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कही-सुनी (09 MARCH-25) : भाजपा नेताओं के अच्छे दिन आएंगे अप्रैल में ?

रवि भोई की कलम से



कहा जा रहा है कि अप्रैल महीने में भाजपा के कई नेताओं के अच्छे दिन आ सकते हैं। कुछ को विष्णुदेव साय के मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है, तो कुछ को निगम-मंडलों की कुर्सी। सरकार और संगठन अब तक चुनावों का हवाला देकर नेताओं को रोके रखा था। लोकसभा के बाद नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव भी निपट गए। सभी जगह कमल खिल गए हैं। विधानसभा का बजट सत्र भी 24 मार्च तक निपट जाएगा। ऐसे में पद के इच्छुक नेताओं के सब्र का बांध टूटने की कगार पर आ गया है। कहा जाता है कि निगम-मंडल की कुर्सी के लिए मोटे तौर पर फार्मूला बन गया है और कुछ नामों पर सहमति भी बन गई है। बताते हैं सबसे ज्यादा दिक्कत मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर है। मंत्री के दो पद खाली हैं और दावेदार कई हैं। याने एक अनार सौ बीमार वाली कहावत है। चर्चा है कुछ मंत्रियों को ड्राप किया जा सकता है। बताते हैं विधानसभा के बजट सत्र में कुछ मंत्रियों के परफॉर्मेंस से सरकार की छवि पर असर पड़ा है। मंत्रिमंडल विस्तार में नए और पुराने चेहरे का भी खेल भी चल रहा है। इन सबके बीच माना जा रहा है कि अप्रैल में कुछ लोगों का तो भला हो ही जाएगा। चर्चा है कि 24 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और 30 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छत्तीसगढ़ यात्रा के बाद सरकार और संगठन पद बांटने के काम में जुटेगा।

अजय चंद्राकर के आक्रामक तेवर के मायने

भाजपा के कद्दावर नेता, पूर्व मंत्री और कुरुद के विधायक अजय चंद्राकर विधानसभा के बजट सत्र में अपनी ही सरकार पर हमलावर बने हुए हैं। अजय चंद्राकर के निशाने पर सबसे ज्यादा स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल और राजस्वमंत्री टंकराम वर्मा हैं। सदन में अजय चंद्राकर की आक्रामक शैली चर्चा में है। कहा जाने लगा है कि अजय चंद्राकर विपक्ष का काम हल्का कर दे रहे हैं। डॉ रमनसिंह मंत्रिमंडल में अजय चंद्राकर सालों मंत्री रहे हैं, उनके पास स्वास्थ्य रहा है। वे स्वास्थ्य के नस-नस से वाकिफ हैं और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते उनके अपने लिंक भी हैं। वैसे स्वास्थ्य मंत्री तो अमर अग्रवाल भी रहे हैं। अजय चंद्राकर की स्वास्थ्य विभाग में दिलचस्पी सुर्खियां बटोर रही है। चर्चा यह भी है कि जब विकेट गिरेगा, तभी अजय चंद्राकर को बैटिंग का मौका मिलेगा। अजय चंद्राकर और टंकराम वर्मा एक ही वर्ग से, एक ही संभाग से हैं। अब देखते हैं अजय चंद्राकर अपनी तूफानी गेंदबाजी से किसी को आउट कर अपनी जगह बना पाते हैं या नहीं।

चौंकाने वाले काम के लिए मशहूर ओपी

ओपी चौधरी ने कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश कर सबको चौंका दिया था। अजीत जोगी को छोड़ दें, तो आमतौर पर कलेक्टरी का आनंद छोड़कर आईएएस राजनीति में नहीं आते। राजनीति को रिटायरमेंट प्लान के रूप में अपनाते हैं। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने इस बार सौ पेज का बजट भाषण लिखकर सबको चौंका दिया। शायद ही कोई वित्त मंत्री अपना बजट भाषण लिखा हो, वह भी कंप्यूटर के युग में। जब लोग हाथ से लिखना भूलते जा रहे हैं, ऐसे में ओपी चौधरी का सौ पेज भाषण लिखना अपने-आप में रिकार्ड तो है ही। पहली बार के विधायक और राजनीति के नए खिलाड़ी ओपी चौधरी को वित्त जैसा विभाग मिलना भी दिग्गजों के लिए दांतों तले अंगुली दबाने जैसा रहा। ओपी चौधरी ने राज्य के बजट को ‘ज्ञान’ से ‘गति ‘ की ओर मोड़कर विपक्ष को सिर खुजाने को मजबूर कर दिया है।

ईओडब्ल्यू के दरवाजे आईएएस

कहते हैं दवाई घोटाले में ईओडब्ल्यू ने राज्य के दो आईएएस अफसरों को तलब कर घंटों पूछताछ की। बताते हैं सीजीएमएससी द्वारा दवाई खरीदी मामले में ईओडब्ल्यू ने दोनों आईएएस से अलग-अलग पूछताछ की। बताते हैं एक आईएएस को सुबह 11 बजे से रात 11 बजे तक बैठाए रखा और उनसे करीब 90 सवाल पूछे। इस मामले में कुछ और आईएएस को पूछताछ के लिए बुलाए जाने की खबर है। बताते हैं छत्तीसगढ़ में यह पहली दफा हुआ कि जब ईओडब्ल्यू ने दो आईएएस को कटघरे में रखा। कांग्रेस राज में एक आईएएस के खिलाफ ईओडब्ल्यू में मामला गया था, पर उन्हें पूछताछ के लिए कार्यालय नहीं बुलाया गया था। दोनों आईएएस की ईओडब्ल्यू दफ्तर में हाजिरी चर्चा में है।

अभिजीत सिंह को पुरस्कार

छह महीने में ही कांकेर कलेक्टर के पद से हटाए गए 2012 बैच के आईएएस अभिजीत सिंह को राज्य सरकार ने दुर्ग जिले का कलेक्टर बना दिया है। इस पोस्टिंग को उन्हें पुरस्कार के तौर पर देखा जा रहा है। बताते हैं लोकसभा चुनाव में कांकेर कलेक्टर की भूमिका को लेकर साय सरकार खुश नहीं थी और आचार संहिता खत्म होते ही अभिजीत सिंह को कांकेर कलेक्टर के पद से हटाकर मंत्रालय में पदस्थ कर दिया। करीब 10 महीने बाद मंत्रालय से हटाकर उन्हें फिर फील्ड की पोस्टिंग दे दी गई। अभिजीत सिंह को नियम-कानून के आधार पर चलने वाला अफसर माना जाता है। अभिजीत सिंह की पोस्टिंग को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है। बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव में घोषणा पत्र बनाने वाले दुर्ग के सांसद विजय बघेल का इन दिनों सरकार के साथ सुर -ताल मैच नहीं कर रहा है। अब देखते हैं अभिजीत सिंह राजनीति और प्रशासन में किस तरह तालमेल बैठाते हैं।

नक्सलियों की कमर तोड़ने की रणनीति

राज्य में विष्णुदेव साय की सरकार बनने के बाद लगातार नक्सली मारे जा रहे हैं और पुलिस को सफलता मिलती जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक राज्य को नक्सल मुक्त करने की ठानी है। कहते हैं राज्य की साय सरकार ने नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए उन पर आर्थिक प्रहार भी शुरू कर दिया है। बताते हैं इस साल पूरे बस्तर संभाग में तेंदूपत्ते की तुड़ाई का काम वन विभाग करेगा। तेंदूपत्ते के संग्रहण का काम ठेके पर नहीं दिया गया है। कहा जाता है कि नक्सली तेंदूपत्ता का शांतिपूर्ण संग्रहण के एवज में ठेकेदारों से भारी मात्रा में वसूली करते थे। यह नक्सलियों का बड़ा आर्थिक स्रोत होता था। सरकार ने नक्सलियों का आर्थिक स्रोत ही बंद करने का फैसला कर लिया। राज्य में 15 अप्रैल से 15 जून के बीच तेंदूपत्ता संग्रहण का काम होता है। बस्तर संभाग में तेंदूपत्ता की तुड़ाई पहले शुरू हो जाती है। माना जा रहा है कि बस्तर इलाके में इस बार सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को काफी नुकसान पहुंचा दिया हैं। इस कारण नक्सली कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं।

कांग्रेस का वार खाली

कहते हैं कांग्रेस ईडी दफ्तर का घेराव कर शक्ति प्रदर्शन करना चाहती थी, लेकिन कामयाब नहीं हो सकी। कुछ करने से पहले ही पुलिस ने कांग्रेस के वार को भोथरा कर दिया। इसके बाद कांग्रेसियों ने धरना दिया। बताते हैं धरने में भी कांग्रेसियों का अंतरकलह दिखने लगा। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के बाजू में कुछ दिनों पहले कांग्रेस में वापसी किए एक नेता के बैठने से बड़े नेता नाराज हो गए और वे जमीन पर बैठ गए। अब कांग्रेस के नेता एकजुट हुए बिना संघर्ष किस तरह कर पाएंगे। यह चर्चा का विषय है।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )

 

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