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गांव-गरीब-महिला हितैषी सरकार, मनरेगा में ‘आधी आबादी’ को बड़ा अधिकार

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद पहली बार ऐसा देखने को मिला है जब गाँव-गरीब-किसान-महिला को लेकर कोई सरकार इतनी संवेदनशील है कि विकास की ज्यादातर योजनाएं इन्हें ही ध्यान में रखकर बनाई जा रही, संचालित की जा रही है. बात भूपेश सरकार की हो रही है. भूपेश सरकार राज्य में तीन साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है. इन तीन सालों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पहले दिन से ही अपनी प्राथमिकता में गाँवों के विकास को सबसे पहले पायदान पर रखा है.

नतीजा ये रहा है कि कर्जा माफी हुई, किसानों को 25 सौ मिला, नरवा-गरवा, घुरवा-बारी से ग्रामीण अर्थवस्था को मजबूती मिली, गोधन से स्वरोजगार मिला. मतलब वो सबकुछ मिला जिससे गाँवों, गाँव के लोगों, महिलाओं को ताकत मिले. आर्थिक आत्मनिर्भरता मिले. आज प्रदेश भर की हजारों महिला समूहों के पास ढेरों काम हैं. काम के साथ-साथ सरकारी अनुदान और कर्जा माफी भी है. अब इसी कड़ी में एक और बड़ा काम या कहिए बड़ा अधिकार ग्रामीण महिलाओं को सरकार ने दिया है. यह बड़ा काम या कहिए कि अधिकार है मनरेगा में महिला मेटो का. 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को काम देने का.

मेट का काम महिलाओं के हाथ

दरअसल राज्य सरकार महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने का काम कर रही है. गाँव की पढ़ी-लिखी महिलाओं के पास काम और अधिकार दोनों ही पर्याप्त रूप से हो इस दिशा में काम कर रही है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के जरिए सरकार इस बखूबी कर भी रही है. देश की आधी आबादी याने महिलाओं को अब मजदूरी से आगे मेट का काम भी दिया जा रहा है.

मनरेगा में पहले मेटो का काम पुरूष ही करते थे, लेकिन अब महिलाएं भी इस काम करने के लिए आगे आ रही हैं. महिला मेटो की नियुक्ति से कार्यस्थल में उनकी उपस्थिति और भी ज्यादा सुनिश्चित हुई है. मनरेगा कार्यों में महिला मेट नाप से लेकर रिकॉर्ड संधारण का कार्य बखूबी कर रही हैं. वे महिला मजदूरों को प्रोत्साहित भी कर रही हैं. फलस्वरूप अनेक जिलों में कार्यस्थलों में महिला मजदूरों की भागीदारी 50 प्रतिशत से अधिक हो गई है.

कहानी वनांचल की गिरिजा साहू की

आइये आपको बताते हैं ऐसे ही एक महिला मेट की कहानी. ये कहानी है गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखंड मुख्यालय से दस किलोमीटर की दूरी पर सघन वनों के बीच ग्राम पंचायत गुंडरदेही की. गुंडरदेही की रहने वाली गिरिजा साहू की. खेतिहर मजदूर परिवार की गिरिजा गाँव की एक पढ़ी-लिखीं और समझदार लड़की है. गिरिजा ने बारहवीं तक की पढ़ाई की है. गिरिजा का परिवार मजदूरी पर ही निर्भर रहा है. पति भी मजदूरी का कार्य करता है. लेकिन अब गिरिजा मेट बनकर जब से कार्य कर रही है, तो परिवार को आर्थिक मजबूती है. वही वह खुद भी आर्थिक तौर स्वालंबी हो गई है.

गिरिजा गाँव की अन्य महिलाओं को किया प्रेरित

गिरिजा ने अपनी तरह ही गाँव की अन्य पढ़ी-लिखीं महिलाओं को इस ओर प्रेरित किया. आज गाँव की केशरी ध्रुव, मंजू साहू, उर्वशी यादव और त्रिवेणी साहू भी महिला मेट के रूप में काम कर रही हैं. ग्रामीण महिलाओं को सरकार की ओर से प्रशिक्षण देने का भी काम किया गया है. उन्हें तकनीकी सहायक से खनती की माप एवं मजदूरों का नियोजन सीखाया गया है. पंजी संधारण एवं दस्तवेजों के रखरखाव का भी सीखाया गया. आज तमाम महिलाएं कुशलतापूर्वक मेट का काम कर रही हैं. गांव में नवीन तालाब निर्माण, तालाब गहरीकरण, नाला सफाई एवं भूमि सुधार जैसे अनेक कार्यों में मेट के रूप में मजदूरों के कुशल नियोजन के साथ-साथ उन्हें जरूरी दिशा-निर्देश देने, पंजी संधारण तथा मस्टररोल में हाजिरी दर्ज करने जैसे महत्वपूर्ण काम वे कर रही हैं.

महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी

सरकारी आंकड़ों की मुताबिक गुंडरदेही में मनरेगा के काम में 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं की भागीदारी रही है. यहाँ वर्ष 2018-19 में 55 प्रतिशत महिला श्रमिकों ने काम किया. 2019-20 में यह बढ़कर 56 प्रतिशत तक पहुँच गया. वहीं 2020-21 में कोरोना संकट के बीच 54 प्रतिशत महिलाओं को काम दिया गया. गाँव की महिला मेटो द्वारा इस दिशा में और भी बेहतर काम किया जा रहा है.

 

 

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