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पीएम मोदी की बजट से पहले अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक, निजीकरण तेज करने पर फोकस

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी आम बजट से पहले शुक्रवार को प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक की. इस दौरान प्रधानमंत्री ने उनके समक्ष कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार के जरिए उठाये गये राजकोषीय और अन्य सुधारों का उल्लेख किया. वहीं अर्थशास्त्रियों ने उनसे निजीकरण में तेजी लाने और ढांचागत क्षेत्र की परियोजनाओं में व्यय बढ़ाने पर जोर दिया. अर्थशास्त्रियों ने देश में निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालतों के फैसलों को सरकार के जरिए चुनौती दिए जाने से बचने की भी सलाह दी.

प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई इस बजट पूर्व बैठक में अर्थशास्त्रियों ने यह भी कहा कि सरकार को 2021- 22 के आगामी बजट में राजकोषीय घाटे के प्रति उदार रुख अपनाना चाहिये. इस समय कोरोना वायरस से प्रभावित अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान के लिये खर्च बढ़ाना जरूरी है.

बैठक के बाद नीति आयोग के जरिए जारी एक नोट में कहा गया है कि बैठक में उपस्थित सभी ने इस पर सहमति जताई की उच्च आवृति वाले सभी संकेतक मजबूत आर्थिक पुनरुत्थान दिखा रहे हैं. यह अनुमान से कहीं पहले हो रहा है. ‘‘उपस्थितों का मोटे तौर पर यह भी मानना था कि अगले साल मजबूत वृद्धि हासिल होगी और उन्होंने भारत के सामाजिक आर्थिक बदलाव के लिये इस वृद्धि दर को आगे भी बनाये रखने के उपाय सुझाये.’’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो घंटे चली लंबी बैठक के बाद अपने संबोधन में सरकार की ओर से राजकोषीय प्रोत्साहनों के साथ ही सुधारों पर आधारित प्रोत्साहनों का उल्लेख किया, जिसमें कृषि, वाणिज्यिक कोयला खनन और श्रम कानूनों जैसे एतिहासिक सुधारों का आगे बढ़ाया गया.

मोदी ने आगे कहा कि कोविड-19 महामारी और इसके फैलने के बाद के प्रबंधन ने ऐसे कार्यों में लगे सभी विशेषज्ञों के समक्ष नई चुनौतियां खड़ी कर दीं. प्रधानमंत्री ने इस दौरान आत्मनिर्भर भारत के पीछे के अपने विजन के बारे में भी बताया. इसके तहत भारतीय कंपनियों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के साथ इस तरह जोड़ा जायेगा जैसे पहले कभी नहीं देखा गया.

ढांचागत विकास के मामले में मोदी ने राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) का जिक्र किया और कहा कि सरकार विश्व स्तरीय ढांचागत सुविधाओं को विकसित करने के लिये प्रतिबद्ध है. नीति आयोग के नोट में कहा गया कि प्रधानमंत्री ने लक्ष्यों को हासिल करने में भागीदारी के महत्व को बताने के साथ अपनी बात समाप्त की. उन्होंने कहा कि इस तरह के विचार विमर्श व्यापक आर्थिक एजेंडा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

बैठक में उपस्थित एक सूत्र ने कहा, ‘‘सरकार से कहा गया कि निवेशकों का विश्वास बढ़ाने की जरूरत है. सरकार को हर चीज (अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालतों के फैसलों जैसे) को चुनौती देने से बचना चाहिये. यह काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि कई तरह के सुधार उपाय किये जाने के बावजूद अभी भी देश में बड़े पैमाने पर निवेश नहीं आ रहा है.’’

बैठक में उपस्थित वक्ताओं ने देश की जीडीपी के समक्ष कर अनुपात को बढ़ाये जाने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि यह अनुपात 2008 से कम हो रहा है. सरकार को आयात शुल्क को तर्कसंगत बनाने और बैंकों के पुनर्पूंजीकरण पर ध्यान देना चाहिये. कुछ वक्ताओं ने जरूरत पड़ने पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण और संपत्तियों की बिक्री के लिये अलग मंत्रालय बनाने का भी सुझाव दिया.

बैठक में अरविंद पनगढ़िया, के वी कामत, राकेश मोहन, शंकर आचार्य, शेखर शाह, अरविंद विरमानी और अशोक लाहिड़ी जैसे प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ अन्य लोग भी उपस्थित थे. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर, योजना राज्यमंत्री इंद्रजीत सिंह, नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और नीति आयोग के सीईओ अमिताथ कांत भी बैठक में उपस्थित थे.

यह बैठक एक फरवरी को पेश होने वाले 2021- 22 के आम बजट से पहले हो रही है. इस लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण बैठक रही है. इसमें दिये गये सुझावों को आगामी बजट में शामिल किया जा सकता है. सूत्रों ने बताया कि कुछ अर्थशास्त्रियों ने निर्यात प्रोत्साहनों पर ध्यान देने का सुझाव दिया. उनका कहना था कि घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये यह जरूरी है. ज्यादातर अर्थशास्त्रियों ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये ठोस कदम उठाये जाने पर जोर दिया.

बता दें कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के जारी अनुमान के मुताबिक मार्च में समाप्त होने जा रहे चाले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.7 प्रतिशत गिरावट आने का अनुमान है. कोविड- 19 महामारी के कारण विनिर्माण और सेवा क्षेत्र पर बुरा असर पड़ा है. इससे पिछले साल 2019- 20 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 4.2 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है.

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