आप सोच रहे होंगे कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल में एक से बढ़कर एक दिग्गज नेताओं को मंत्री बनाया गया है किन्तु चर्चा मै केवल ज्योतिरादित्य सिंधिया की क्यों कर रहा हूँ? दरअसल इसके दो कारण हैं. पहला ये कि मै ज्योतिरादित्य सिंधिया को बाखूबी जानता हूँ और दुसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी मंत्रिमंडल के अकेले ऐसे कैबिनेट मंत्री हैं जो एक राजनीतिक अनुबंध के तहत मंत्रिमंडल में शामिल किये गए हैं. देश की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में सिंधिया परिवार का कोई सदस्य पहली बार मंत्री बना है. पचास साल के ज्योतिरादित्य सिंधिया में वे सभी अहर्ताएं हैं जो एक कामयाब कैबिनेट मंत्री में होना चाहिए, लेकिन उनकी सबसे बड़ी अहर्ता इस समय ये है कि वे दो साल पहले तक जिस नेता की खुले मन से आलोचना करते थे आज उसी के नेतृत्व में उन्हें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना पड़ रहा है.
अपनी सुविधा से दलबदल करना सिंधिया परिवार का वैसा ही विशेषाधिकार है जैसा प्रधानमंत्री का किसी को मंत्री बनाना या निकाल देना है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस मामले में अपने परिवार की परम्पराओं को आगे बढ़ाया है. अतीत में झांकिए तो आप पाएंगे कि कांग्रेस से अपनी राजनीतिक यात्रा करने वाली सिंधिया परिवार की पहली राजनेता श्रीमती विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ जनसंघ का दामन थामा था. भाजपा की वे संस्थापक सदस्य रहीं. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया भी जनसंघ से होते हुए कांग्रेस में आये थे, कुछ समय के लिए वे कांग्रेस से बाहर भी रहे किन्तु बहुत जल्द उनकी कांग्रेस में वापसी भी हो गयी.
माधवराव सिंधिया के आकस्मिक निधन के बाद 19 साल पहले राजनीति में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से अपने राजनितिक जीवन की शुरुवात की और 18 साल कांग्रेस में बिताने के बाद दो साल पहले वे भी भाजपा में शामिल हो गए. ग्वालियर के सिंधिया परिवार के सभी पुरुष सदस्य कांग्रेस में ही रहे, ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले हैं जो भाजपा के झंडे तले खड़े हुए हैं. एक लम्बी विरासत की वजह से किसी भी राजनीतिक दल ने सिंधिया परिवार के सदस्यों को कभी भी अछूत नहीं माना. एक-दुसरे को सामंती बताने वाले सभी सदस्य जब मौक़ा आता है तो एक रंग में रेंज पाए जाते हैं.
आजादी के बाद से अब तक अजेय मने जाने वाले सिंधिया परिवार में ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले पुरुष सदस्य हैं जिन्होंने पराजय का मुंह देखा और फिर उसी दल में शामिल हो गए जिसने उन्हें पराजय का स्वाद चखने पर विवश किया. सिंधिया परिवार की महिला सदस्यों के बारे में मै यहां कोई ख़ास जिक्र नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि वे आज के लेख का विषय नहीं हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया देश के रेल मंत्री,मानव संसाधन विकास मंत्री और नागरिक उड्डयन मंत्री रहे, उन्होंने राजीव गाँधी और पीवहि नरसिम्हाराव के साथ काम किया. उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस की सरकार में संचार राज्य मंत्री, वाणिज्य राज्य मंत्री और ऊर्जा राज्य मंत्री रहे, इस लिहाज से मोदी जी ने उन्हें सीधे कैबिनेट मंत्री बनाकर उचित ही किया है. ये एक तरह से वैसा ही है जैसे पनिहार के युद्ध में अंग्रेजों से भिड़ने के बाद पराजित सिंधिया शासकों को बाद में कुछ शर्तों के साथ फिर से सत्ता में रहने का अधिकार मिल गया हो.
भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा चुनाव में हराया, फिर सिंधिया की मेहनत के सामने खुद विधानसभा का चुनाव हारी और बाद में सिंधिया को अपने साथ मिलकर उन्हें केंद्र में मंत्री बना दिया. राजनीति के इस खेल में नुक्सान सिंधिया का भी हुआ और ग्वालियर-चंबल के साथ -साथ समूचे मध्यप्रदेश का. अब देखना ये है कि मोदी जी अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को काम करने की कितनी छोट देते हैं. पुराना अनुभव ये है कि एक गृह मंत्री अमित शाह को छोड़कर केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक भी मंत्री ऐसा नहीं था जो अपनी पृथक पहचान बना सका हो. मोदी जी ने जिन 12 मंत्रियों को अपनी टीम से बाहर किया है वे मंत्री भी पिछले दो साल से सिर्फ कागजी मंत्री थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया को शायद इसीलिए मोदी जी के साथ काम करने में कुछ असुविधा हो, मेरा अनुभव कहता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले दो साल में भाजपा में रहकर जिस तरिके से अपना कायांतरण किया है, अपमान के घूँट हँसते-हँसते पिए हैं उसे देखते हुए वे मोदी सरकार में भी आगे के तीन साल जैसे-तैसे काट ही लेंगे.
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में जितने नजदीक गांधी पाआआरिवार के थे उतनी नजदीकियां उनकी मोदी-शाह की जोड़ी या संघ परिवार से हो पाएगी कहना कठिन है, किन्तु इतना कहा जा सकता है कि मोदी सर्कस में सिंधिया रहेंगे शेर ही. उन्हें एक सीमा तक दहाड़ने की छूट भी मिलेगी. अगले साल होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बखिया उधेड़ने के लिए भी सिंधिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाएगा. बहरहाल सिंधिया के लिए ये स्वर्ण अवसर है कि वे ग्वालियर -चंबल अंचल में हुए अपने नुक्सा की बहरपायी आने वाले तीन सैलून में कर लें ताकि उन्हें 2024 के आम चुनाव में पिछले दरवाजे से संसद जाने की मजबूरी से न गुजरना पड़े.
आने वाले सालों में यदि वे ग्वालियर-चंबल अंचल में अपने विभाग की और से कुछ नया कर पाएं तो बेहतर होगा. उनके अपने गृहनगर ग्वालियर को एक स्वतंत्र नागरिक हवाई अड्डे की जरूरत है. इस जरूरत को न उनके पिताश्री पूरा कर पाए थे और न वे खुद ये काम कर पाए. उनके बाद ग्वालियर के विकास के मसीहा बने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह भी ग्वालियर को ये सौगात नहीं दिला पाए. अब मौक़ा है कि सिंधिया अपनी प्राथमिकताओं में ग्वालियर के लिए स्वतंत्र नागरिक हवाई अड्डे का निर्माण रखें. पिछले लोकसभा चुनाव में पराजय के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक क्षमताएं अपरम्पार है जिन्हें उन्होंने बार-बार प्रमाणित किया है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाकर और 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनवा कर वे प्रमाणित कर चुके हैं कि वे अभी भी ऊर्जावान हैं. नए कैबिनेट मंत्री के रूप में मै ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपनी शुभकामनाएं देते हुए अपेक्षा करूंगा कि वे नयी भूमिका में भी कामयाब होकर दिखाएंगे .क्योंकि सत्ता के सूत्र बड़ी मुश्किल और कुगत के बाद हाथ में आये हैं @राकेश अचल
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