चंडीगढ़: वकील, मैनेजमेंट ग्रेजुएट और दलितों की आवाज़ उठाने वाले चरणजीत सिंह चन्नी ने आज पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. नगर परिषद का अध्यक्ष चुने जाने से लेकर पंजाब में दलित समुदाय से पहले मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाने तक चरणजीत सिंह चन्नी का पिछले दो दशकों में सियासत में लगातार कद बढ़ता गया. पंजाब के रूपनगर जिले के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से तीन बार के विधायक चन्नी साल 2012 में कांग्रेस में शामिल हुए थे. जानिए चन्नी का सियासी सफर.
चन्नी दलित सिख (रामदसिया सिख) समुदाय से आते हैं और अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में तकनीकी शिक्षा, औद्योगिक प्रशिक्षण, रोजगार सृजन और पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों के विभागों को संभाल रहे थे. चन्नी ने प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के खेमे का पक्ष लेते हुए अमरिंदर सिंह के खिलाफ तीन अन्य मंत्रियों के साथ बगावत कर दी थी. दिलचस्प बात यह है कि साल 2007 के विधानसभा चुनावों में चमकौर साहिब सीट के लिए कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ बगावत करने के तीन साल बाद दिसंबर 2010 में अमरिंदर ही चन्नी को पार्टी में वापस लेकर आए थे.
दलितों से जुड़े मुद्दों पर सरकार के मुखर आलोचक रहे चन्नी
चन्नी वरिष्ठ सरकारी पदों पर अनुसूचित जाति के प्रतिनिधित्व जैसे दलितों से जुड़े मुद्दों पर सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं. चन्नी का राजनीति से पहला परिचय तब हुआ, जब वह खालसा सीनियर सेकेंडरी स्कूल, खरड़ के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. उन्होंने श्री गुरु गोबिंद सिंह कॉलेज, चंडीगढ़ में स्नातक के लिए दाखिला लिया था. इसी दौरान छात्र संघ का महासचिव चुना गया.
साल 2002 में चुने गए खरार नगर परिषद के अध्यक्ष
छात्र नेता के रूप में शुरुआत करने वाले चन्नी की राज्य स्तर पर राजनीतिक यात्रा साल 2002 में खरार नगर परिषद के अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के साथ शुरू हुई. चन्नी ने पहली बार 2007 में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से जीते. वह 2012 में कांग्रेस में शामिल हुए और फिर से उसी सीट से विधायक चुने गए. चन्नी के पास दो स्नातकोत्तर डिग्री हैं और वह एक प्रशिक्षित वकील हैं. चन्नी ने पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय से एमबीए भी किया हुआ है.
विवादों में भी घिरे चन्नी, लगा था ‘मी टू’ का आरोप
मंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान चन्नी उस समय विवादों में घिर गए जब भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की एक महिला अधिकारी ने उन पर 2018 में ‘‘अनुचित संदेश’’ भेजने का आरोप लगाया था. इसके बाद पंजाब महिला आयोग ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया और सरकार का रुख पूछा था. उस समय मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने चन्नी को महिला अधिकारी से माफी मांगने के लिए कहा था और यह भी कहा था कि उनका (सिंह) मानना है कि मामला ‘‘हल’’ हो गया है. यह मुद्दा इस साल मई में फिर से उठा, जब महिला आयोग की प्रमुख ने चेतावनी दी कि अगर राज्य सरकार एक ‘‘अनुचित संदेश’’ के मुद्दे पर अपने रुख से एक सप्ताह के भीतर उसे अवगत कराने में विफल रही तो वह भूख हड़ताल पर चली जाएंगी.
साल 2018 में फिर विवादों में आए चन्नी
साल 2018 में चन्नी फिर से विवादों में फंसे, जब वह एक पॉलिटेक्निक संस्थान में व्याख्याता के पद के लिए दो उम्मीदवारों के बीच फैसला करने के लिए एक सिक्का उछालते हुए कैमरे में कैद हो गए. इससे अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को काफी फजीहत का सामना करना पड़ा. नाभा के एक व्याख्याता और पटियाला के एक व्याख्याता, दोनों पटियाला के एक सरकारी पॉलिटेक्निक संस्थान में तैनात होना चाहते थे.
पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे चन्नी
चन्नी ने एक बार अपने सरकारी आवास के बाहर सड़क का निर्माण करवाया था ताकि उनके घर में पूर्व की ओर से प्रवेश किया जा सके और बाद में चंडीगढ़ प्रशासन ने इसे तोड़ दिया. चन्नी पिछली शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौरान पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता थे.
कांग्रेस ने सीएम पद के लिए चन्नी को क्यों चुना?
राज्य में विधानसभा चुनाव में बमुश्किल पांच महीने बचे हैं, इसलिए कांग्रेस की तरफ से एक दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाना काफी महत्वपूर्ण है. राज्य में दलितों की आबादी लगभग 32 फीसदी है. दोआबा क्षेत्र जालंधर, होशियारपुर, एसबीएस नगर और कपूरथला जिले में दलितों की आबादी सबसे ज्यादा है.
कांग्रेस को आशा है कि चन्नी को सीएम बनाने से अमरिंदर सिंह की नाराजगी से हुए संभावित नुकसान की भरपाई हो जाएगी.
बता दें कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से गठबंधन कर चुके शिरोमणि अकाली दल ने पहले ही घोषणा कर दी है कि विधानसभा चुनाव में जीत मिलने पर दलित वर्ग के किसी नेता को उपमुख्यमंत्री का पद दिया जाएगा. राज्य में आम आदमी पार्टी भी जीत की उम्मीदें लगाए हुए है.
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