(रवि भोई की कलम से)
2021-22 के आम बजट से लगने लगा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार निजीकरण के रास्ते पर चल पड़ी है। केंद्र सरकार की रणनीति से ऐसा लगने लगा है कि आने वाले दिनों में बैंक,बीमा कंपनियों और सरकारी उपक्रमों के निजी हाथों में चले जाने से सरकारी नौकरियों के दिन लद जाएंगे। कोरोनाकाल के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने संसद में आम बजट पेश करते हुए कहा- सरकारी कंपनी भारत पेट्रोलियम ,एयर इंडिया,शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया,कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया,आईडीबीआई बैंक,बीईएमएल,पवन हंस,नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड की हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया गया है। इसमें भारत पेट्रोलियम देश की बड़ी सरकारी महारत्न तेल और गैस कंपनी है। 2021-22 में एलआईसी का आईपीओ लाया जाएगा। अब बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ इंडिया को निजी हाथों में सौंपे जाने की खबर भी आ रही है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है – सरकार को विनिवेश से 1,75,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति होने की उम्मीद है। राज्यों को अपनी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का विनिवेश करने के लाभ दिए जाएंंगे और बेकार पड़ी भूमि से लाभ प्राप्त करने के लिए एक विशेष कंपनी बनाई जाएगी।आखिर महामारी की आपदा में सरकारी कामकाज के लिए कहां से पैसे लाया जाए। यह अलग बात है कि महामारी से पहले ही अर्थव्यवस्था हांफती हुई चलने लगी थी और नौ तिमाहियों से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी। लॉकडाउन ने ऐसी हांफती अर्थव्यवस्था का चक्का ही बैठा दिया। प्रधानमंत्री पहले संकेत दे चुके थे कि कोरोना के दौर में बैंकों के निजीकरण, बीमा खासकर भारतीय जीवन बीमा की हिस्सेदारी बेचने, हवाई अड्डों, राजमार्गों, बंदरगाहों की नीलामी और सार्वजनिक उपक्रमों के विनेवेश की राह ही आगे बढ़ेगी।
लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि आपदा और लॉकडाउन में जिन लोगों पर कड़ी मार पड़ी है, उन्हें कुछ राहत की बात इस बजट में होनी चाहिए। मसलन, रोजगार के मोर्चे पर कोई ठोस पहल, मध्य और निम्र मध्य वर्ग के लिए आयकर में कुछ छूट, कृषि क्षेत्र के लिए कुछ ऐसी घोषणाएं, जिनसे आंदोलनरत किसानों की भावनाएं कुछ सहलाई जा सकें। लेकिन ऐसा कुछ भी इस बजट में नहीं दिखता। रोजगार के मोर्चे पर तो इस बजट में पहली नजर में मनरेगा को लेकर कोई ऐलान भी नहीं दिखा, जिससे कोरोना के दौर में काफी गरीब मजदूरों को मदद मिली थी। किसानों के लिए सिर्फ यह गिना दिया गया कि गेंहू, धान वगैरह की सरकारी खरीद कैसे बढ़ गई है। असम और बंगाल के चाय बागानों के मजदूरों के हक में कुछ घोषणाएं की गईं। असम बंगाल, केरल, तमिलनाडु में कुछ हजार किमी. हाइवे निर्माण का प्रस्ताव किया गया और तमिलनाडु में मछुआरों के हक में भी कुछ ऐलान है।
वेतनभोगी वर्ग के जिम्मे कुछ खास नहीं आया। आयकर छूट की सीमा नहीं बढ़ी, बस किफायती घर खरीदने वालों के लिए कर्ज पर रियायतों को एक साल आगे बढ़ा दिया गया। हां, 75 वर्ष से ऊपर के बुजुर्गों को आयकर रिटर्न भरने से छूट मिली, आयकर से नहीं क्योंकि वह बैंक या वित्तीय संस्थान ही काट लिया करेंगे। वैसे, उच्च आयवर्ग और कॉरपोरेट को कुछ डिविडेंड वगैरह में जरूर छूट मिली और वह यह कि अब 3 साल से पीछे के कर वंचना की पड़ताल नहीं होगी, बशर्तें सालाना आय 50 लाख रु. से अधिक न हो। इन रियायतों पर जानकारों में मतभेद है कि कितने लोगों को इसका फायदा मिलेगा। मसलन, कुछ के मुताबिक 75 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को रिटर्न भरने से छूट बमुश्किल सिर्फ 10,000 लोगों को राहत मिलेगी। शिक्षा और स्वास्थ्य के मद में भी कुछ छोटी-मोटी घोषणाएं हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने राजकोषीय घाटे को काफी उदारतापूर्वक से स्वीकार किया है। हालांकि उनके जीडीपी के 6.5 फीसदी से ज्यादा के राजकोषीय घाटे के अनुमान को कुछ अर्थशास्त्री कमतर मानते हैं। उनके हिसाब से यह 10 फीसदी तक हो सकता है। तो, बजट का संदेश साफ है कि राजस्व उगाही का बड़ा तरीका घर का सामान बेचो और कर्ज उठाओ ही रह गया है।
ऊंची सैलरी वालों को झटका
आम बजट 2021 में एंप्लॉयीज प्रोविडेंट फंड (EPF) और वॉलन्टरी प्रोविडेंट फंड (VPF) पर मिलने वाली ब्याज के लिए टैक्स छूट की सीमा तय करने का प्रावधान है। अब एक साल में 2.5 लाख रुपये से ऊपर के प्रोविडेंट फंड कंट्रीब्यूशन पर मिलने वाली ब्याज पर अब नॉर्मल रेट्स से टैक्स लिया जाएगा। यह केवल एंप्लॉयीज के कंट्रीब्यूशन पर लागू होगा, एंप्लॉयर (कंपनी) के योगदान पर नहीं। बजट के इस नए प्रावधान का सीधा असर हाई-इनकम सैलरी वाले लोगों पर पडे़गा, जो कि टैक्स-फ्री इंटरेस्ट के लिए वॉलन्टरी प्रोविडेंट फंड का इस्तेमाल करते हैं। ईपीएफ एक्ट के तहत एंप्लॉयीज और एंप्लॉयर कंट्रीब्यूशन (कंपनी का योगदान) सैलरी का 12 फीसदी तय किया गया है। हालांकि, कर्मचारी स्वैच्छिक रूप से इस अमाउंट से ज्यादा का कंट्रीब्यूशन वॉलन्टरी प्रोविडेंट फंड (VPF) में कर सकते हैं। वीपीएफ में कंट्रीब्यूशन के लिए कोई ऊपरी लिमिट नहीं है।
क्या भारत पेट्रोलियम को ‘आरामको’ खरीदेगी
खबर है कि देश की बड़ी सरकारी महारत्न तेल और गैस कंपनी भारत पेट्रोलियम को दुनिया की सबसे बड़ी सऊदी तेल कंपनी “अरामको ” खरीद सकती है। भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. (बीपीसीएल) के प्रस्तावित पूर्ण निजीकरण का रास्ता साफ हो चुका है। अभी बीपीसीएल में सरकार की 53.3 प्रतिशत हिस्सेदारी है। कहा जा रहा है बीपीसीएल के निजीकरण से घरेलू ईंधन खुदरा बिक्री कारोबार में काफी उथल-पुथल आ सकती है। माना जा रहा है बीपीसीएल का बाजार पूंजीकरण करीब 1.11 लाख करोड़ रुपये है। बीपीसीएल में हिस्सेदारी बेचकर सरकार को 60,000 करोड़ रुपये तक प्राप्त हो सकते हैं।
कुछ बड़े बैंक के ही पक्ष में सरकार
सरकार देश में कुछ बड़े सरकारी बैंकों को ही चलाने के पक्ष में है। जैसे- भारतीय स्टेट बैंक,पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और कैनरा बैंक। पहले कुल 23 सरकारी बैंक थे। इनमें से कई छोटे बैंक को बड़े बैंक में पहले ही मर्ज किया जा चुका है।अब तक राजनीतिक दल सरकारी बैंकों को निजी बैंक बनाने से बचते रहे हैं, क्योंकि इससे लाखों कर्मचारियों की नौकरियों पर भी खतरा हो सकता है। बैंक ऑफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं, जबकि सेंट्रल बैंक में 33 हजार कर्मचारी हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं। इस तरह कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा कर्मचारी इन चारों सरकारी बैंकों में हैं।
देश में बैंक ऑफ इंडिया छठे नंबर का बैंक है, जबकि सातवें नंबर पर सेंट्रल बैंक है। इनके बाद इंडियन ओवरसीज और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का नंबर आता है। बैंक ऑफ इंडिया का मार्केट कैपिटलाइजेशन 19 हजार 268 करोड़ रुपए है, जबकि इंडियन ओवरसीज बैंक का मार्केट कैप 18 हजार करोड़, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 10 हजार 443 करोड़ और सेंट्रल बैंक का 8 हजार 190 करोड़ रुपए है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र 1840 में शुरू हुआ था। उस समय इसका नाम बैंक ऑफ बॉम्बे था। यह महाराष्ट्र का पहला कमर्शियल बैंक था। इसकी 1874 शाखाएं और 1.5 करोड़ ग्राहक हैं।बैंक ऑफ इंडिया 7 सितंबर 1906 को बना था। यह एक प्राइवेट बैंक था। 1969 में 13 अन्य बैंकों को इसके साथ मिलाकर इसे सरकारी बैंक बनाया गया। 50 कर्मचारियों के साथ यह बैंक शुरू हुआ था। इसकी कुल 5,089 शाखाएं हैं।सेंट्रल बैंक 1911 में बना था। इसकी कुल 4,969 शाखाएं हैं।इंडियन ओवरसीज बैंक की स्थापना 10 फरवरी 1937 को हुई थी। इसकी कुल 3800 शाखाएं हैं।
सरकार बड़े पैमाने पर बैंकों में सुधार करने की योजना बना रही है। इसके तहत वह बड़े सरकारी बैंकों में अपनी ज्यादातर हिस्सेदारी बनाए रखेगी, ताकि उसका कंट्रोल बना रहे। सरकार इन बैंकों को नॉन परफॉर्मिंग असेट्स ( एनपीए ) से भी निकालना चाहती है। अगले वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों में 20 हजार करोड़ रुपए डाले जाएंगे, ताकि ये बैंकिंग रेगुलेटर के नियमों को पूरा कर सकें।निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होने में 5-6 महीने लगेंगे। 4 में से 2 बैंकों को इसी फाइनेंशियल ईयर में निजीकरण के लिए चुन लिया जाएगा। सरकार को डर है कि बैंकों को बेचने की स्थिति में बैंक यूनियन विरोध पर उतर सकती हैं, इसलिए वह बारी-बारी से इन्हें बेचने की कोशिश करेगी। बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कम कर्मचारी हैं, इसलिए इसे प्राइवेट बनाने में आसानी रहेगी।
क्या फिर होगी एयर इंडिया टाटा की ?
खबर है कि सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया को सिंगापुर एयरलाइंस और टाटा संस संयुक्त रूप से खरीद सकती है। सिंगापुर एयरलाइंस और टाटा संस साझेदारी में विस्तारा एयरलाइंस का संचालन कर रही है। अगर विस्तारा ये हिस्सेदारी लेने में कामयाब हो जाती है तो ये महज दो साल पहले हवाई उड़ान सेवा के क्षेत्र में आने वाली इस एयरलाइंस कंपनी के लिए बहुत बड़ी सफलता होगी। एयर इंडिया स्टार एलायंस का सदस्य है। ये अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया की 44 जगहों के लिए अपनी हवाई सेवा देती है। इसके पास अन्य अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस के साथ एक प्रभावशाली कोड शेयरिंग समझौता भी है, जो यात्रियों को सस्ते किराए पर छोटी जगहों पर पहुंचने में मदद करता है। जेआरडी टाटा ने ही भारत में 1948 में एयर इंडिया लॉन्च की थी लेकिन पांच साल बाद भारत सरकार ने उसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था. इसलिए टाटा संस के लिए विरासत को को पाने जैसा है। कहते हैं कतर एयरवेज भी इंडिगो एयरलाइंस के साथ बोली लगा सकती है। फ्रेंच-डच- अमेरिका एयरलाइंस तथा एयर फ्रांस-केएलएम और डेल्टा एयरलाइंस जेट एयरवेज से साथ मिलकर एक संयुक्त बोली लगाने की इच्छुक बताई जाती है।