रवि भोई की कलम से
छत्तीसगढ़ के तमाम लोगों के जेहन में एक ही सवाल कौंध रहा कि राज्य में अगली सरकार किसकी बनेगी। वैसे सरकार बनाने को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों दावे कर रहे हैं। तीसरी ताकतें चुप हैं। 2023 का चुनाव पिछले चार चुनावों से भिन्न नजर आ रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही जनता के लिए लुभावने वादे किए हैं और मतदाता मौन है। जब मतदाता मौन होता है, तो परिणाम चौंकाने वाले होते हैं। इस कारण भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल तीन दिसंबर के इंतजार में हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कर्ज माफ़ी की घोषणा को देखते हुए कुछ इलाकों के किसानों ने फिलहाल सोसाइटी में धान बेचना बंद कर दिया है। इसका तरह-तरह का अर्थ निकाला जा रहा है। 2018 में भी नतीजों से पहले भी किसानों ने धान रोक लिया था। लेकिन इस बार एक फैक्टर काम नहीं कर रहा है। भाजपा ने कर्ज माफ़ी के एवज में दो साल का बकाया धान बोनस का वादा किया है। दोनों बड़े दलों के घोषणा पत्र में समानता के कारण छत्तीसगढ़ में मुकाबला कांटे का बन गया है। राजनीतिक दलों को भी चुनावी नतीजों को लेकर कई तरह की आशंका है। इस कारण नतीजे के बाद विधायकों की घेराबंदी की योजना बना रहे हैं। बराबरी या बहुमत से कुछ कम सीटें मिलने पर छोटे दल और निर्दलियों की पूछपरख बढ़ जाएगी। माना जा रहा है कि इस बार किसी भी दल के बहुमत का आंकड़ा 50-52 के आसपास ही रहेगा और विपक्ष मजबूत रहेगा। चुनावी आकाश का बादल रविवार को छटेगा, तब तस्वीर साफ़ होगी।
चौबे-चरण से लेकर अकबर तक के फंसने की खबर
2023 के विधानसभा चुनाव में मंत्री रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर के भी चक्रव्यूह में फंसने की खबर आ रही है। मोहम्मद अकबर 2018 का विधानसभा चुनाव सर्वाधिक मतों से जीते थे। रविंद्र चौबे अपने राजनीतिक जीवन में एक बार ही चुनाव हारे हैं। भाजपा राज के विधानसभा अध्यक्षों का चुनाव हारने का इतिहास रहा है। विधानसभा अध्यक्ष रहते प्रेमप्रकाश पांडे, धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल चुनाव हार गए। कांग्रेस राज में विधानसभा अध्यक्ष रहते राजेंद्र प्रसाद शुक्ल चुनाव जीते थे। अब विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर डॉ चरणदास महंत चुनाव लड़ रहे हैं, उनके भी चक्रव्यूह में फंसने की खबर आ रही है। 1990 से लगातार विधायक बृजमोहन अग्रवाल के चुनाव को फंसा माना जा रहा है। राज्य में कई विधानसभा सीटों में कांटे के मुकाबले के कारण चुनाव रोचक हो गया है। चुनाव के दिग्गज खिलाड़ी भी अपने जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं।
पोस्टिंग के लिए चिंतित अफसर
राज्य के अफसर भी चुनाव नतीजों पर टकटकी लगाए हुए हैं। नई सरकार में अपनी पोस्टिंग को लेकर अफसर चिंतित हैं, तो कुछ संभावनाओं के आधार पर जुगाड़ लगाने में लग गए हैं। माना जाता है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार दोबारा आती है तो अफसरों की पोस्टिंग में ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं है। भाजपा आती है तो बड़े बदलाव होंगे। चर्चा है कि भाजपा की सत्ता में वापसी की स्थिति में प्रतिनियुक्ति पर गए कई आईएएस अधिकारी छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। कहा जा रहा है कि राज्य में भाजपा की सरकार आ गई तो ईडी अफसरों को तिरछी नजर से नहीं देखेगी। कांग्रेस की सरकार आने पर राज्य में ईडी का नया रूप देखने को मिलेगा।
सवाल छत्तीसगढ़ की साख का
कहते हैं अंत भला तो सब भला। अस्थायी कनेक्शन से नया रायपुर स्थित स्टेडियम में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच टी-20 क्रिकेट मैच हो गया , लेकिन सवाल उठता है कि आखिर बिजली बिल क्यों नहीं पटाया गया और इसके लिए जिम्मेदार कौन है। रायपुर में आईपीएल के अलावा भारत -न्यूजीलैंड के बीच वन डे मुकाबला भी हो चुका है। फिर भी लापरवाही क्यों ? रायपुर के क्रिकेट स्टेडियम की लाइट कटने की खबर सुर्ख़ियों में रही और देश भर में चर्चा का विषय रहा। इससे छत्तीसगढ़ की साख घटी ही। सरकार और क्रिकेट एसोसिएशन को जल्द कदम उठाना चाहिए। क्रिकेट मैच हो गया तो भूल नहीं जाना चाहिए।
(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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