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जानिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बाजार के हवाले कर क्या अपना वादा भूल गई सरकार?

पेट्रोल डीजल की कीमतों में इजाफा जारी है. अक्टूबर महीने में अब तक 16 बार पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाये जा चुके हैं. पेट्रोल 4.90 रुपये तो डीजल 5.40 रुपये प्रति लीटर अक्टूबर में महंगा हो चुका है. दोनों पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के चलते आम लोगों पर हर रोज महंगाई का डाका पड़ रहा है. विपक्ष की आलोचनाओं और आम आदमी में इस बढ़ोतरी से गुस्से के बावजूद सरकारी तेल कंपनियों द्वारा हर रोज पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाये जा रहे हैं.

2010 में पेट्रोल के दाम बाजार के हवाले 

सवाल उठता है कि सस्ते तेल का फायदा आम लोगों को देने के अपने ही वादे से अब सरकार क्यों मुकर रही है. जून 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को डीरेग्युलेट ( Petrol Price Deregulate) करने यानी बाजार के हवाले करने का फैसला लिया था. इसके बाद से सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल की कीमतें तय किया करती थीं. लेकिन डीजल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण जारी था. डीजल को बाजार भाव से कम दाम पर बेचा जा रहा था. जिससे तेल कंपनियों को नुकसान हो रहा था.

डीरेग्युलेशन के बाद फायदा नहीं

लेकिन अक्टूबर 2014 में मोदी सरकार ने डीजल की कीमतों को भी डीरेग्युलेट करने का निर्णय ले लिया. डीजल की कीमतों को भी तय करने का अधिकार सरकारी तेल कंपनियों को सौंप दिया गया. तब इस फैसले की घोषणा करते हुये तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था पेट्रोल की तरह डीजल की कीमतें भी बाजार आधारित हो गई है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल के दाम बढ़ेंगे तो उपभोक्ता को ज्यादा कीमत देना होगा और दाम कम होने पर उपभोक्ता को सस्ते तेल का लाभ मिलेगा. लेकिन बड़ा सवाल उठता है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम जब भी कम हुए तो क्या इसका लाभ उपभोक्ता को मिला. इसका उत्तर है नहीं.

सस्ता कच्चा तेल, पर उपभोक्ता को फायदा नहीं

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जब कच्चे तेल के दाम औंधे मुंह गिर गए तब नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच मोदी सरकार ने 9 बार पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी कर दी. पेट्रोल पर 11.77 रुपये और डीजल पर 13.47 रुपये प्रति लीटर की दर से एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दिया गया. वहीं कोविड काल में भी मांग में कमी के चलते के कच्चे तेल के दाम गिर गये तो मार्च 2020 से लेकर अब तक केंद्र सरकार पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये एक्साइज ड्यूटी और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस के नाम पर टैक्स बढ़ा चुकी है. मौजूदा समय में पेट्रोल पर 32.90 रुपये और डीजल पर 31.80 रुपये प्रति लीटर केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी वसूल रही है. स्पष्ट है कच्चे तेल के दामों में भारी कमी के बावजूद कभी भी उपभोक्ताओं को सस्ते में पेट्रोल डीजल उपलब्ध नहीं हो सका.

ऑयल बांड का बहाना
वहीं सरकार के रुख से नहीं लगता कि आम लोगों को निकट भविष्य में महंगे पेट्रोल डीजल के राहत मिलने वाली है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) कह चुकीं हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने सरकारी तेल कंपनियों के नुकसान की भरपाई करने के लिये 1.4 लाख करोड़ रुपये का जो ऑयल बांड ( Oil Bond) जारी किया था उसका भुगतान मोदी सरकार को करना पड़ रहा है और इसलिए सरकार पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी नहीं घटा पा रही है.
और महंगा होगा कच्चा तेल
अब सस्ते पेट्रोल डीजल की उम्मीद भी बेमानी होती जा रही है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल ( Brent Crude Price) की कीमत 85 डॉलर प्रति बैरल को पार कर चुका है. वहीं कई विशेषज्ञ पहले ही कच्चे तेल के 90 डॉलर प्रति बैरल पार जाने की भविष्यवाणी कर चुके हैं जिसमें Goldman Sachs भी शामिल है.
पेट्रोल डीजल से बढ़ी सरकार की कमाई 
2014 मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तब उसने पेट्रोलियम पदार्थों पर 99,068 करोड़ रुपये एक्साइज ड्यूटी वसूला था. 2015-16 में 1,78,477 करोड़ रुपये,  2016-17 में 2.42,691 करोड़ रुपये, 2017-18 में 2.29,716 लाख करोड़ रुपये, 2018-19 में 2,14,369,  2019-20 में 2,23,057 लाख करोड़ रुपये और 2020-21 में 3.71,726 लाख करोड़ रुपये एक्साइज ड्यूटी वसूला. और मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 के पहले तीन महीनों में ही पेट्रोल डीजल पर  एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन 88 फीसदी बढ़कर 94,181 करोड़ रुपये हो चुका है.
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