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कही-सुनी ( 27 दिसंबर ) : पद मिलते ही नेताजी की रंगत बदली

samvet srijan

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(रवि भोई की कलम से)


कांग्रेस के एक विधायक अपनी मिलनसार छवि और हवा-हवाई से दूर रहकर जनता के बीच एक अलग पहचान बनाई थी। लेकिन एक सार्वजनिक उपक्रम के अध्यक्ष का पद क्या मिला, उनकी पूरी रंगत ही बदल गई। जनता के हर सुख-दुख में खड़े दिखने और दो पहिया वाहन से ही विधानसभा पहुँच जाने वाले विधायक के अब शहर में चार आफिस हो गए हैं। कहते हैं विधायक जी ने अपनी पसंद से सार्वजनिक उपक्रम को चुना और सार्वजनिक उपक्रम के संचालक मंडल की पहली बैठक में ही एक सामाजिक संस्था को सस्ते दर पर जमीन आबंटित कर दी। चर्चा है कि सामाजिक संस्था में विधायक जी का एक रिश्तेदार पदाधिकारी है। सवाल यह उठ रहा है कि लोगों को छत मुहैया कराने वाला यह उपक्रम सरकार से ही सस्ते दर पर जमीन लेता है। आम लोगों के हित वाली जमीन को एक सामाजिक संस्था को कैसे दे दी गई। बताया जाता है उपक्रम के पूर्व कार्यपालक मुखिया ने प्रस्ताव पर आपत्ति भी की थी , पर उनके तबादले के साथ खेल हो गया। आमतौर पर किसी सामाजिक संस्था को सरकारी जमीन आबंटित करने के प्रस्ताव को राज्य मंत्रिमंडल ही मंजूरी देता है। लगता है विधायक जी के नेतृत्व वाला उपक्रम सरकार से ऊपर है।

कहीं आग, तो कहीं धुआं

भाजपा के आदिवासी नेताओं ने पिछले दिनों एक बैठक कर राज्य में आदिवासी नेतृत्व की मांग की। कहते हैं राज्य के पहले नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय के नेतृत्व में हुई इस बैठक से भाजपा की जगह कांग्रेस में ज्यादा कानाफूसी होने लगी है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के भीतर ही एक लाबी आदिवासी नेतृत्व को हवा देने में लग गया है। निगम-मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति पर चर्चा के वक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम का नाराज होकर निकल जाना और दिल्ली के एक बड़े नेता की राज्य के एक आदिवासी नेता से सीधी बात नई रणनीति की तरफ इशारा भी करता है। राज्य में चार आदिवासी मंत्री हैं। कहते हैं एक आदिवासी मंत्री इस बात से खफा हैं कि उनके अपने ही विभाग में कोई पूछपरख नहीं होती और उनके दरबार में सलाम ठोंकने वालों की भीड़ भी नहीं होती।

आईएएस टोपनो को झटका

छत्तीसगढ़ बनने के बाद इक्के-दुक्के मौके को छोड़कर प्रदेश के संस्कृति विभाग के मुखिया आईएफएस अफसर ही रहे हैं। 2014 बैच के आईएएस अमृत विकास टोपनो भी ज्यादा दिन नहीं चल पाए। 2006 बैच के आईएफएस विवेक आचार्य संस्कृति संचालक बनाये गए हैं। टोपनो संचालक संस्कृति के साथ नान के महाप्रबंधक थे। उन्हें नागरिक आपूर्ति निगम का महाप्रबंधक बनाए रखने के सरकार के फैसले को लोग मुख्यमंत्री की नाराजगी के तौर पर देख रहे हैं। चर्चा है कि संस्कृति कर्मियों ने आईएएस टोपनो के बारे में मुख्यमंत्री से लंबी -चौड़ी शिकायत की थी। कहते हैं संस्कृति मंत्री आईएएस टोपनो को संस्कृति संचालक बनाए रखना चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री तैयार नहीं हुए।

मंत्रीजी का चौतरफा विस्तार

कहते हैं विधायक रहते राज्य के एक मंत्री जी अपने इलाके में ह्यूम पाइप ( सीमेंट पाइप ) की एक फैक्ट्री शुरू की थी। यह चल निकला और आमदनी भी होने लगी। चर्चा है कि मंत्री जी ने अब रायपुर में एक स्टील प्लांट में भाग्य आजमाने का फैसला किया है। नए व्यवसाय में कितने सफल होते हैं , यह तो आगे ही पता चलेगा, पर अभी मंत्री पद है तो हाथ-पांव फैलाना लाजमी है। मंत्री जी का एक बेटा सिविल कांट्रेक्टर भी बन गया है और कांग्रेस के सहयोगी संगठन का पदाधिकारी भी है । मंत्री जी के बेटे की सत्ता में दखलंदाजी को लेकर भी राजनीतिक हलकों में चर्चा होती रहती है। कांग्रेस संगठन के एक पदाधिकारी होने के नाते सत्ता में उनकी दिलचस्पी स्वाभाविक है।

आईएफएस अरुण पांडे की पोस्टिंग चर्चा में

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण कुमार पांडे को कुछ ही दिनों के भीतर प्रशासन राजपत्रित व समन्वय की जगह विकास और योजना में पदस्थापना चर्चा का विषय है। वन मुख्यालय के विकास और योजना शाखा में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक तपेश झा लंबे समय से पदस्थ थे, उनको बदला जाना रुटीन प्रकिया माना जा रहा है, लेकिन अपर प्रधान मुख्य संरक्षक मोरिस नंदी को प्रशासन राजपत्रित व समन्वय का काम सौंपकर तपेश झा को नंदी की जगह पदस्थ किया गया। कहा जाता है आजकल वन विभाग में निर्माण विभागों से ज्यादा बजट है और बजट का आबंटन विकास और योजना शाखा के अधीन है। ऐसे में विभाग के भीतर अरुण पांडे की पूछ-परख खासी रहने वाली है। चर्चा है 1994 बैच के आईएफएस अधिकारी अरुण कुमार पांडे को वन मंत्री मोहम्मद अकबर की पसंद पर अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक विकास और योजना बनाया गया है।

अफसरशाही का गुमान ?

पद और पावर ऐसी चीज है कि जिसको मिलती है, उसमें गुरुर आ ही जाता है , ऐसी ही गुरुर और गुमान वाली राज्य सेवा की एक अफसर चर्चा में हैं। पठन-पाठन वाले विभाग में पदस्थ अफसर के पास दोहरा चार्ज है, उन्हें ऐसे संस्था का अस्थायी मुखिया भी बनाया गया है, जहां के कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला है। लेखकों की रायल्टी भी अटकी है। इस संस्था में गिने-चुने 8 -10 कर्मचारी हैं, जिनमें एक को छोड़कर बाकि सभी संविदा पर काम कर रहे हैं। इस संस्था का प्रशासनिक खर्च राज्य सरकार उठाती है और दूसरे कामों के लिए भारत सरकार राशि देती है। कहते हैं वेतन के लिए तरस रहे कर्मचारी अपने दो पहिए में फाइल लेकर मेडम से दस्तखत करवाने नया रायपुर जाते हैं, क्योंकि वे सरकारी गाडी में भी उस दफ्तर तक जाने का जहमत नहीं उठाती। जब मुखिया का यह हाल है तो फिर उस संस्था का भगवान ही मालिक।

पुलिस की साख और नाक

अपराधियों को पकड़ न पाने की वजह से राज्य के मुख्यमंत्री को घटना स्थल पर जाना पड़ जाए,ऐसे में पुलिस की साख और नाक की क्या बात की जाए ? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र के खुड़मुड़ा गांव में चार लोगों की हत्या के गुनहगार चार दिन बाद धरे नहीं जा सके हैं न ही उनका सुराग लगा है। कहते हैं छत्तीसगढ़ का पुलिस महकमा अपनी छवि सुधारने के लिए मशक्क्त कर रही है। पुलिस अधीक्षक से लेकर दूसरे आला अफसर व्हाट्सअप और ट्वीटर के जरिए अपनी बात जनता तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। कहते हैं ब्रांडिंग के लिए टीम भी बनाई गई है , पर अपराधी हैं कि पुलिस की नाक कटवा देते हैं और बनती साख पर पानी फेर देते हैं।

कौन होगा दुर्ग कमिश्नर

दुर्ग के कमिश्नर टीसी महावर 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले हैं। सवाल है कि महावर की जगह कौन लेगा। अमृत खलखो को राज्यपाल का सचिव और कृषि सचिव बनाने के बाद बस्तर कमिश्नर का पद अब तक भरा नहीं जा सका है। रायपुर के कमिश्नर जीआर चुरेन्द्र को अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। भूपेश सरकार ने सरगुजा संभाग का काम भी लंबे समय तक बिलासपुर कमिश्नर को अतिरिक्त रूप से सौंपकर चलाया। अभी सभी कमिश्नर प्रमोटी आईएएस हैं। अब यह भी देखना है कि सरकार दुर्ग में किसी प्रमोटी आईएएस को कमिश्नर बनाती हैं या सीधी भर्ती वाले को ?

(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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