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कब तक मौन रहिये, अब इसे तोड़िये 

मौन रहना वाचाल होने का विलोम शब्द और क्रिया है. लोग इन्द्रियों को वश में करने के लिए मौन रहते हैं. और आज से नहीं पीढ़ियों से मौन रहते आये हैं. हमारे यहां तो मौन रहने के लिए बाकायदा दिन और तिथियां तय होती हैं. मौन रहने के लिए अमावस्या की तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है, किन्तु यदि माघ माह की अमावस्या को मौन रखा जाये तो कुछ ज्यादा ही फलदायी होता है, क्योंकि इस अमावस्या को मौनी अमावस्या ही कहते हैं.

इस साल की पहली मौनी अमावस्या 1  फरवरी  को पड़ रही है, लेकिन इस अमावस्या पर मौन रखने से ज्यादा मौन तोड़ने की जरूरत है, खासकर उत्तरभारत के मतदाताओं के लिए. उत्तर भारत के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं. उस उत्तर प्रदेश में भी चुनाव हैं जहां गंगा तट और संगम पर एक माह का कल्प करने के लिए कोरोना के बावजूद हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं.

भारतीय संस्कृति में मौन की जितनी महत्ता है उतनी ही महत्ता मौन तोड़ने यानि की मुखर होने की है. मौन व्यक्ति को आत्मशक्ति ही नहीं देता बल्कि व्यक्ति की शब्दशक्ति को भी बढ़ाता है. हमारे यहाँ मौनी बाबा ही नहीं किंवदंती के रूप में मौनी प्रधानमंत्री भी हुए हैं. मितभाषी डॉ  मनमोहन सिंह को तत्कालीन विपक्ष ने मनमौन सिंह तक कहना शुरू कर दिया था, लेकिन संयोग देखिये कि जैसे आध्यात्म के क्षेत्र में मौनी बाबा की प्रतिष्ठा है वैसे ही राजनीति में डॉ मनमोहन सिंह की. मौन को साधना एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं है.

बात मौन तोड़ने की कर रहा था. भारतीय जन मानस अक्सर जब-तब मौन साध लेता है. मौन को देसज भाषा में चुप्पी साधना भी कहते हैं. चुप्पी साधना और फिर चुप्पी तोड़ना भी देशकाल की जरूरत होती है. जो समाज हर समय मौन साधे रहता है उसे उसका दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ता है. एक-दो दिन का मौन शक्ति देता है किन्तु हमेशा का मौन घातक हो जाता है. लोग अपनी वाक्शक्ति गंवा बैठते हैं. इसलिए यदि आप अमावस्या के दिन मौन साधते आ रहे हैं तो इस मौन को अमावस्या के दिन तोड़ना भी सीखें. व्यावहारिक बात है कि लम्बे मौन को स्वीकृति का लक्षण समझ लिया जाता है. इसलिए मौन होने के साथ मुखर होना भी उतना ही आवश्यक है जितना की मौन रहना, या मौन साधना.

ज्योतिषी कहते हैं कि यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है तो उसके निवारण के लिए मौनी अमावस्या से बेहतर और कोई दिन हो नहीं सकता. मेरी अपनी तो कोई कुंडली है नहीं किन्तु इन दिनों देश की भाग्य कुंडली को काल सर्प दोष लगा हुआ है. इसका निवारण लोकतंत्र में तंत्र-मन्त्र के बजाय मतदान के जरिये किया जा सकता है. उत्तर भारत की जनता मौनी अमावस्या पर राजनीति का कालसर्प दोष दूर करने के लिए जातिवाद,संकीर्णता,साम्प्रदायिकता और मंदिर, मस्जिद से ऊपर उठकर मतदान करने का संकल्प ले ले तो ये कालसर्पदोष दूर हो सकता है.

ज्योतिषियों का मानना है कि जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है उन्हें जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे लोगों को किसी भी काम में सफलता हाथ नहीं लगती. कालसर्प दोष निवारण के लिए अकेले गंगा में डुबकी लगाने से ही कुछ नहीं होता इसके लिए संविधान  रुपी शिव को भी खुश करना होता है. लोकतंत्र में संविधान रुपी शिव के गले में पड़ा सर्प अब  केंचुए में तब्दील हो चुका है, इसे पुन: सर्प बनाने की जरूरत है. विधान है कि कालसर्प दोष दूर करने के लिए नाग-नागिन की प्रतिकृति बनाकर उसे गंगा में प्रवाहित कर देना चाहिए,अर्थात यदि आप लोकतंत्र को कालसर्प दोष से मुक्त करना चाहते हैं तो लोकतंत्र के  नाग-नगीनों को अपने मतप्रवाह में बहा दीजिये.

आपने कालसर्प दोष करने के लिए कुछ किया नहीं जबकि सर्पयोनि के लोगों ने सरजू तट पर दीपमालाएं जला लीं. आपको अपने घरों पर तुलसी के समक्ष दीप प्रज्वलित कर 108  बार संकल्प लेना होगा कि आप लोकतंत्र को बचाएंगे, हर कीमत पर बचाएंगे, हर सूरत में बचाएंगे. इसके लिए किसी के झांसे में नहीं आएंगे और न झांसी स्टेशन का नाम बदलने से खुश होंगे. कम से कम झांसी वाले तो खुश नहीं होना चाहिए .झांसी हमेशा से झांसी रही  है, राजा-रानियां तो आते-जाते रहते हैं.

आपने पिछले दिनों पंजाब में एक पुल पर थरथरा रहे लोकतंत्र की दीर्घायु के लिए महामृत्युंजय का जाप किया जबकि आपको लोकतंत्र के दीर्घायु होने के लिए जप करना चाहिए था,अमावस्या को आप अपनी भूल सुधर सकते हैं. लोकतंत्र की दीर्घायु के लिए आप 108  बार नहीं 1008  बार महामृत्युंजय का जाप कीजिये,लोकतंत्र का कल्याण होगा. लोकतंत्र के भाग्य विधात ढोंगी और बहुरूपिये नेता नहीं बल्कि आप मतदाता हैं, आइये और अपनी भूमिका को पहचानिये. लोकतंत्र के लिए बाबाओं से मुक्ति पाने का ये सबसे उपयुक्त  समय है.इसे हाथ से न जाने दें.

आपको याद रखना चाहिए कि आपको मौनी बाबा के रूप में प्रतिष्ठा देकने वाले नेताओं की फ़ौज आपके पास आशीर्वाद लेने पहुंचेगी ही. आपको थूक लगा, लगाकर अपने घोषणा पत्र बांटेगी ही, लेकिन आप अपने आशीर्वाद को मतदान के दिन के लिए सुरक्षित रखिये. थूक लगे पर्चों का स्पर्श मत कीजिये,इससे संक्रमण फैलने का अंदेशा रहता है. ये मै नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है. आपसे पहले जिस-जिस सूबे के मतदाताओं ने अपना मौन व्रत तोड़ा उनका कल्याण हुआ. और जहाँ -जहाँ मतदाता मौन रहा वहां -वहां बंटाधार हो गया, बल्कि डबल इंजिन लगाने के बाद भी लोकतंत्र की रेल ढंग से चल नहीं पायी. अब मर्जी है आपकी, कि आप क्या करें और क्या न करें ? मौन रहें या मौन तोड़ें ?

@ राकेश अचल

 

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