लोहड़ी का त्यौहार पौष महीने के अंतिम दिन सूर्यास्त के बाद मनाया जाता है। इस वर्ष आज 13 जनवरी यानी लोहड़ी का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 34 मिनट से शुरू होगा और रात को 8 बजकर 12 मिनट पर विश्राम होगा। लोहड़ी से जुड़ी परम्पराओं एवं रीति रिवाजों के अनुसार यह ज्ञात होता है, कि प्राचीन समय में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि दहन की याद में यह पवित्र अग्नि जलायी जाती है।
वास्तु विज्ञान के नियम के अनुसार अगर अग्नि को घर में ही जलाकर इस त्यौहार को मनाना चाहते हैं तो इसे घर के आग्नेय कोण यानि कि पूर्वी दक्षिणी कोने में जलाएं। अगर आप इस त्यौहार को सामूहिक रूप से किसी खुले स्थान पर मनाना चाहते हैं तो लकड़ियों को जलाने के लिये उस स्थान के आग्नेय कोण अर्थात पूर्वी दक्षिणी कोने में स्थापित करना चाहिए। जो भी व्यक्ति उस अग्नि को जलाये उसे अग्नि जलाते समय अपना मुख पूर्व दिशा की तरफ ही रखकर अग्नि को प्रचंड करना चाहिए। अग्नि जलने के बाद उसमें मुंगफली, रेवड़ी, मक्की, तिल, गुड़, गज्जक, इत्यादि नई फसलों व उनसे बने उत्पादों को देव आत्माओं को समर्पित करने के भाव से अग्नि में डाला जाता है क्योंकि हमारे धार्मिक ग्रंथों में अग्नि को देव आत्माओं का मुख भी कहा गया है। हम जो भी देवआत्माओं को भोग लगाना चाहते हैं वह सिर्फ अग्नि के माध्यम से ही उन तक पहुंचता है।
जब लकड़ियां पूरी तरह से जल जाती हैं तो सभी उपस्थित व्यक्ति उस अग्नि की तीन बार परिक्रमा करते हैं। सभी खाने की वस्तुओं को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। अग्नि समाप्त होने के बाद कुछ अधजली लकड़ी को जाते समय घर ले जाते हैं क्योंकि माना जाता है कि वह लकड़ी घर की पश्चिम दिशा में रखने से घर पर दुष्ट आत्माओं का प्रभाव नहीं होता।
लोहड़ी कर त्यौहार अधिकतर उत्तर भारत में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन नई फसल की पूजा की जाती है तथा उनकी फसल मौसम के नकारात्मक प्रभाव से बची रहे इसके लिये प्रार्थना भी की जाती है।