तरी जनता का आदेश क्यों मानने चली ?
सरकारों का काम है कि वे योजनाएं बनाएं, उन पर अमल भी करें और कराएं, किन्तु जब पहली ही नजर में कोई योजना जन समर्थन हासिल न कर पाए तो उस पर पुनर्विचार करें, उसे स्थगित करें। संशोधित करें, जनता से संवाद करें। किन्तु इस सरकार को इस तरह के व्यवहार की आदत नहीं है । इस तरह की आदत मनमानी की श्रेणी में आती है। कांग्रेस के जमाने  में ऐसी ही मनमानियां स्वर्गीय संजय गांधी ने की थी, उनका क्या हश्र हुआ, बताने की जरूरत नहीं है।

मुमकिन है कि आप मुझसे रत्ती भर इत्तफाक न रखते हों लेकिन मेरी धारणा है कि आजाद भारत में कांग्रेस से ज्यादा सेना के पराक्रम और शाहदत का इस्तेमाल भाजपा की सरकार ने किया। कांग्रेस को तो एक 1971 का भारत-पाक युद्ध इसके लिए अवसर के तौर पर मिला लेकिन मौजूदा सरकार ने तो पुलवामा से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक तक को भुना लिया। चुनावी सभाओं में शहीदों के फोटो तक लगा लिए, लेकिन सयनिकों की मांग पर वन रेंक, वन पेंशन’ योजना को आजतक स्वीकार नहीं किया।अग्निपथ योजना के बहाने आप चाहें तो एक बार फिर सरकार और सरकारी पार्टी के चरित्र का आकलन कर सकते हैं .आकलन करें। विरोध करें चाहें समर्थन करें। लेकिन हिंसा से दूर रहें। देश पहले से ही नफरत की आग में झुलसा हुआ है।

सरकार को चाहिए कि वो राष्ट्रपति चुनाव से पहले देश में शांति,सद्भाव का वातावरण  बना ले। विपक्ष को शत्रु मानकर उसकी प्रताड़ना बंद कर दे, अन्यथा पूरी दुनिया में भारत की जग हंसाई को कोई नहीं रोक पायेगा। सरकार गिरते बाजार को सम्हाले, लुढ़कते रूपये  को संबल दे। ‘आ बैल मुझे मार’ करना छोड़ दे। @ राकेश अचल
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