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स्वच्छता व शांति की अधिष्ठात्री देवी है शीतला माता

० शिव मंदिर स्थित मंदिर में प्रत्येक वर्ष धूमधाम से पूजा की जाती है
० दशकों पूर्व प्राचीन शिव मंदिर का हुआ जीर्णोद्धार

दिलीप गुप्ता
सरायपाली। किसी भी राज्य की पहचान उसकी भाषा, वेषभूषा एवं संस्कृति होती है । संस्कृति लोक पर्वों में दिखाई देती है, लोक पर्व संस्कृति का एक आयाम हैं, लोकपर्वों में अंतर्निहीत तत्व होते हैं, जिनके कारण लोक पर्व मनाए जाते हैं,संस्कृति की धारा अविरल बहती रहती है परन्तु इसके पार्श्व में मनुष्य की दिमागी हलचल होती है, जो उसे उत्सवों की ओर अग्रसर करती है,
लोकपर्वों में प्रमुख तत्व लोक होता है, विश्व में जहाँ भी मानवों की बस्ती है, उनके द्वारा मनाए पर्व मनाये जाते है, निर्धारित तिथि को बिना किसी शासकीय आदेश के सभी लोग सामुहिक रुप से इन पर्वों को मनाते हैं, मनुष्य रोजगार के उद्देश्य से भूगोल में किसी भी स्थान पर चला जाए, उसके साथ उसकी संस्कृति एवं लोकपर्व भी स्वत: चले आते हैं,इन पर्वों के माध्यम से वह अपनी संस्कृति से जुड़ा रहता है,
होली के बाद बसंत की चलाचली की वेला होती है और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है, ॠतु परिवर्तन होने के कारण यह व्याधि के कीटाणुओं के संक्रमण का समय भी होता है,इस अवधि में चेचक का प्रकोप अधिक होता है, जिसे भारत में हम “माता” के नाम से जानते हैं.


वर्तमान में यही समय विद्यार्थियों की परीक्षाओं का भी होता है, बड़ी संख्या में विद्यार्थी अपने अध्ययन काल में इस संक्रमण से प्रभावित होते हैं। छोटी माता, बड़ी माता, सेंदरी माता इत्यादि नामों से इस व्याधि को जाना जाता है,इस व्याधि से बचने के लिए स्वचछता एवं आरोग्य की देवी शीतला माता की उपासना की जाती है,मान्यता है कि जब माता उग्र हो जाती है तो इसका प्रकोप होता है तथा शीतला माता की उग्रता को शांत करने के लिए शीतला विग्रह पर जल चढाने की परम्परा रही है,जिससे सप्ताह भर की अवधि में माता का प्रकोप शांत हो जाता है । इसी उद्देश्य की पूर्ति व माता की शांति के लिए शहर के धर्मशाला रोड में तालाब के पास स्थित शिव मंदिर परिसर में स्थित शीतला माता मंदिर में आज 1 अप्रैल को बड़े ही धार्मिक व परम्परागत रूप से माता शीतला देवी की पूजा- अर्चना की गई ।

पूरी दुनिया में माता शीतला की पूजा- अर्चना जहां महिलाओं द्वारा पूरी आस्था के साथ की जाती है,तो वहीं सरायपाली शहर में आज 1 अप्रैल को शिव मंदिर परिसर में स्थित शीतला माता मंदिर में विगत अनेकों दशकों से निरंतर नगर की महिलाओं एवम शीतला माता में आस्था रखने वाले सभी समाज की महिलाओं द्वारा पूजा अर्चना की जाती है,एवं शीतला माता से सुख, शांति,समृद्धि एवं बेहतर स्वास्थ्य की कामना की जाती है । नगर की अग्रवाल समाज की महिलाएं भी खासे उत्साह से पूजा करतीं हैं । आज तड़के सुबह से ही समाज व नगर की महिलाओं द्वारा शीतला माता की पूजा अर्चना की गई ।, शीतला माता मंदिर परिसर को आकर्षक साज सजा के साथ ही पूजा अर्चना की दृष्टि से साफ सफाई करवाई गई है ।

इस शिवमंदिर का निर्माण कब व किसने कराया इसकी आधिकारिक पुष्टि नगरवासी नही कर पा रहे हैं पर बताया जा रहा है कि इसका निर्माण लगभग 300 वर्षो पूर्व हुवा होगा । मंदिर में आज भी एक 1×1 वर्गफुट का शिलालेख दीवारों में स्थापित है जिसमे सबसे ऊपर ओम नम शिवाय लिखा हुवा है व नीचे देवनागरी लिपि में खुदाई कर कुछ लिखा हुआ है । दशकों पूर्व इस शंकर मंदिर व परिसर में स्थित शीतला माता मंदिर की अवस्था काफी जीर्ण शीर्ण हो गई थी । वर्षो से इसके जीर्णोद्धार की आवश्यकता महसूस की जा रही थी । इसके जीर्णोद्धार के नगर के युवा वर्ग सामने आया व इस मंदिर को जनसहयोग से नया आकर्षक रूप दिया गया । जिसमें पार्षद एवं अग्रवाल सभा के सचिव गुंजन अग्रवाल द्वारा 2 लाख रुपए , एल्डरमैन सुभाष प्रधान द्वारा एक लाख रुपए , साईं मेडिकल के संचालक मृत्युंजय अग्रवाल, नीरज (अन्नू) गुप्ता द्वारा 31 हजार रुपये की सहयोग राशि से व जन सहयोग से शंकर मंदिर एवं शीतला माता मंदिर का जीर्णोद्वार,मंदिर में टाइल्स मार्बल लगाकर रंग रोगन के साथ में समुचित व्यवस्था की गई इससे मंदिर बहुत साफ सुथरा एवम स्वच्छ दिखाई देने लगा है । देवी संतोषी माता मंदिर की आवश्यकता को देखते हुवे बलवंत जनरल स्टोर के संचालक द्वय स्व.बलवंत व स्व. जसविंदर सिंग सलुजा द्वारा इसी परिसर में नए मंदिर का निर्माण किया गया । शिव भक्त अन्नू गुप्ता द्वारा प्रतिदिन शिवलिंग को ढेरो विभिन्न सुगंधित फूलों से सजाया जाता है ।

माता शीतला देवी की पूज के लिए महिलाएं भोर में नए वस्त्र धारण कर कथा करती हैं तथा रात में बनाए गए व्यंजनों का भोग माता को लगाती हैं,ठंडा प्रसाद अर्पित कर मान्यतानुसार भोर में ही उसकी पूजा की जाती है,इस दिन राबड़ी, बाजरा की रोटी, मीठा भात, गुलगुला और अन्य पकवानो के साथ दही, मूंग की दाल, बाजरा की मोई, भीगा हुआ मोठ-बाजरी इत्यादि के साथ कलश में माता को जल चढाया जाता है । इस दिन घर मे बासी भोजन किया जाता है । चूल्हा नही जलाया जाता । शीतला माता का भजन गाया जाता है साथ ही कच्चे सूत के धागे की मेखला (करधन) बना कर बच्चों बड़ों को पहनाई जाती है, मटकी की पूजा की जाती है, इस दिन से ठंडा पानी पीना प्रारंभ हो जाता है, पूजा किया हुआ जल सभी आँखों में लगाते हैं,जिससे शीतलता के संग आखों की ज्योति सदा बनी रहे,शीतला माता की पूजा करने की परंपरा है,परिवार की सुख शान्ति तथा बच्चों को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए माता शीतला की पूजा-अर्चना की जाती है.

शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं, अगर हम अपने आस पास को साफ़ सुथरा रखेगें तो रोगोंयू के कीटाणू व्यक्ति के सम्पर्क में आकर उसे रोगी नहीं बनाएगें.ज्यादातर बीमारियां खराब खाना खाने से होती हैं,रसोईघर की स्वच्छता बहुत जरूरी है,शीतला मां के हाथ में जल से भरा कलश होना, हमें जल को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए जागरूक बनाता है.

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