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श्रीमद्भागवत कथा के समापन पर आचार्य शांतनु जी महाराज के भजन ने मोहा मन

गरियाबंद।हर हाल में खुश रहना , सन्तो से सिख जाएँ , महफ़िल में जुदा रहना ,झंझट में बच के रहना सन्तो से सिख जाए श्रीमद्भागवत कथा के विश्राम दिवस के अवसर पर पूज्य आचार्य शांतनु जी महाराज के ये भजन ने सबका मन मोह लिया ।
उपाध्याय परिवार द्वारा नगर के गाँधी मैदान में चल रहे कथा के समापन दिवस पर भगवान के विवाह की कथा सुनाते हुए आचार्य शान्तनु जी महाराज ने कहा कि प्रथम विवाह रुक्मिणी जी के साथ हुआ तदुपरांत प्रथम पुत्र के रूप में प्रद्युम्न जी का जन्म हुआ और साक्षात कामदेव ही प्रदुम्न का रूप लेकर आये हैं , और शम्बरासुर नामक राक्षस ने प्रद्युम्न का हरण कर लिया , और उन्होंने शम्बरासुर का वध किया और अपनी पत्नी रति के साथ पुनः द्वारिका पधारे हैं ।


गरियाबंद के गाँधी मैदान में उपाध्याय परिवार द्वारा आयोजित कथा में प्रयागराज के शान्तनु जी महाराज ने श्यामयन्तक मणि की कथा सुनाते हुये कहा कि शत्राजित के पास मणि थी जिसके लिए भगवान को चोरी का कलंक लगाया गया जिसे खोजने के लिए भगवान जंगल मे गए और वहाँ जामवंत जी से भेंट हुई मणि उनके पास थी भगवान और जामवंत जी मे 27 दिन तक युद्ध हुआ अंत मे जामवंत जी को समझ मे आया कि ये तो मेरे प्रभु राम है, भगवान ने उन्हें राम स्वरूप का दर्शन कराया और अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भगवान के साथ कर दिया और यौतुक स्वरूप मणि भी दे दी भगवान द्वारका आये , शत्राजित को वास्तविकता का पता चला है और वो लज्जित हुआ और अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह भगवान के साथ किया है, क्रमशः कालिंदी ,मित्रवृन्दा ,सत्या आदि आठ पटरानियों सहित भगवान के कुल सोलह हजार एक सौ आठ विवाह एक साथ हुए और सभी रानियों से 10 पुत्र और 1 पुत्री के जन्म हुआ है भगवान सभी रानियों के साथ सानंद लीला करते हैं ।

विशाल भण्डारे के साथ आज उपाध्याय परिवार द्वारा आयोजित कथा का समापन हुआ , पूज्य महाराज जी ने कथा में आगे कहा कि जीवन मे भगवान के मुख पर कभी भी निराशा का भाव नही आया ,भकगवां ने नृग नामक राजा का उद्धार किया जो गिरगिट के रूप में श्राप के कारण रहता था । बलराम जी वृन्दावन में आकर सभी ग्वाल बालों को दर्शन दिया ।

गरियाबंद के गाँधी मैदान में विशाल पण्डाल में खचाखच भरे श्रोताओँ को भगवान के मित्र सुदामा की कथा सुनाया कि किस प्रकार भगवान ने अपने दीनबंधु नाम को चरितार्थ किया है, सुदामा जी के अतीव पावन लीला को सुनकर सभी श्रोताओं का हृदय पवित्र हो गया सभी भक्तों में आनंद आ गया , और सभी को बधाई और सुंदर भजन गाते हुए उत्सव मनाते हुए भागवत कथा को विश्राम किया ।

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