अलीगढ़: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर स्थापित होने वाली यूनिवर्सिटी की नींव रख दी है. इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी मौजूद रहीं. राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी के शिलान्यास के बाद पीएम मोदी का संबोधन हुआ. राधाष्टमी की बधाई देते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘आज अलीगढ़ के लिए, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए बहुत बड़ा दिन है. आज राधाष्टमी है, जो आज के दिन को और भी पुनीत बनाता है. बृज भूमि के कण-कण में राधा ही राधा हैं.’
पीएम मोदी के भाषण की बड़ी बातें
- मैं आज स्वर्गीय कल्याण सिंह जी की अनुपस्थिति बहुत ज्यादा महसूस कर रहा हूं. आज कल्याण सिंह जी हमारे साथ होते तो राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय और डिफेंस सेक्टर में बन रही अलीगढ़ की नई पहचान को देखकर बहुत खुश हुए होते.
- आज देश के हर उस युवा हो जो बड़े सपने देख रहा है, जो बड़े लक्ष्य पाना चाहता है, उसे राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी के बार में अवश्य जानना चाहिए, अवश्य पढ़ना चाहिए.
- राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी के जीवन से हमें अदम्य इच्छाशक्ति अपने सपनों को पूरा करने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाली जीवटता आज भी हमें सीखने को मिलती है.
- हमारी आजादी के आंदोलन में ऐसे कितने ही महान व्यक्तित्वों ने अपना सब कुछ खपा दिया. लेकिन ये देश का दुर्भाग्य रहा कि आजादी के बाद ऐसे राष्ट्र नायक और राष्ट्र नायिकाओं की तपस्या से देश की अगली पीढ़ियों को परिचित ही नहीं कराया गया.
इससे पहले सीएम योगी ने कहा, ‘आज राधा अष्टमी भी है और ब्रज क्षेत्र के लिए आज के दिन का बड़ा महत्व है. ये हमारा सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री आज इस अलीगढ़ की पावन भूमि पर अपना मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्रदान करने के लिए और यहां की बहुप्रतीक्षित मांगों को पूरा करने के लिए स्वयं हमारे बीच उपस्थित हैं.’
साल 2014 में बीजेपी के कुछ स्थानीय नेताओं ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाम बदलकर राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर रखने की मांग की थी. उनकी दलील थी कि राजा ने एएमयू की स्थापना के लिए जमीन दान की थी. यह मामला तब उठा था जब एएमयू के अधीन सिटी स्कूल की 1.2 हेक्टेयर जमीन की पट्टा अवधि समाप्त हो रही थी और राजा महेंद्र प्रताप सिंह के कानूनी वारिस इस पट्टे की अवधि का नवीनीकरण नहीं करना चाहते थे.
कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह
राजा महेंद्र प्रताप सिंह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र थे और वह एक दिसंबर 1915 को काबुल में स्थापित भारत की पहली प्रोविजनल सरकार के राष्ट्रपति भी थे. मुरसान राज परिवार से संबंध रखने वाले राजा ने दिसंबर 1914 में सपरिवार अलीगढ़ छोड़ दिया था और करीब 33 सालों तक जर्मनी में निर्वासन में रहे. वह आजादी के बाद 1947 में भारत लौटे और 1957 में मथुरा लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जनसंघ के प्रत्याशी अटल बिहारी बाजपेयी को हराकर सांसद बने.
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