(रवि भोई की कलम से)
छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के राज्यसभा में जाने की इच्छा वाले बयान से यहां राज्यसभा चुनाव की महत्ता कुछ ज्यादा बढ़ गई है। राज्य में ऊपरी सदन की दो सीटें जून में खाली होने वाली है। कांग्रेस की छाया वर्मा और भाजपा के रामविचार नेताम का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा।
विधायकों के संख्या बल के आधार पर यहां से कांग्रेस के ही दोनों प्रत्याशी चुने जाएंगे, यह तो साफ़ है, लेकिन यहां से राज्यसभा में कौन जाएगा, यह हाईकमान तय करेगा। पांच राज्यों के चुनाव के बाद बदली परिस्थिति में माना जा रहा है कि हाईकमान यहां से अपने किसी दो दिग्गजों को ही भेजेगा। ऐसे में स्थानीय की जगह बाहरी की संभावना ज्यादा लग रही है।
डॉ. महंत ने तो राज्यसभा जाने की इच्छा जताई है। कुछ लोग मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया की पत्नी शकुन डहरिया का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। शकुन कांग्रेस की राजनीति में काफी सक्रिय बताईं जाती हैं, दूसरी तरफ महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष और कांग्रेस की सचिव डॉ. नैन अजगल्ले ने महिला कोटे से कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा भेजने की मांग की है।
प्रमोद शर्मा पर समय की मार
बलौदाबाजार से जोगी कांग्रेस के विधायक प्रमोद कुमार शर्मा ने मरवाही चुनाव के वक्त कांग्रेस से बड़ा दिल लगाया था, तब चर्चा होने लगी थी, उनके लिए कांग्रेस का रास्ता साफ है, लेकिन दिन बीतने के साथ समय भी बदल गया और पुलिस ने उन पर शिकंजा कस दिया, जिसके खिलाफ उन्होंने सदन में आवाज उठाई।
अब चर्चा होने लगी है कि प्रमोद शर्मा के लिए कांग्रेस का दरवाजा बंद हो गया है। कहते हैं कि नगरपालिका और जनपद चुनाव में विधायक जी का साथ कांग्रेस को नहीं मिला और कांग्रेस गच्चा खा गई।
वैसे भी बलौदाबाजार से कांग्रेस के टिकट के कई दावेदार बताए जाते हैं। इनमें प्रमुख नाम पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी, कृषक कल्याण परिषद् के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा और जिला पंचायत अध्यक्ष राकेश वर्मा प्रमुख हैं। राकेश वर्मा, पूर्व विधायक जनकराम वर्मा के पुत्र हैं। कहा जाता है कि बलौदाबाजार विधानसभा कुर्मी बहुल है, यहां करीब 44 फीसदी कुर्मी मतदाता हैं। दूसरे नंबर पर साहू मतदाता हैं।
पुरन्देश्वरी ने बदला ट्रैक ?
अनिल जैन को हटाकर भाजपा ने डी. पुरन्देश्वरी को छत्तीसगढ़ का प्रभारी महासचिव बनाया, तो यहाँ के दुखी और उपेक्षित नेता-कार्यकर्ताओं में नई आस जगी थी। पुरन्देश्वरी ने शुरू में अपने तेवर भी दिखाए और अलग छाप छोड़ने की कोशिश की, लेकिन लोग कहने लगे हैं कि अब पुरन्देश्वरी ने ट्रैक बदल लिया है।
कहा जा रहा है कि 15 साल तक सत्ता का आनंद उठाने वाले नेताओं के प्रभाव में आ गईं हैं ,खासतौर से पार्टी के कुछ नेताओं के यहां भोजन पर जाने से डी. पुरन्देश्वरी के रुख पर सवाल उठने लगा है। कुछ लोग कह रहे हैं पुरन्देश्वरी के कदम से जमीनी कार्यकर्ताओं के सपने चकनाचूर हो गए।
गुटीय राजनीति में उलझी छन्नी साहू
कहते हैं कांग्रेस की विधायक छन्नी साहू कांग्रेस की गुटीय राजनीति में उलझ गई है। कहा जा रहा है कि जिला पंचायत की सदस्य से विधायक की सीढ़ी छन्नी साहू भले सरलता से चढ़ गई, लेकिन पार्टी के भीतर की केमेस्ट्री और गणित में समाहित हो पाना आसान काम नहीं है। चर्चा है कि राज्य के एक मंत्री का उनके जन्मदिन में विशेष तौर पर शरीक होने से गुटीय समीकरण गड़बड़ा गया। विधानसभा में अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत का भरपूर संरक्षण मिलने के बाद अब छन्नी साहू के दिन बदलते हैं या नहीं, यह देखना है ?
निर्गुट मंत्री ?
छत्तीसगढ़ में राजनीतिक खेमेबाजी के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कुछ मंत्रियों की धारा अलग-अलग साफ़ दिखने लगी है , लेकिन मंत्री उमेश पटेल निर्गुट दिख रहे हैं। कहते हैं हर खेमे के लोग उन्हें अपना मानकर चल रहे हैं। वैसे भी उमेश पटेल को हाईकमान के कोटे का मंत्री समझा जाता है। उमेश पटेल के पिता स्व. नंदकुमार पटेल, जब छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब उन्होंने विद्याचरण शुक्ल और अजीत जोगी से बराबर का संबंध रखा था और दोनों को कई मौकों पर एक मंच पर लाया भी। अब देखते हैं उमेश पटेल कितने दिन तक निर्गुट बने रह सकते हैं।
भाजपा का ‘एक पंथ दो काज‘
खबर है कि यूक्रेन में छत्तीसगढ़ के 207 बच्चे फंस गए थे। कहा जा रहा है कि बच्चों के बहाने भाजपा के नेताओं ने उनके घरों तक अपनी पैठ बना ली। कहते हैं न “संकट की घड़ी में साथ देने वाले को हमेशा याद किया जाता है।“ भाजपा इसी मंत्र को ध्यान में रखकर आगे बढ़ी। भाजपा के नेताओं ने देशभर में बच्चों के घर जाकर परिजनों को ढांढस बंधाया और वापसी के बाद बच्चों से मिलने भी गए। छत्तीसगढ़ में जिले और ब्लाक के पदाधिकारियों को बच्चों के घर जाकर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़दमों की जानकारी देने का टारगेट दिया गया था। यूक्रेन में फंसे छत्तीसगढ़ के बच्चों की जानकारी जुटाने और पीएमओ से समन्वय की जिम्मेदारी राजीव अग्रवाल और प्रितेश गाँधी को सौंपी गई थी। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के महासचिव विनोद तावड़े ने मानिटरिंग की।
आईपीएस अफसरों की प्रमोशन लिस्ट हवा में
आमतौर पर डीपीसी के बाद पदोन्नत अफसरों की पोस्टिंग लिस्ट जारी होने में कोई देरी नहीं होती, लेकिन राज्य के सीनियर आईपीएस अफसरों के प्रमोशन के लिए 21 फ़रवरी को डीपीसी होने के बाद एक पखवाड़े बाद भी लिस्ट जारी नहीं होना, लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि कहां पेंच फंस गया। कहते हैं डीपीसी के बाद पदोन्नत अफसरों को उनके साथियों और लोगों ने बधाई दे दी, लेकिन लिस्ट बीरबल की खिचड़ी बन गई। खबर है कि डीपीसी में कोई स्पेशल डीजी, तो कोई एडीजी और आईजी बन गए हैं। कहा जा रहा है कि प्रमोशन और पोस्टिंग आदेश तो जारी होना है, पर इंतजार अफसरों को व्याकुल कर रहा है । अब इंतजार का फल मीठा होता है कि धारणा के साथ पदोन्नत होने वाले अफसरों को फाइल के ऊपर से नीचे आने का इंतजार करना होगा।
कोर्ट के फेर में सरकार
कोर्ट-कचहरी के चक्कर में आम लोग ही नहीं, कभी-कभी सरकार भी उलझ जाती है। कहते हैं छत्तीसगढ़ सरकार राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पद पर नई नियुक्ति के मामले में कोर्ट के फेर में फंस गई है। पदमा मनहर को आयोग का अध्यक्ष बनाकर फिलहाल राज्य सरकार कामकाज चला रही है। अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए उसे सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी का इंतजार है। कहा जाता है कि भूपेश सरकार ने भाजपा राज में नियुक्त रामजी भारती को आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन कोर्ट के फैसला आने से पहले रामजी भारती का कार्यकाल पूरा हो गया और वे चले गए, पर मामला कोर्ट में लंबित ही है। अब सरकार को ही मामला वापस लेना होगा, तब जाकर अध्यक्ष की नियुक्ति की जा सकेगी।
महिलाओं के सम्मान की धूम
आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिलाओं के सम्मान की होड़ मची रही। प्रदेश से वार्ड स्तर पर कार्यक्रम हुए। महिला एवं बाल विकास विभाग तो हर साल आयोजन करता है, इस साल कुछ और सरकारी संस्थाएं आगे आईं। राजनीतिक दल और निजी संस्थाओं ने भी महिलाओं के सम्मान में कदमताल किया। आयोजनों में कहीं राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके अतिथि थीं तो कहीं कोई और गेस्ट रहा। वार्ड स्तर के एक कार्यक्रम में एक जनप्रतिनिधि गेस्ट थीं और भाषण में उनकी संघर्ष गाथा के चौकों-छक्कों से महिलाओं ने कुर्सियां ही छोड़ दीं।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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