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कबीर जयंती विशेष : कबीर दास की अमृतवाणी में छिपा है जीवन का सार

संत कबीर, जिन्हें कबीर दास या कबीर साहेब के नाम से भी जाना जाता है उनकी जयंती आज  14 जून को मनाई जा रही है। उनका जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था। यही वजह है कि हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही उनकी जयंती मनाई जाती है। कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की बुराइयों को दूर करने में लगा दिया। दोहे के रूप में उनकी रचनाएं आज भी गायी जाती हैं। कबीर दास जी का जन्म काशी में 1398 में हुआ था, जबकि उनका निधन 1518 में मगहर में हुआ था।

कबीरदास जी ने कभी कागज कलम को छुआ नहीं था लेकिन लोगों को रास्ता दिखाने वाले संत के रूप में जाने गए. संत कबीर सिर्फ एक संत ही नहीं विचारक और समाज सुधारक भी थे। उनकी अमृतवाणी से कई लोगों को जीवन जीने की सीख मिली है. उनकी बातें जीवन में सकारात्मकता लाती हैं। आइए बताते हैं आपको उनकी अमृतवाणी जो जीवन में कुछ अच्छा करने का भाव जगाएगी।

संत कबीर दास की अमृतवाणी:

  • इस दुनिया का एक नियम है- जो उगता है वो डूबता भी हो।
  • मेहनत का फल जरूर मिलता है, डर से काम करना मत छोड़ो। जैसे गोताखोर गहरे पानी में से भी कुछ लेकर ही आता है, लेकिन डूबने के डर से कई किनारे पर ही बैठे रह जाते।
  • आप दुनिया के सभी लोगों के साथ लड़ सकता हैं पर अपनों के साथ नहीं, क्योंकि अपनों के साथ जीतना नहीं बल्कि जीना होता है।
  • मरने के बाद तुमसे कौन मांगेगा? इसलिए बिना स्वार्थ के परोपकार करो, यही जीवन का फल है।
  • हिन्दुओं को राम प्यारा है और मुसलमानों को रहमान। इसी बात पर वे आपस में झगड़ते रहते है लेकिन सच्चाई को नहीं जान पाते।
  • मान, महत्व, प्रेम रस, गौरव गुण और स्नेह-सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।
  • अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो. अगर तुम अपने स्वरूप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक व्यक्ति आकर तुमसे मिलेंगे।
  • सिर्फ बड़ा कहलाने से कुछ नहीं होता बड़प्पन जरूरी है.खजूर का पेड़ बड़ा होता है लेकिन न तो छाया दे पाता है, न ही किसी को आसानी से फल।
  • साधू हमेशा करुणा और प्रेम का भूखा होता.उसे धन का लालाच नहीं. जो धन का भूखा होता है वह साधू नहीं हो सकता।

 

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