खैरागढ़ से लौटकर राजेंद्र ठाकुर- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ सुर-ताल की छंटा बिखेरने वाले खैरागढ़ का चुनावी दांवपेंच आदिवासी वोटरों पर निर्भर करेगा। लोधी बहुल खैरागढ़ विधानसभा में मुकाबला तो कांग्रेस और भाजपा में ही नजर आ रहा है। दोनों दलों ने लोधी समाज के चेहरे पर ही दांव चला है, ऐसे में माना जा रहा है कि जीत के लिए दोनों में टक्कर कांटे का रहेगा।
महलों और रियासतों की कहानी बताने वाला खैरागढ़ विधानसभा में देवव्रत सिंह के निधन के साथ ही राजपरिवार की तूती भी चल बसी। अब लगता नहीं कि खैरागढ़ राजघराना चुनाव परिणाम में कुछ प्रभाव डाल सकता है, तभी तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ने देवव्रत सिंह की दोनों रानियों को भाव ही नहीं दिया। खैरागढ़ में होटल चलाने वाले राजेंद्र पटेल कहते हैं -रानियां संपत्ति के लिए लड़ रही हैं, उन्हें जनता की सुध लेने की फुरसत कहां ? देवव्रत की बात ही कुछ अलग थी। खैरागढ़ विधानसभा के आखिरी गांव पेंड्रीकला के मानिकलाल साहू और पीरधि साहू कहते हैं- काम हो, न हो , यह अलग बात है ,देवव्रत सिंह प्यार से दो बोल बोलते थे और उनके दरबार में एक गिलास पानी मिल जाता था, यही उनके लिए बड़ी बात थी। देवव्रत सिंह 2018 में जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर यहां से चुनाव जीते थे। नवंबर 2021 में उनके निधन से सीट रिक्त हो गई।
इस उपचुनाव में जोगी कांग्रेस ने देवव्रत सिंह के रिश्तेदार नरेंद्र सोनी को मैदान में उतारा है। सोनी पेशे से वकील हैं, लेकिन उनमें देवव्रत जैसी बात नहीं है। राजमहल और देवव्रत से सहानुभूति रखने वाले राजेंद्र पटेल कहते हैं सोनी की भूमिका वोट काटने तक ही रहेगी। भाजपा ने पुराने कोमल जंघेल को ही रिपीट किया है। कोमल 2018 में 870 वोटों से विधानसभा पहुँचने से चूक गए थे। इसके पहले विधायक और संसदीय सचिव रह चुके हैं। कांग्रेस ने नया चेहरा और महिला यशोदा वर्मा को मैदान में उतारकर नया प्रयोग किया है, पर क्षेत्र के पुराने और घुटे कांग्रेसियों के गले नया चेहरा कितना उतर पाता है, यह बड़ा सवाल है ? फिर कांग्रेस उम्मीदवार के सामने लोगों से सीधे कनेक्शन का भी सवाल है ? यशोदा वर्मा कांग्रेस की पदाधिकारी और जिला पंचायत सदस्य है।वर्तमान में वे लोधी समाज की महिला इकाई की जिलाध्यक्ष भी हैं,पर चुनाव में उन्हें लोगों को बताना पड़ रहा है। कोमल जंघेल लोगों की जुबान पर हैं। पान बेचने वाले खेदूराम साहू कहते हैं कोमल जंघेल को जहाँ बुलाया जाता है,वहां वे पहुँच जाते हैं। कोमल जंघेल को ही प्रत्याशी बनाने से भाजपा के दूसरे दावेदारों का मुंह फुल गया है। भाजपा के नेता कहते हैं -उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
खैरागढ़ विधानसभा में कुल 2,11,540 मतदाता है, जिसमें 1,06,290 पुरुष और 1,05,250 महिला हैं। ये 291 मतदान केंद्रों में 12 अप्रैल को वोट डालेंगे। 2,11,540 मतदाताओं में करीब 62 हजार लोधी और 40 हजार के करीब साहू वोटर बताए जाते हैं। इसके बाद 50-55 हजार के करीब गोंडी ( आदिवासी) वोटर हैं। गोंड वोटर की बहुलता साल्हेवारा और बकरकट्टा इलाके में ज्यादा है। माना जा रहा है कि लोधी और साहू वोटर तो बटेंगे, पर गोंडी वोटर को जिसने अपने पाले में कर लिया, उसकी जीत पक्की है। कहते हैं 2018 में देवव्रत ने गोंड वोटर के सहारे ही जीत दर्ज की थी। युवा मतदाताओं का मतदान भी जीत-हार अहम करक हो सकता है। खैरागढ़ उपचुनाव में कोई खास मुद्दा तैर नहीं रहा है, पर खैरागढ़ को जिला बनाने की घोषणा पर अमल न होना लोगों को याद है। चर्चा है कि स्थानीय निकाय चुनाव के वक्त कांग्रेस ने खैरागढ़ को जिला बनाने का वायदा किया था। इस वायदे के बाद भी खैरागढ़ नगरपालिका चुनाव में भाजपा और कांग्रेस 10-10 सीटों की बराबरी पर रहे। यह अलग बात है कि समीकरण चलते कांग्रेस के शैलेन्द्र वर्मा अध्यक्ष और रज्जाक खान उपाध्यक्ष बन गए।
कांग्रेस ने साहू वोटरों को रिझाने के लिए गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को आगे किया है , वहीं आदिवासी वोटों के लिए प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और मंत्री अमरजीत भगत को जंगल इलाके की जिम्मेदारी दी है। कांग्रेस ने एक विधानसभा जीतने के लिए 27 स्टार प्रचारक तय किए हैं, जवाब में भाजपा ने 40 स्टार प्रचारक झोंके हैं। भाजपा की तरफ से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रह्लाद पटेल समेत राज्य के कई नेता चुनाव प्रचार में लगेंगे। कहते हैं खैरागढ़ का बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश की सीमा को टच करता है, ऐसे में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के प्रचार अभियान में हिस्सा बनने से भाजपा को लाभ की उम्मीद की जा रही है, वहीं राजमहल के समर्थकों के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया, तो लोधी वोटरों के लिए प्रह्लाद पटेल रामबाण होंगे ? कांग्रेस ने मंत्री और सरगुजा महाराज टीएस सिंहदेव को प्रचार में लगाया है। मंत्री रविंद्र चौबे, कवासी लखमा और दूसरे मंत्री-सांसद भी चुनावी फील्ड में नजर आने लगे हैं।
राजेंद्र गुप्ता कहते हैं उपचुनाव में मुद्दों से ज्यादा प्रत्याशी का चेहरा प्रभावी दिखाई पड रहा है। कांग्रेस की प्रत्याशी कच्ची मिट्टी समान है तो भाजपा का पका घड़ा जैसा। अब जनता किसे चुनती है, यह तो 16 अप्रैल को ही पता चलेगा , लेकिन यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ जैसा दिखाई पड रहा है। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले यह उपचुनाव सेमीफाइनल मुकाबला जैसा ही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस की प्रतिष्ठा जुडी है, वहीँ भाजपा ने जिस तरह नेताओं का जमावड़ा किया है उससे तो लग रहा है कि वह भी बाजी छोड़ना नहीं चाहती। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हुए चित्रकोट, दंतेवाड़ा और मरवाही उप चुनाव में भाजपा की तरफ से केंद्रीय मंत्री या दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री नहीं आए थे, इस बार वे दिखाई पड़ेंगे। स्टार प्रचारकों की भीड़ से लग रहा है कि मुकबला कांटे का और रोचक होने वाला है। खैरागढ़ की हार-जीत का शंखनाद दिल्ली से छत्तीसगढ़ के हर गांव -कस्बे में सुनाई पड़ने वाला । इसे कांग्रेस और भाजपा दोनों समझ रहें हैं, उसी के अनुरूप रणनीति भी बना रहे हैं।
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