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देश के लिए केस स्टडी बनेगा सिलक्यारा सुरंग हादसा, NIDM तैयार करेगा पूरा चैप्टर

नेशनल न्यूज़। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) के कार्यकारी निदेशक राजेंद्र रतनू ने कहा कि सिलक्यारा सुरंग हादसा पूरे देश के लिए केस स्टडी बनेगा। भविष्य में सुरंग निर्माण में हम क्या-क्या सावधानियां बरतें, कैसे कमियों को दूर करें, इस पर एनआईडीएम पूरा चेप्टर तैयार करेगा। छठवें वैश्विक आपदा प्रबंधन सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे राजेंद्र रतनू ने कहा कि देश में जहां भी सुरंगों का निर्माण होगा, हमारी कोशिश रहेगी कि निर्माण में लगी एजेंसी और विभागों के साथ पहले से तैयार माड्यूल पर बात कर आगे बढ़ा जाए।

रतनू ने कहा कि हिमालयन रीजन में सड़कों और सुरंगों के निर्माण में यह स्टडी महत्वपूर्ण साबित होगी। उन्होंने कहा कि सभी हिमालयी राज्यों का पूरा भूगोल अन्य राज्यों से अलग है। इसलिए हिमालयी राज्यों की ओर से ही यह सुझाव आया था कि उत्तराखंड में एक इस तरह का राष्ट्रीय संस्थान खुले, जिसमें आपदा प्रबंधन से संबंधित शोध, प्रशिक्षण और इससे जुड़े दूसरे महत्वपूर्ण कार्य हो सकें। वर्ष 2022 से यह प्रस्ताव केंद्र सरकार में लंबित है। आज मुख्यमंत्री ने इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की बात कही है।

पब्लिक डोमेन में होना चाहिए पूरी परियोजना का खाका : डॉ. आजमी
वाडिया भू-विज्ञान संस्थान के रिटायर्ड भू-विज्ञान डॉ. आरजे आजमी ने कहा कि भविष्य में सिलक्यारा जैसी घटनाएं न हों, इसके लिए परियोजना पर काम शुरू करने से पहले सभी भूवैज्ञानिक, भूगर्भीय सर्वेक्षणों को पूरा कर लिया जाना चाहिए। ताकि मौजूदा चट्टानों का पूरा लेखा-जोखा पहले से मौजूद रहे। कहां पर कमजोर चट्टान है, इसका पहले से पता होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी परियोजना का पूरा प्लान पब्लिक डोमेन में होना चाहिए।

अमेरिकी ऑगर मशीन पर भारी पड़े मानवीय पंजे
उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के अभियान में अमेरिकी ऑगर मशीन भी कुछ घंटों में सामने आई बाधाओं के सामने हांफ गई। ऐसे में रैट माइनर्स की टीम ने अपनी करामात दिखाई।

अंततः ऑगर मशीन पर मानवीय पंजे भारी पड़े और इनके दम पर 17वें दिन ऑपरेशन सिलक्यारा परवान चढ़ा। 17 दिन तक बचाव अभियान में जुटी टीमें मजदूरों का जीवन बचाने के लिए सभी विकल्पों पर काम शुरू कर चुकी थी। बड़कोट की ओर से माइनर सुरंग खोदने, वर्टिकल, मगर जहां ऑगर मशीन फंसी थी, वही विकल्प मजदूरों तक पहुंचने का सबसे करीब जरिया था। ऑगर मशीन से गार्टर के फंसे टुकड़ों को एक-एक कर बाहर निकाला गया। साथ ही विशेषज्ञों की सलाह पर झांसी से रैट माइनर्स की मदद लेने का फैसला हुआ, जिन्हें सुरंग के भीतर मैनुअली खोदाई की महारत है। झांसी से ग्राउंड जीरो पर पहुंची रैट माइनर्स की टीम जैसे-जैसे आगे बढ़ी, अभियान के सदस्यों के चेहरों पर चमक दिखने लगी। आखिरकार जहां मशीन हार गई, वहां मानवीय पंजों ने कामयाबी दर्ज की।

रैट माइनर्स बोले-हमारे पहुंचते ही खुशी से झूम उठे मजदूर
जब हम सुरंग में फंसे लोगों के पास पहुंचे तो हमें देखकर वे खुशी से झूम उठे। उन्होंने हमें गले से लगा लिया। यह हमारे लिए भावुक क्षण थे। निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों के सुरक्षित बाहर निकलने की राह खोलने के बाद जब रैट माइनर्स की टीम के सदस्यों ने यह बात कही। वे थम्स अप का संकेत करते हुए ऑपरेशन की कामयाबी का संदेश दे रहे थे। उनके चेहरों पर अभियान की सफलता की चमक साफ नजर आ रही थी। बचाव अभियान के दौरान अमेरिकन ऑगर मशीन जब हांफ गई तो झांसी से रैट माइनर्स की टीम को बुलाया गया और मोर्चे पर उतारा गया। दिन-रात घंटों लगातार काम करते हुए टीम के 12 सदस्यों ने सुरंग के भीतर पिछले 17 दिन से सुरक्षित बाहर निकलने का इंतजार कर रहे मजदूरों तक पहुंचने के लिए मार्ग खोला। टीम के सदस्य फिरोज कुरैशी ने अमर उजाला को बताया कि 26 घंटे से वे लगातार खोदाई का काम करते रहे। हम श्रमिकों के पास तक गए। वे हमें देखकर खुश हुए। हमने एक-दूसरे को गले से लगा लिया। अब सब सुरक्षित हैं।

पीएमओ की सक्रियता से अभियान ने पकड़ी रफ्तार
मजदूरों की जिंदगी बचाने के अभियान में पीएमओ की बड़ी भूमिका रही। प्रधानमंत्री ने तो लगातार नजर रखी ही उनके कार्यलय के दूत वहां लगातार कैंप कर अभियान को गति देते रहे।

हादसे की सूचना गृह मंत्रालय के नियंत्रण कक्ष के जरिये प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचते ही पीएम के प्रधान सचिव डॉ. पीके मिश्रा ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानकारी दी। इसके बाद से लगातार पीएमओ के अधिकारियों ने घटना की निगरानी की। मिश्रा ने पीएम को बचाव अभियान की नियमित रूप से जानकारी दी।
डॉक्टर मिश्रा ने पीएमओ के उप सचिव मंगेश घिल्डियाल को घटनास्थल पर जाकर हालात की जानकारी लेने की निर्देश दिया। प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे से भी घटनास्थल पर बचाव अभियान की निगरानी करने का अनुरोध किया गया।

पीएमओ के जोर देने पर आरवीएनएल, ओएनजीसी, एसजेवीएनएल, टीएचडीसी, डीआरडीओ आदि से सिविल इंजीनियरिंग और टनलिंग संबंधित उपकरणों और विशेषज्ञों को जुटाने के अलावा डीएसटी, डीआरडीओ और कई निजी स्टार्टअप और कंपनियों से रोबोट्स, ड्रोन, एंडोस्कोपिक कैमरा जैसे इनोवेटिव प्रौद्योगिकी आधारित समाधान को भी जुटाया गया।

सभी संबंधित मंत्रालय और संगठन जैसे कि थल सेना, वायु सेना, बीआरओ, एनडीआरएफ, एनडीएमए, उत्तराखंड सरकार, जिला प्रशासन और कई निजी इकाइयों से भी संपर्क साधा गया।
घटनास्थल पर काम कर रही सभी एजेंसियों की एक बैठक डॉक्टर मिश्रा की अध्यक्षता में 20 नवंबर को पीएमओ में हुई। बैठक में सभी एजेंसियों के प्रमुखों को निर्देश दिया गया कि वह प्रति घंटे के आधार पर बचाव अभियान की निगरानी करें।

27 नवंबर को डॉक्टर मिश्रा गृह सचिव के साथ मौके पर पहुंचे। 28 नवंबर को बचाव अभियान के सफलतापूर्वक पूरा होने तक उप सचिव मंगेश घिल्डियाल उत्तरकाशी में ही डटे रहे।

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