सामाजिक संगठन का मूल उद्देश्य समाज को ऊंचा उठाना, सबल और सशक्त बनाना, अग्रगामी एवं प्रगतिशील बनाना होता है।
इसके लिए वह समाज को संगठित करने, पद-प्रतिष्ठा एवं सम्मान देने, आपसी समन्वय और बंधुत्व स्थापित करने, सम्पर्क और सूचना प्रदान करने, वैवाहिक व व्यापारिक संबंध बढ़ाने, शिक्षित व सुसंस्कृत, समझदार और चिंतनशील, श्रमशील एवं कार्य कुशल बनाने का प्रयास करता है।
जब कोई सामाजिक संगठन उपरोक्त लिखित कार्यकलापों में खरा नहीं उतरता, समाज निर्माण और लोक कल्याण के कार्य नहीं करता, तो उसके होने पर ही प्रश्न चिन्ह लगता है।
वर्तमान में हमारे प्रादेशिक व राष्ट्रीय स्तर के संगठनों का यही हाल है। एक या दो संगठन को छोड़कर शेष सभी संगठन “राजनीतिक पार्टियों की तर्ज़ पर निर्मित संगठन” हैं। इसे सामाजिक संगठन न कहकर राजनीतिक फिरका ही कहना चाहिए। करोड़ों की संख्या वाले बृहत समाज में से कुछ सैकड़े या हजार व्यक्तियों को जोड़कर बनाएं संगठन को राष्ट्रीय या प्रादेशिक संगठन कहना भी बेमानी लगता है!
उक्त संगठन के अध्यक्ष/ महामंत्री जिस राजनीतिक पार्टी से संबंधित होते हैं, वे अपनी कार्यकारिणी सदस्य अथवा सामान्य सदस्य के रूप में अपनी पार्टी से जुड़े हुए लोगों को ही शामिल करते हैं और अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते हैं। इस तरह से समाज का कुछ भला तो होता नहीं, बल्कि दीगर समाज के अपने चहेते राजनेताओं का वोट बैंक अवश्य बढ़ाते हैं। राज नेताओं को तो पकी पकाई खीर मिल जाती है। इसलिए वे हमारे आयोजनों में बतौर मुख्य अतिथि तेली समाज की प्रशंसा करते व भिक्षा में कुछ धनराशि देकर हम पर आशीर्वाद की वर्षा करते हैं।
होना क्या चाहिए और होता क्या है? यह गहन विचार मंथन का विषय है। इस तरह की गतिविधियों को रोकने व समाज की दिशा को मोड़ने के लिए विचारशील तथा गैर राजनीतिक स्वजातियों को आगे आने और संघर्ष करने की जरूरत है।
ऐसा कब तक चलेगा? हम कब तक राजनीतिक पार्टियों द्वारा वोट के लिए उपयोग किए जाते रहेंगे? कब तक हमारे समाज के पदाधिकारी गण हमारी सरलता और सज्जनता का नाजायज फ़ायदा उठाते रहेंगे? हम कब तक अपना शोषण और समाज की बेइज्जती सहते रहेंगे? हमारे समाज के लोग कब जागरूक होंगे और कब सीना तानकर खड़े होंगे?
अभी जो चल रहा है, वह ऐसा ही चलता रहा, तो अपना समाज कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा और न ही कुछ कर पाएगा। सामाजिक संगठन का उपयोग यदि व्यक्तिगत लाभ व नाम यश कमाने और राजनीतिक पकड़ बनाने हेतु किया जाता रहा अथवा संगठन मात्र कर्मा जयंती मनाने, परिचय सम्मेलन कराने व स्मारिका निकालने तक ही सीमित रह गया, तो फिर संगठन का औचित्य ही खत्म हो जाएगा!
आज जरूरत है कि हम इस पर चिन्तन करें, आपस में विचार विमर्श करें, सभा -सम्मेलनों में इस विषय को रखें, सामाजिक पत्र -पत्रिकाओं में इस विषय पर लेखन करें। ताकि इस तरह की ओछी राजनीति की प्रवृत्ति पर रोक लगे।
आइए, हम सभी मिलकर सामाजिक संगठनों में घुसी हुई राजनीति को खत्म करें और समाज को सबल और सशक्त बनाएं!
गोविंद साहू मेघावाले, प्रदेश संयोजक, छत्तीसगढ़ सर्व साहू समाज।
मोबाइल नम्बर 9893768892
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