कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला और लोकसभा की पूर्व सांसद रंजीत रंजन को छत्तीसगढ़ से पार्टी प्रत्याशी बनाया है। राजीव उत्तर प्रदेश से आते हैं, वहीं रंजीत रंजन का संबंध बिहार से है। स्थानीय को राज्यसभा प्रत्याशी नहीं बनाए जाने से भाजपा और जोगी कांग्रेस ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। विपक्ष ने कांग्रेस के फैसले को छत्तीसगढ़ियों का अपमान बताया है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा, मुख्यमंत्री बताएं आखिर क्या वजह है कि उन्हें कृषि विश्वविद्यालय में तो छत्तीसगढ़िया कुलपति चाहिए होता है लेकिन छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ का राज्यसभा सांसद नहीं चाहिए होता। पिछली बार केटीएस तुलसी को वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा की जगह राज्यसभा भेज दिया गया। इस बार भी भाजपा ने लगातार कहा कि छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में यहां के लोगों को ही भेजना चाहिए तब कांग्रेस कह रही थी कि भाजपा को इस बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। साय ने कहा, छत्तीसगढ़ के किसी भी मामले में भारतीय जनता पार्टी और छत्तीसगढ़ का एक-एक नागरिक बोलने का पूरा अधिकार रखता है।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा, राज्यसभा के लिये प्रदेश के किसी भी कांग्रेसी को उम्मीदवार नहीं बनाया जाना छत्तीसगढ़ के जनमानस का अपमान है। कांग्रेस ने पूर्व में भी मोहसिना किदवई और फिर केटीएस तुलसी को राज्यसभा भेजा था। अब फिर दोनों प्रत्याशी छत्तीसगढ़ के बाहर से बनाए हैं। इससे यह साबित होता है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ के लोगों को प्रतिनिधित्व देना ही नहीं चाहती है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा, छत्तीसगढ़ की दोनों राज्यसभा सीटों पर बाहरी प्रत्याशियों को थोपना कांग्रेस की दूषित सोच का परिणाम है। कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के योग्य कांग्रेसी नेताओं को मौका न देकर उन्हें नीचा दिखाया है और छत्तीसगढ़ का अपमान किया है। अमित जोगी ने कांग्रेस विधायकों से कहा है कि छत्तीसगढ़ के सम्मान के लिए वे 10 जून को दोनों प्रत्याशियों के लिए मतदान ही न करें।प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि हाईकमान ने सोच-समझकर की प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगाई है। आने वाले दिनों में केंद्र में कांग्रेस को कैसे सक्रिय किया जाए उसकी जिम्मेदारी दी गई है।
कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में राष्ट्रीय समीकरणों को महत्व दिया है। राज्यसभा जाने की दावेदारी कर रहे दर्जन भर से अधिक स्थानीय नेताओं में किसी को मौका नहीं मिला है। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को पहले ही स्पष्ट हो चुका था कि किसी स्थानीय नेता को इस चुनाव में शायद ही मौका मिले। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम शनिवार को अकेले ही दिल्ली गए थे। वहां केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी बात रखी। मोहन मरकाम उस बैठक के बाद रविवार को रायपुर लौट आए। वे अपने साथ कोरा बी. फॉर्म अथवा टिकट लाए हैं। इसमें घोषित उम्मीदवारों का नाम भरकर नामांकन पत्र के साथ रिटर्निंग अफसर को दिया जाना है । मोहन मरकाम के लौटने के काफी देर बाद पार्टी महासचिव और केंद्रीय चुनाव समिति के प्रभारी मुकुल वासनिक ने सात राज्यों के लिए 10 पार्टी उम्मीदवारों की सूची जारी की।
इसमें छत्तीसगढ़ के किसी नेता का नाम नहीं था। छत्तीसगढ़ से उच्च सदन में जाने के लिए पार्टी ने राजीव शुक्ला और रंजीत रंजन को चुना। रंजीत रंजन 10 नेताओं की सूची में एकमात्र महिला उम्मीदवार भी हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की मौजूदा ताकत को देखते हुए दोनोे नेताओं का निर्विरोध राज्यसभा के लिए चुना जाना तय है। नामांकन 31 मई को होगा। वह नामांकन का आखिरी दिन है, ऐसे में उसी दिन विजेताओं की घोषणा भी कर दिया जाना है।
कांग्रेस के पुराने रणनीतिकार हैं राजीव
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर के राजीव शुक्ला 63 साल के हैं। पत्रकारिता से कॅरियर की शुरुआत कर वे, राजनीति और क्रिकेट प्रशासन में सक्रिय रहे हैं। साल 2000 में उन्हें पहली बार महाराष्ट्र से राज्यसभा भेजा गया था। 2003 में उनके राजनीतिक दल अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। उसके बाद वे कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे। वे तीन बार महाराष्ट्र से ही राज्यसभा जा चुके हैं। वे इंडियन प्रीमियर लीग के अध्यक्ष रहे। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे। हॉकी इंडिया लीग की गवर्निंग बॉडी में शामिल हैं। वहीं उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के ऑनरेरी सचिव भी हैं।
बिहार में कांग्रेस की सबसे मुखर आवाज हैं रंजीत
मध्य प्रदेश के रीवां में जन्मी रंजीत रंजन लॉन टेनिस की खिलाड़ी रही हैं। उन्होंने बिहार के बाहुबली सांसद पप्पू यादव से विवाह किया। शादी के एक साल के भीतर ही रंजीत पति के साथ राजनीति में सक्रिय हो गईं। बिहार के सुपौल से विधानसभा चुनाव से शुरुआत की। जीत नहीं मिली। 2004 में रंजीत रंजन, लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर सहरसा से पहली बार लोकसभा पहुंचीं। परिसीमन के बाद सहरसा सीट के स्थान पर सुपौल क्षेत्र बना। इस सीट से रंजीत ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और जदयू उम्मीदवार से हार गईं। 2014 में उन्होंने मोदी लहर के बावजूद सुपौल सीट पर जीत दर्ज की। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अभी वे कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव हैं। जम्मू-कश्मीर में संगठन चुनाव की पीआरओ भी हैं।
छत्तीसगढ़ से इतने दावेदारों के नाम उभरे थे
कांग्रेस में छत्तीसगढ़ के दर्जन भर से अधिक दावेदार विभिन्न स्तर पर सक्रिय थे। इसमें सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास, शकुन डहरिया, पीआर खुंंटे का नाम था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सलाहकार विनोद वर्मा, महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा, पूर्व विधायक लेखराम साहू, खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन, महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक और भिलाई की तुलसी साहू का नाम भी प्रमुखता से शामिल बताया जा रहा था। मुख्यमंत्री के संसदीय सलाहकार और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी, डॉ. राकेश गुप्ता, संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला, पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी और खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष राजेंद्र तिवारी का नाम भी दावेदारों की सूची में शामिल था।
अब राज्यसभा में ऐसी होगी तस्वीर
राज्यसभा में छत्तीसगढ़ की पांच सीटे हैं। अभी तक इनमें से दो पर भाजपा और तीन पर कांग्रेस के सांसद थे। 29 जून को भाजपा के रामविचार नेताम और कांग्रेस की छाया वर्मा का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। उनकी जगह पर केवल कांग्रेस के दो सांसदों की एंट्री होगी। ऐसे में भाजपा से केवल सरोज पाण्डेय रहेंगी। वहीं कांग्रेस से फूलोदेवी नेताम, केटीएस तुलसी, राजीव शुक्ला और रंजीत रंजन की जगह बनेगी। कांग्रेस खेमे से अब केवल फूलोदेवी नेताम ही छत्तीसगढ़ मूल की सांसद होंगी। शेष तीन दिल्ली, यूपी और बिहार के राजनीतिज्ञ होंगे।
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